छिंदवाड़ा। 8 मार्च यानि की शुक्रवार को महाशिवरात्रि है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का विवाह माता पार्वती के साथ रचाया जाता है. ढोल-नगाड़ों के साथ महादेव की बारात निकलती है. ऐसे में सतपुड़ा सुरम्य वादियों में विराजे बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए छिंदवाड़ा के सांगाखेड़ा से होकर भक्तों को जाना पड़ता है. सांगाखेड़ा के पास नांदिया गांव में भूरा भगत की प्रतिमा विराजित है. जो चौरागढ़ में भगवान महादेव के दर्शन करने वाले लोगों के लिए रास्ता बताते हैं. जानिए क्या है महादेव की महिमा.
छिंदवाड़ा और नर्मदापुरम प्रशासन करता है आयोजन
मध्य प्रदेश का अमरनाथ कहे जाने वाले चौरागढ़ महादेव मेले का आयोजन नर्मदापुरम और छिंदवाड़ा जिले का प्रशासन मिलकर करवाता है. छिंदवाड़ा जिले और नर्मदापुरम जिले से होकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए लोग ऊंची पहाड़ी पर पहुंचते हैं. कहावत है कि, महादेव के पास जाने से पहले भूरा भगत को पार करना आवश्यक है. भूरा भगत के पीछे एक कहानी है. बताया जाता है भूरा भगत बचपन से ही प्रभु की आराधना में लीन रहते थे. एक बार भजन के दौरान वे समाधि में चले गए. चौबीस घंटे बाद उनकी समाधि टूटी. उसके बाद वे घर त्यागकर प्रभु की भक्ति में लीन हो गए. किवदंतियों के अनुसार चौरागढ़ की पहाड़ियों में साधना के दौरान महादेव के दर्शन उन्हें हुए.
दुर्गम पहाड़ियों के बीच रास्ता बताते हैं भगत
स्थानीय लोग बताते हैं की पुरानी कहावत है कि जब भगवान ने भूरा भगत दर्शन दिए और उन्होंने उनसे वरदान मांगने को कहा, तो भूरा भगत ने महादेव से वरदान मांगा कि, मैं आपके ही चरणों में रहूं और यहां आने वाले को आपका रास्ता बता सकूं. भूरा भगत में एक शिला के रूप में वे मौजूद हैं. संत भूराभगत की प्रतिमा ऐसे स्थान पर विराजमान है. जिसे देखने से अनुमान लगता है, मानों भगवान भोलेनाथ के मुख्यद्वार पर द्वारपाल की तरह वे बैठे हों. उसी के कारण यहां भी मेला भरता है.
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ये है यहां की मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव भस्मासुर से छिपने के लिए चौरागढ़ की चोटी पर पहुंचे थे. जहां महादेव ने चौरागढ़ पर अपने त्रिशूल को छोड़ा था. जिसके बाद से ही यहां लोग अपनी अर्जी लेकर आने लगे. श्रद्धालुओं में यहां त्रिशूल चढ़ाने की परम्परा है. जिसके बाद विशेष रूप से महाराष्ट्र से आने वाले श्रद्धालु कुंडल वजनी त्रिशूल यहां पर लेकर आते हैं और भगवान शिव को अर्पित करते हैं. यहां प्राचीन समय में मराठों का सम्राज्य था.