देहरादून: उत्तराखंड में 19 अप्रैल को हुए लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया. लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तराखंड में 57.24 फीसदी वोटिंग हुई है. वोटिंग का ये आंकड़ा पिछली बार की तुलना में काफी कम है. उत्तराखंड लोकसभा चुनाव में कम वोटिंग परसेंटेज का कारण चुनाव बहिष्कार माना जा रहा है. प्रदेश के कई जिलों के कई गांवों मे मूलभूत सुविधाओं, विकासकार्यों की मांग पूरी न होने पर चुनाव बहिष्कार किया. जिसके कारण उत्तराखंड में वोटिंग परसेंटेज गिरा है. अब इस मामले में सीएम धामी ने चुनाव बहिष्कार करने वाले गांवों समस्याओं की रिपोर्ट शासन से मांगी है.
प्रदेश के 35 से ज्यादा गांवों ने किया चुनाव बहिष्कार: पिथौरागढ़ के धारचूला में सायपोलू बूथ पर लोगों ने सड़क न बनने की कारण पूरी तरह से चुनाव बहिष्कार किया. इस गांव ने साल 2022 में भी विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान का बहिष्कार किया था. इसके साथ ही उधम सिंह नगर में भी कई गांव सड़क और पानी की समस्या को लेकर चुनाव बहिष्कार के इस विरोध में शामिल हुए. मसूरी और धनोल्टी के क्यारा गांव में 2019 में सड़क स्वीकृत होने के बाद भी नाम बनने की वजह से लोगों ने चुनाव बहिष्कार किया. इसके साथ ही रुद्रप्रयाग के इसाला गांव के लोगों ने भी 8 साल से स्वीकृत सड़क के गांव तक न पहुंचने की वजह से चुनाव बहिष्कार किया. ऐसा ही चकराता के खारसी मोटर मार्ग को लेकर 12 गांव के लोगों ने चुनाव बहिष्कार किया. यमकेश्वर के लोग भी गंगा भोगपुर में अपनी समस्याओं को लेकर इस चुनाव में मतदान से दूरी बना चुके हैं. पिथौरागढ़ और पौड़ी के कई गांवों भी बहिष्कार में शामिल हुए. ऐसा ही हाल इस बार चुनाव में कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के बीच कई गांव में देखा गया, जहां लोगों ने पूरी तरह से चुनाव बहिष्कार किया.
सीएम धामी ने शासन ने मांगी गांवों की रिपोर्ट: उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही रीजन में चुनाव बहिष्कार की खबरों के बाद राज्य सरकार ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मतदान समाप्त होने के बाद रविवार को शासन से रिपोर्ट मांगी है कि आखिरकार कौन-कौन से गांव और किन-किन समस्याओं की वजह से मतदान बहिष्कार में शामिल हुए. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने प्रमुख सचिव आर के सुधांशु से तमाम गांव की नाराजगी की रिपोर्ट मंगा कर उसे पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.
उत्तराखंड में लगभग 35 गांव ने चुनाव बहिष्कार सिर्फ इसलिए किया क्योंकि उनके गांव तक सड़क नहीं पहुंची है. कई गांव वालों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी मतदान नहीं किया है. ऐसा नहीं है कि यह कोई पहला मामला है, विधानसभा चुनाव में भी इन 35 गांव में से कई गांवों ने चुनाव बहिष्कार किया था. 2 साल बीतने के बाद भी आखिरकार प्रशासन ने क्या कुछ किया है इसकी रिपोर्ट भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मांगी है.
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद अब शासन 13 जिलों के जिलाधिकारी से उन गांव के बारे में पूरी जानकारी मांगी है जहां पर चुनाव बहिष्कार हुआ है. मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव आर के सुधांशु की मानें तो चुनाव बहिष्कार की घटना बेहद गंभीर है. आगे से ऐसा ना हो इसके लिए हम जल्द से जल्द कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. जिन गांवों तक सड़क नहीं पहुंची हैं, जिन गांवों में सड़क स्वीकृत हो गई है तब भी काम शुरू नहीं हो पाया है उनके बारे में भी हमने तत्काल प्रभाव से काम शुरू करने और लंबित मामलों को निपटाने के बारे में बातचीत की है. जल्द ही लोगों की समस्याओं का समाधान शुरू हो जाएगा.
फिलहाल इस मामले में सीएमओ ने जल्द से जल्द मामले निपटाने के निर्देश दिये हैं. कई गांव ऐसे हैं जहां पर सड़क इसलिए नहीं पहुंची है क्योंकि मामले वन भूमि के चक्कर में अटके हुए हैं. ऐसे में अगर सरकार इन गांवों की समस्या को सुलझा देती है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में इस तरह के चुनाव बहिष्कार नहीं होंगे. जिससे राज्य के वोटिंग परसेंटेज पर असर नहीं पड़ेगा.
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