छिंदवाड़ा: कन्हान नदी पर बांध बनाने को लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बीच परेशानी बढ़ गई है. दरअसल महाराष्ट्र उसके हिस्से का पानी लावाघोघरी में बांध बनाकर लेना चाह रहा है. उसकी योजना कन्हान नदी पर लावाघोघरी के पास बांध बनाकर टनल के जरिए तोतलाडोह डेम तक पानी ले जाने की है. जबकि मध्य प्रदेश खुद छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के तहत लावाघोघरी के नजदीक कोहटमाल में संगम टू बांध सहित अन्य 3 बांधों का निर्माण कर रहा है. जिसका उद्देश्य छिंदवाड़ा-पांढुर्ना जिले की करीब 1 लाख 90 हजार 500 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करना है.
क्यों बन रही है विवाद की स्थिति
एमपी कन्हान नदी से अपने हिस्से का पूरा 10 टीएमसी पानी लेने की बात महाराष्ट्र से कह रहा है. छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के तहत मध्य प्रदेश खुद लावाघोघरी के पास संगम टू बांध सहित अन्य 3 बांधों का निर्माण कर रहा है और यहीं लावाघोघरी के पास महाराष्ट्र भी बांध बनाकर अपने हिस्से का पानी लेना चाह रहा है. उसकी योजना बांध बनाकर टनल के जरिए तोतलाडोह डेम तक पानी ले जाने की है. इसी बात को लेकर दोनों राज्यों में तकरार हो रही है. मध्य प्रदेश के अधिकारियों का कहना है कि महाराष्ट्र को अपने हिस्से का पानी बार्डर से लेने की बात कही है.
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के अधिकारियों की कमेटी गठित
पिछले दिनों दोनों राज्यों के इंटर स्टेट बोर्ड की बैठक में पानी को लेकर चर्चाएं हुई हैं. दोनों राज्यों के बीच एसीएस स्तर के अधिकारियों की यह वर्चुअल मीटिंग थी. कन्हान नदी के पानी को लेकर दोनों राज्य अपने-अपने तर्कों के साथ अड़े हुए हैं. इंटर स्टेट बोर्ड की बैठक के बाद दोनों राज्य के जल संसाधन विभाग के 4 अधिकारियों की कमेटी गठित की गई है. इस टीम में मध्यप्रदेश के चीफ इंजीनियर भोपाल, चीफ इंजीनियर बैन गंगा कछार, महाराष्ट्र से नागपुर के चीफ इंजीनियर और अधीक्षण यंत्री को शामिल किया गया है. कमेटी को बैठक कर हल निकालने के लिए कहा गया है.
एमपी के हिस्से में बना बांध तो किसानों का बड़ा नुकसान
महाराष्ट्र का कन्हान नदी पर सीआईसी के प्रस्तावित रामघाट और संगम टू बांध के बीच यानि लावाघोघरी के पास बांध बनाकर टनल से पानी ले जाने के प्रस्ताव को मान लिया जाता है तो छिंदवाड़ा-पांढुर्ना जिले को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. पहले दिए गए प्रपोजल के अनुसार यहां बांध बनाकर महाराष्ट्र हमें सिर्फ 4 टीएमसी पानी देगा, जिससे महज 25 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकेगी. जबकि हमारे जिले की हजारों हेक्टेयर जमीन जाएगी. जिसमें करीब 1 हजार हेक्टेयर जंगल भी शामिल है. जबकि छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के तहत बन रहे बांधों से छिंदवाड़ा-पांढुर्ना जिले की करीब 1 लाख 90 हजार 500 हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित हो सकेगी. पेयजल के लिए भी पानी मिलेगा साथ ही बिजली का उत्पादन भी हो सकेगा.
कन्हान नदी में पानी की स्थिति
साल 1978 में सेंट्रल वॉटर कमीशन द्वारा की गई कन्हान नदी में यील्ड सर्वे यानी पानी की आवक की गणना के मुताबिक यील्ड 60 टीएमसी (थाउसेंट मिलियन क्यूबिक फीट) थी. साल 2004 में यील्ड की पुनरीक्षित गणना सेंट्रल वॉटर कमीशन ने की. जिसमें कन्हान नदी की यील्ड 60 से घटकर महज 39.83 टीएमसी निकली. यानी नदी में पानी की आवक पहले की तुलना में काफी घट गई.
समझौते के अनुसार किस राज्य को कितना पानी
गोदावरी ट्रिब्यूनल के साल 1978 में हुए समझौते व अनुबंध के मुताबिक महाराष्ट्र को करीब 25 फीसदी यानि 10 टीएमसी पानी कन्हान नदी से लेना है. कुल 39.83 टीएमसी पानी महाराष्ट्र को 10 टीएमसी पानी देने के बाद बाकी पानी पर मध्य प्रदेश का अधिकार है. जिसका उपयोग अब छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के जरिए बांध बनाकर करने की तैयारी है.
माचागोरा बांध के दौरान भी महाराष्ट्र ने उठाई थी आपत्ति
कन्हान नदी पर छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के तहत बांधों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने पर महाराष्ट्र फिर सक्रिय हो गया है. इसी तरह का अड़ंगा माचागोरा बांध निर्माण के दौरान भी पेंच नदी के पानी को लेकर महाराष्ट्र ने अड़ंगा लगाया था.
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'समाधान के लिए 4 अधिकारियों की टीम गठित'
सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर एके डेहरिया ने बताया कि "कन्हान नदी पर मध्य प्रदेश सरकार छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के तहत बांध का निर्माण कर रही है. जबकि महाराष्ट्र हमारे रामघाट और संगम टू बांध के बीच बैराज बनाकर पानी ले जाने की बात कह रहा है. हमने महाराष्ट्र को अपने हिस्से का पानी बार्डर से लेने की बात कही है. मामले के समाधान के लिए दोनों राज्य के जल संसाधन विभाग के 4 अधिकारियों की टीम गठित की गई है".