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पैरेंट्स सावधान ! मोबाइल के उपयोग के बीच अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे बच्चे, अब वर्चुअल टच की जानकारी जरूरी - Virtual Touch Knowledge - VIRTUAL TOUCH KNOWLEDGE

बच्चे सोशल मीडिया के एडिक्ट होते जा रहे हैं, जिससे वे कई अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे हैं. इसका कारण उनकी नासमझी के साथ पेरेन्ट्स की लापरवाही भी है. इस संबंध में हाल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिभावकों, स्कूल और कॉलेजों को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें. बच्चों और टीनएजर्स को गुड टच, बैड टच के संबंध में तो बताया जाता है, लेकिन उन्हें वर्चुअल टच के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जाती. क्या है वर्चुअल टच ? और क्या है इसके दुष्परिणाम देखिये इस रिपोर्ट में ...

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वर्चुअल टच की जानकारी (Etv bharat GFX Team)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 1, 2024, 9:40 AM IST

Updated : Jul 1, 2024, 9:51 AM IST

वर्चुअल टच की जानकारी (Etv Bharat)

जयपुर. डिजिटल क्रांति ने देश और दुनिया को नई राह दी है. डिजिटल युग में हर एक जानकारी मोबाइल के एक की-पैड पर सिमट कर रह गई, लेकिन यह साथ ही कुछ अनजान और अनचाहे खतरे भी लेकर आई है. खास तौर पर स्कूली बच्चों के लिए. एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार अब बच्चे वर्चुअल टच के शिकार हो रहे हैं. इस संबंध में पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने भी चिंता जाहिर की और अभिभावकों, स्कूल और कॉलेजों को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें. वर्चुअल टच शिकार हो रहे बच्चों को लेकर परिजनों की भी चिंता बढ़ गई, जबकि एक्सपर्ट अभिभावकों को बच्चों पर ज्यादा नजर रखने के साथ उनसे खुल कर बात करने की सलाह दे रहे हैं.

कोर्ट ने दी सलाह : अपनी व्यस्त जिन्दगी में से समय निकाल कर माता-पिता को अपने बच्चों को ऐसे खतरों से सावधान करने की जरूरत है. इस संबंध में हाल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिभावकों, स्कूल व कॉलेजों को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें. बच्चों व टीनएजर्स को गुड टच व बैड टच के संबंध में तो बताया जाता है, लेकिन उन्हें वर्चुअल टच के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जाती. कोर्ट ने कहा है कि अभिभावकों को अपने बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी देने के साथ-साथ स्कूल और कॉलेजों को भी इस संबंध में वर्कशॉप आयोजित करवानी चाहिए. ताकि बच्चे साइबर क्राइम का शिकार होने से बच सकें.

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मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो रहे बच्चें (File photo)

साइबर किडनेपिंग से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिगों में ऑनलाइन इंटरेक्शन बढ़ रहा है, उन्हें साइबर स्पेस में छिपे खतरों से बचाने के लिए वर्चुअल टच के विषय में शिक्षित करें.

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अनचाहे कॉन्टेंट से मूल उद्देश्य से भटक रहे बच्चे (Photo : Etv Bharat)

क्या है वर्चुअल टच : टीनएजर्स सोशल मीडिया के एडिक्ट होते जा रहे हैं, जिससे वे कई अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे हैं. मोबाइल पर बच्चों को अनचाहे कॉन्टेंट भी मिल रहे हैं जिससे बच्चे मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं. इसका कारण उनकी नासमझी के साथ पेरेन्ट्स की लापरवाही भी है. कांउसलर अंजू सोनी कहती हैं कि आजकल साइबर क्राइम काफी बढ़ रहा है. ऐसे में बच्चों को साइबर सिक्योरिटी और वर्चुअल टच की जानकारी देना आवश्यक है. जरूरी है कि नाबालिग समझें कि अगर कोई उनसे डबल मीनिंग बातें कर रहा है तो उसका मतलब क्या हो सकता है. देखा जाता है कि क्रिमिनल मांइड वाले लोग इस तरह की बातें करते हैं, इसके साथ अभिभावकों की बड़ी जिम्मेदारी है कि वो बच्चों से खुल कर बात करें, बच्चे अगर मोबाइल पर कुछ ऐसा देख रहे हैं जो उन्हें नही देखना चाहिए तो उन्हें डांटने की बजाए खुल कर बात करके समझाए कि इस तरह के वीडियो के क्या नुकसान है. अगर बच्चों को बिना समझाए उन्हें कुछ देखने के लिए मना करेंगे तो उनकी उत्सुकता ओर बढ़ेगी और वो छुपके से देखेंगे. इस लिए जरूरी है कि बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी अभिभावक भी दें. वर्चुअल टच के तहत टीनएजर्स को ऑनलाइन व्यवहार की जानकारी देनी चाहिए. इसमें उन्हें बताना चाहिए कि ऑन लाइन बातचीत के दौरान कोई आपको किस तरह के संकेत भेज सकता है, उनका मतलब क्या होता है ?

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गुड टच और बैड टच की जानकारी के साथ दें वर्चुअल टच की जानकारी (Photo : Etv Bharat)

इसे भी पढ़ें : पर्यावरण संरक्षण की अद्भुत नजीर अजमेर का पदमपुरा गांव, 700 सालों से नीम ही नारायण, कभी नहीं चली कुल्हाड़ी - Special Report

अभिभावकों को सजग होना होगा : अभिभावकों के रूप में डॉक्टर अनुपमा सोनी कहती हैं कि आज कल जिस तरह से डिजिटल क्रांति बढ़ी है, उससे हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है. अब बच्चे किस अनचाहे खतरे के बीच में हैं, इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी अभिभावकों की है. मैं एक 8 साल की लड़की और 14 साल के लड़के की मां हूं, ऐसे में हर वक्त डर बना रहता है कि बच्चों को मोबाइल क्या कुछ देखने को मिल जाये. बच्चों को गुड टच-बैड टच की जानकारी तो दी लेकिन ऐसे डिजिटल युग में वर्चुअल टच की जानकारी जरूरी है. मेरा तो सुझाव है कि कई बार अभिभावकों को बच्चों को घंटों-घंटों नहीं देखते की वो मोबाइल पर क्या देख रहा, सबसे पहले तो बच्चों पर नजर रखे. विश्वास अच्छी बात है, लेकिन सतर्कता बहुत जरूरी है. कुछ अनचाहे वीडियो मोबाइल या लैपटॉप पर काम करते हुए आ जाते है, बच्चे मासूम होते हैं उन्हें इस तरह से वीडियो के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी होनी चाहिए. साथ ही नाबालिगों को यह भी बताएं कि उन्हें प्राइवेसी सेटिंग कैसे करनी चाहिए. ऐसी प्राइवेसी सेटिंग्स के विषय में बताना, जिससे उन्हें किसी नुकसान होने से बचाया जा सके. उनके आस-पास ऑनलाइन सिक्योरिटी का खाका खींचा जा सके.

वर्चुअल टच की जानकारी (Etv Bharat)

जयपुर. डिजिटल क्रांति ने देश और दुनिया को नई राह दी है. डिजिटल युग में हर एक जानकारी मोबाइल के एक की-पैड पर सिमट कर रह गई, लेकिन यह साथ ही कुछ अनजान और अनचाहे खतरे भी लेकर आई है. खास तौर पर स्कूली बच्चों के लिए. एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार अब बच्चे वर्चुअल टच के शिकार हो रहे हैं. इस संबंध में पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने भी चिंता जाहिर की और अभिभावकों, स्कूल और कॉलेजों को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें. वर्चुअल टच शिकार हो रहे बच्चों को लेकर परिजनों की भी चिंता बढ़ गई, जबकि एक्सपर्ट अभिभावकों को बच्चों पर ज्यादा नजर रखने के साथ उनसे खुल कर बात करने की सलाह दे रहे हैं.

कोर्ट ने दी सलाह : अपनी व्यस्त जिन्दगी में से समय निकाल कर माता-पिता को अपने बच्चों को ऐसे खतरों से सावधान करने की जरूरत है. इस संबंध में हाल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिभावकों, स्कूल व कॉलेजों को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें. बच्चों व टीनएजर्स को गुड टच व बैड टच के संबंध में तो बताया जाता है, लेकिन उन्हें वर्चुअल टच के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जाती. कोर्ट ने कहा है कि अभिभावकों को अपने बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी देने के साथ-साथ स्कूल और कॉलेजों को भी इस संबंध में वर्कशॉप आयोजित करवानी चाहिए. ताकि बच्चे साइबर क्राइम का शिकार होने से बच सकें.

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मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो रहे बच्चें (File photo)

साइबर किडनेपिंग से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिगों में ऑनलाइन इंटरेक्शन बढ़ रहा है, उन्हें साइबर स्पेस में छिपे खतरों से बचाने के लिए वर्चुअल टच के विषय में शिक्षित करें.

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अनचाहे कॉन्टेंट से मूल उद्देश्य से भटक रहे बच्चे (Photo : Etv Bharat)

क्या है वर्चुअल टच : टीनएजर्स सोशल मीडिया के एडिक्ट होते जा रहे हैं, जिससे वे कई अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे हैं. मोबाइल पर बच्चों को अनचाहे कॉन्टेंट भी मिल रहे हैं जिससे बच्चे मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं. इसका कारण उनकी नासमझी के साथ पेरेन्ट्स की लापरवाही भी है. कांउसलर अंजू सोनी कहती हैं कि आजकल साइबर क्राइम काफी बढ़ रहा है. ऐसे में बच्चों को साइबर सिक्योरिटी और वर्चुअल टच की जानकारी देना आवश्यक है. जरूरी है कि नाबालिग समझें कि अगर कोई उनसे डबल मीनिंग बातें कर रहा है तो उसका मतलब क्या हो सकता है. देखा जाता है कि क्रिमिनल मांइड वाले लोग इस तरह की बातें करते हैं, इसके साथ अभिभावकों की बड़ी जिम्मेदारी है कि वो बच्चों से खुल कर बात करें, बच्चे अगर मोबाइल पर कुछ ऐसा देख रहे हैं जो उन्हें नही देखना चाहिए तो उन्हें डांटने की बजाए खुल कर बात करके समझाए कि इस तरह के वीडियो के क्या नुकसान है. अगर बच्चों को बिना समझाए उन्हें कुछ देखने के लिए मना करेंगे तो उनकी उत्सुकता ओर बढ़ेगी और वो छुपके से देखेंगे. इस लिए जरूरी है कि बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी अभिभावक भी दें. वर्चुअल टच के तहत टीनएजर्स को ऑनलाइन व्यवहार की जानकारी देनी चाहिए. इसमें उन्हें बताना चाहिए कि ऑन लाइन बातचीत के दौरान कोई आपको किस तरह के संकेत भेज सकता है, उनका मतलब क्या होता है ?

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गुड टच और बैड टच की जानकारी के साथ दें वर्चुअल टच की जानकारी (Photo : Etv Bharat)

इसे भी पढ़ें : पर्यावरण संरक्षण की अद्भुत नजीर अजमेर का पदमपुरा गांव, 700 सालों से नीम ही नारायण, कभी नहीं चली कुल्हाड़ी - Special Report

अभिभावकों को सजग होना होगा : अभिभावकों के रूप में डॉक्टर अनुपमा सोनी कहती हैं कि आज कल जिस तरह से डिजिटल क्रांति बढ़ी है, उससे हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है. अब बच्चे किस अनचाहे खतरे के बीच में हैं, इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी अभिभावकों की है. मैं एक 8 साल की लड़की और 14 साल के लड़के की मां हूं, ऐसे में हर वक्त डर बना रहता है कि बच्चों को मोबाइल क्या कुछ देखने को मिल जाये. बच्चों को गुड टच-बैड टच की जानकारी तो दी लेकिन ऐसे डिजिटल युग में वर्चुअल टच की जानकारी जरूरी है. मेरा तो सुझाव है कि कई बार अभिभावकों को बच्चों को घंटों-घंटों नहीं देखते की वो मोबाइल पर क्या देख रहा, सबसे पहले तो बच्चों पर नजर रखे. विश्वास अच्छी बात है, लेकिन सतर्कता बहुत जरूरी है. कुछ अनचाहे वीडियो मोबाइल या लैपटॉप पर काम करते हुए आ जाते है, बच्चे मासूम होते हैं उन्हें इस तरह से वीडियो के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी होनी चाहिए. साथ ही नाबालिगों को यह भी बताएं कि उन्हें प्राइवेसी सेटिंग कैसे करनी चाहिए. ऐसी प्राइवेसी सेटिंग्स के विषय में बताना, जिससे उन्हें किसी नुकसान होने से बचाया जा सके. उनके आस-पास ऑनलाइन सिक्योरिटी का खाका खींचा जा सके.

Last Updated : Jul 1, 2024, 9:51 AM IST
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