प्रयागराज : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने हिंदी को बढ़ावा देने के साथ ही प्रोत्साहित करने की बात कही है.चंद्रचूड़ ने ये बातें संगम नगरी प्रयागराज में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के उदघाटन के मौके पर कही है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी में शिक्षा हासिल करने में ग्रामीण इलाके के छात्रों को परेशानियां होती है. यही नहीं छोटे शहरों और ग्रामीण परिवेश से आने वालों को कानून की पढ़ाई के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के मुकदमों और फैसलों को जानने समझने में दिक्कत होती है. इस वजह से हिंदी भाषा में एक समान शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए.
संगम नगरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का शुभारंभ: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के उद्घाटन समारोह में सीजेआई ने ना सिर्फ हिन्दी को बढ़ावा देने की बात कही बल्कि अपने भाषण की शुरुआत और अंत भी हिंदी में बोलकर ही की है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने भाषण की शुरुआत सीएम योगी और कार्यक्रम में मौजूद न्यायधीशों का अभिवादन करके किया.जबकि उन्होंने अपने भाषण को समाप्त करने से पहले कबीर दास का दोहा सुनाया.अति का भला न बोलना अति की भली चुप,अति का भला न बरसना अति की भली न धूप.इस दोहे को सुनाने के बाद उसका अर्थ बताते हुए सीजेआई ने अपने भाषण को समाप्त किया.
देश में हो हिन्दी में कानून की पढ़ाई: देश के चीफ जस्टिस ने यह भी बताया कि कानून को हर आदमी के पहुंच में लाने के लिए सर्वोच्च अदालत के 36 हजार से अधिक फैसलों का हिंदी में अनुवाद करवाया है.जिसके जरिये सभी लोग अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी मुकदमों को पढ़ सकें और लॉ के हिंदी भाषी वकीलों के साथ ही विधि के छात्र भी इन मुकदमों को पढ़कर कानून की शिक्षा हासिल कर सकें. इसी तरह से शिक्षण संस्थानों को भी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे अंग्रेजी की वजह से हिंदी भाषी कोई होनहार छात्र लॉ की पढ़ाई से वंचित न हो सके. चीफ जस्टिस ने कहा कि उत्तर प्रदेश में करीब तीन सालों तक कार्य करके उन्हें हिंदी भाषियों से बहुत कुछ सीखने को मिला. उन्होंने प्रयाजराज को अपना दूसरा घर बताया.
आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शिक्षण संस्थान करें मदद: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के मुद्दे को भी उठाते हुए कहा कि आज में समय में शिक्षण संस्थानों को समावेशी शिक्षा के साथ ही भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना होगा. सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को संस्थानों की ओर से ऐसी सुविधाएं देनी चाहिए जिससे कि वह मुख्य धारा में शामिल हो सके. सभी छात्रों के बीच समानता कायम रखने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय की होनी चाहिए.
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