लखनऊ: अगर आपके बच्चे में सब्र करने की बिल्कुल भी क्षमता नहीं है, तो समझ लीजिए आपके बच्चे को अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर (एडीएचएडी) हैं. हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक यह कोई जन्मजात बीमारी नहीं है. इलाज से इस बीमारी को रोका जा सकता है.
ध्यान भटकाने की करें कोशिश: डॉ. गरिमा के मुताबिक इन बच्चों को एक साथ लंबे समय तक नहीं बैठाए. 20 से 25 मिनट बाद उन्हें ध्यान भटकाने के लिए बाहर भेजें. शांत माहौल मुहैया कराएं. क्लास में पहली और दूसरी लाइन में बैठाएं. उन्होंने बताया, कि वे बच्चे माता-पिता या शिक्षक के सामने कम गलतियां करते हैं, लेकिन अकेले लिखने में सामान्य से ज्यादा गलतियां करते हैं.
डॉ. गरिमा ने बताया, कि एडीएचडी बच्चे के शरीर पर शारीरिक रूप से भी असर करता है. वे स्थिर होकर एक जगह नहीं बैठ पाते हैं. आमतौर पर आपकी सीट पर टैप करते या भागते रहते हैं. जब उन्हें बैठने के लिए कहा जाता है, तो वे 20 मिनट तक स्थिर नहीं बैठ पाते हैं. वे ज्यादा बात कर सकते हैं और बातचीत को बनाए रखने में परेशानी हो सकती है. वे इधर-उधर भागते भी रह सकते हैं. इन कारणों से उन्हें दोस्त बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.
इन बातों का रखें ध्यान: अतिसक्रिय - बच्चा बेचैन महसूस करता है. अपने इमप्लसिव बिहेवियर को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. असावधान, ध्यान न देना, इसमें बच्चे का ध्यान भटकता रहता है, बच्चा किसी पर फोकस नहीं कर पाता है. दोनों संकेतों का संयोजन - ऊपर लिखे दोनों संंकेत बच्चों में दिखते हैं.
लक्षण: डॉ. गरिमा ने बताया, कि ऐसे बच्चों को संभालना मुश्किल होता है. वह कम उम्र से ही चिड़चिड़े या आक्रामक होते हैं. उनमें आगे चलकर व्यवहार संबंधी विकार विकसित होने की संभावना अधिक होती है. किसी को भी बोलने का मौका नहीं देंगे. उन्हें अपनी बात रखने की इतनी जल्दबाजी होती है, कि अपनी बात तुरंत रखना चाहेंगे.