छतरपुर: बुंदेली कला, संस्कृति, रहन-सहन और खानपान को जीवित रखने के लिए एक युवा ने यहां पूरा इकोसिस्टम बना दिया है. दरअसल, छतरपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर केन नदी के किनारे जंगल में बुंदेली विरासत नामक होम स्टे स्थित है. यहां आने वाले पर्यटकों को बुंदेली कला, गीत-संगीत, रहन-सहन, वातावरण के साथ बुंदेली व्यंजनों का आनंद मिलता है. इस वजह से पर्यटक शहर की आपाधापी से दूर यहां सुकून के कुछ पल बिताने आते हैं और यहां बुंदेली कल्चर के साथ लजीज व्यंजनों का आनंद लेते हैं.
बुंदेली लोकगीतों पर जमकर झूमे पर्यटक
बुंदेली विरासत होम स्टे में इस समय सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे हैं. गुरुवार को यहां पहुंचे पर्यटकों ने बुंदेली लोकगीतों और खानपान का आनंद लिया. बुंदेलखंड का ग्रामीण कल्चर देखने आई महिलाओं ने बुंदेली गीतों पर जमकर ठुमके भी लगाएं. इस अवसर पर बुंदेलखंड की जानी मानी गायिका कविता शर्मा और बुंदेली गायक परशुराम अवस्थी ने बुंदेली गीतों से समा बांध दिया. कविता शर्मा ने जब 'अगड़म बगड़म' और 'सैया मिले लरकइया' गीत गाया तो पर्यटक अपने आप को झूमने से रोक नहीं पाए.
पर्यटकों ने चखे एक से एक बुंदेली व्यंजन
आयोजन के दौरान लोगों को बुंदेली व्यंजन परोसे गए, जिसमें कढ़ी, ठालुडा, मालपुआ, गुलगुला, चूल्हे पर बनी रोटी, बैगन का भर्ता जैसे लजीज व्यंजन शामिल थे. आंवला की सिलबट्टे पर पिसी चटनी को देखकर लोगों के मुंह में पानी आ गया. होम स्टे में पहुंचने वाले पर्यटकों का यहां बुंदेली अंदाज में स्वागत किया गया. महिलाओ ने सिर पर कलश रखकर तिलक लगाकर सभी का स्वागत किया.
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नया साल नहीं, मकर संक्रांति पर रहती है धूम
बुंदेली विरासत होम स्टे आए पर्यटकों को घुड़सवारी कराई गई. महिलाओं को मेहंदी के साथ मिट्टी के सामान बनाना सिखाया गया. यहां ग्रामीण इलाकों की तर्ज पर चाय की दुकान लगाई गई, जहां लोगों ने चाय की चुस्कियों के साथ बुंदेली मंगोड़ी का मजा लिया. होम स्टे के संचालक कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया, " अभी हर जगह लोगों ने नव वर्ष मनाया, लेकिन बुंदेलखंड में 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का कोई खास रिवाज नहीं है. यहां मकर संक्रांति पर धूम रहती है. यहां पूरे रीति रिवाज के साथ मकर संक्रांति मनाई जाती है. ये जश्न कई दिनों तक चलता है. "