छिंदवाड़ा। प्रकृति ने हमें ऐसी कई अद्भुत और रहस्यमई चीजें दी हैं, जिनकी अगर हमें जानकारी है तो वह हमारे लिए बेशकीमती हैं नहीं तो फिर अधूरी जानकारी खतरनाक भी साबित होती है. ऐसा ही एक जंगली पौधा है जिसे भूलनबेल कहा जाता है. ग्रामीणों के बीच ऐसा कहा जाता है कि जो इस भूलनबेल के पौधे को क्रॉस कर लेता है, वह रास्ता भटक जाता है. अधिकतर इसे तंत्र क्रिया के लिए उपयोग किया जाता है. इसके अलावा यह आयुर्वेद में कई दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है.
अगर क्रॉस कर लिया ये पौधा तो भटक जाओगे रास्ता?
वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि "भूलनबेल के नाम से विख्यात यह पौधा घने जंगलों में पाया जाता है. जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं, लेकिन किस्से कहानियां जरूर सभी ने सुनी होंगी. छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट के भारिया जनजाति के लोगों का मानना है कि जिस स्थान पर यह पौधा पाया जाता है, उसके ऊपर से गुजरने वाले लोग अपना रास्ता भटक जाते हैं जिसके लिए कहावत भी है कि अगर कोई आने में देरी कर देता है तो उसके लिए कहा जाता है भूलनबेल लग गयी थी क्या ?"
तंत्र साधना के लिए किया जाता है उपयोग
वैसे इस पौधे का सबसे अधिक उपयोगी तंत्र सिद्धि के लिए किया जाता है. इस पौधे का जनजातियों में इतना खौफ है कि कई लोग तो इसका नाम लेने से कतराते हैं. आदिवासियों का कहना है कि अघोरी लोग इसे अपने तंत्र साधना के लिए उपयोग करते हैं. वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि "यह एक फर्न प्रजाति का पौधा है जो कि टेरिडोफाइट समूह का सदस्य है. सभी टेरिडोफाइट के विपरीत यह बेल के रूप में पाया जाता है इसीलिये क्लाइंबिंग फर्न के नाम से जाना जाता है. यह एक दुर्लभ पौधा है जो अब बहुत कम स्थानों में बचा रह गया है. इसकी विशेष प्रकार की पत्तियां जो की स्पोरोफिल कहलाती हैं. यह एक महत्वपूर्ण औषधि भी है, जिसका प्रयोग बुखार, दाद-खाज व अन्य त्वचा रोगों साथ ही पीलिया, टाइफाइड, पुराने घावों को भरने, कृमि नाशक के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है."
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हर जड़ी बूटियों का आयुर्वेद में है खास स्थान
वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा कहते हैं कि ''प्रकृति ने जीवन जीने के लिए जो चक्र बनाया है, उसमें हर एक वस्तुओं का अपना विशेष स्थान है. इसी प्रकार हर पेड़ पौधे का अलग-अलग उपयोग है. उनकी सही जानकारी अहम होती है. आदिवासी ग्रामीण अंचलों में अलग-अलग कहावत और किवदंतियां होती हैं, लेकिन इनका वैज्ञानिक जीवन में कोई आधार समझ में नहीं आता है.''