भोपाल। लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी कमलनाथ के गढ़ में बड़ी सेंध लगाने में कामयाब हो गई. कमलनाथ के बेहद करीबी और पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना ने बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ आखिरकार बीजेपी का दामन थाम लिया है. दीपक सक्सेना के बेटे अजय सक्सेना करीब 15 दिन पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे और उसके साथ ही दीपक सक्सेना ने भी कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि इसके बाद कमलनाथ, दिग्विजय सिंह ने उन्हें मनाने की खूब कोशिश की.
दीपक सक्सेना के पहले छिंदवाड़ा लोकसभा के एक विधायक और महापौर पहले ही बीजेपी में आ चुके हैं. दीपक सक्सेना को बीजेपी की सदस्यता दिलाते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि 'एक पर्दा पड़ा हुआ था, लोकतंत्र का कहीं अपमान होता था, तो वह छिंदवाड़ा में होता था. अब दीपक सक्सेना बीजेपी में आए हैं और जहां दीपक होता है वहां उजाला होता है.
बोले 44 साल का साथ छोड़ने का दुख है
दीपक सक्सेना पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से पिछले करीबन 44 सालों से जुड़े रहे हैं. बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा कि '44 साल एक लंबा वक्त होता है, जो उन्होंने कमलनाथ के साथ बिताया है. उनका साथ छोड़ने का दुख है, लेकिन क्षेत्र के विकास के लिए बीजेपी में आना जरूरी हो गया था.' हालांकि उन्होंने कमलनाथ पर कोई सीधा निशाना नहीं साधा. हालांकि उनके बेटे अजय सक्सेना ने इसे आत्म सम्मान की लड़ाई बताया है. उन्होंने नकुलनाथ को निशाने पर लेकर आरोप लगाया कि नकुल नाथ के नेतृत्व में पिछले 6 साल में पार्टी दिशाहीन होती जा रही है. कमलनाथ हमारे सर्वमान्यनेता थे और रहेंगे. मेरे लिए वे पिता की तरह हैं, लेकिन पिछले 6 साल से पिता का अपमान हो रहा है.
सीएम घर पहुंचे थे मिलने
पिछले दिनों अजय सक्सेना के बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही दीपक सक्सेना का भी बीजेपी में आना तय माना जा रहा था. 26 मार्च को मुख्यमंत्री मोहन यादव पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे. इस दौरान सीएम के साथ उनकी बंद कमरे में बैठक भी हुई थी.
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4 बार विधायक, 2 बार मंत्री रहे सक्सेना
दीपक सक्सेना पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सबसे करीबी नेताओं में रहे हैं. कमलनाथ ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे. दीपक सक्सेना ने 7 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 4 बार विधायक रहे. वे दिग्विजय सिंह सरकार में 2 बार मंत्री भी बने. 2018 के विधानसभा चुनाव में वे जीते, लेकिन कमलनाथ के लिए अपनी जीती जिताई सीट से इस्तीफा दे दिया और फिर उपचुनाव में इसी सीट से जीतकर कमलनाथ मुख्यमंत्री बने.