शिवहर: बाढ़ में अपना सबकुछ खो चुके हैं. एक रात तरियानी छपरा तटबंध टूट गया और पानी की तेज धार में हमारा घरबार सबकुछ बह गया. लेकिन जो भी हो जाए हम इस साल भी छठी मैया की पूजा कर रहे हैं. कुछ नहीं है मेरे पास लेकिन मांग चांग कर भी पूजा तो करना है. तरियानी छपरा तटबंध में रह रही शांति देवी हर साल की तरह इस साल भी लोक आस्था का महापर्व छठ कर रही हैं.
शिवहर में बाढ़ पीड़ित कर रहे छठ: वहीं बाढ़ में अपना सबकुछ खो चुकी लालती देवी कहती है कि हमारे पास आज कुछ नहीं बचा है. बता दें कि जिस तटबंध ने टूट कर लोगों का आशियाना छीन लिया, वही तटबंध अब 300 से अधिक पीड़ितों के लिए पनाहगार बना है. तबाही का पानी आस्था का प्रतीक बन गया है. बाढ़ की तबाही और विस्थापन की पीड़ा के बावजूद लोगों की आस्था की डोर कमजोर नहीं हुई है. हालत यह कि जिस बागमती ने विस्थापन का दर्द दिया है अब उसे पूजने की तैयारी है.
"जैसे भगवान पार लगा दे. जो सरकार करे या हमें मांगना पड़े लेकिन छठ तो करना पड़ेगा. छठी मैया से पति बच्चों के लिए दुआ कर रहे हैं."- शांति देवी, छठव्रती
"छठी मैया जो करते हैं वही होता है. सब तो बह गया है, सिर्फ हमारी जान बची है. अब बांध में ही छठ करेंगे."- चिंता देवी, छठव्रती
"मां से मदद मांग रहे हैं, लेकिन गांव की स्थिति इतनी खराब है कि पूजा के लिए आवश्यक चीजें भी नहीं जुटा पा रही हैं. मेरा घर तो पानी में बह गया."- सिया देवी, छठव्रती
बाढ़ के पानी में देंगे अर्घ्य: शिवहर जिले के तरियानी छपरा स्थित बागमती नदी तटबंध टूटने से कई परिवार अपना घरबार खो चुके हैं. बाढ़ पीड़ितों के घरों में पानी रहने के चलते व्रती जहां तटबंध पर ही छठ महापर्व करेंगे. वहीं टूटे तटबंध के चलते बह रहे बाढ़ के पानी में ही आस्था का अर्घ्य देंगे.
120 व्रती करेंगे छठ: बता दें कि 29 सितंबर को तटबंध टूटने के कारण तरियानी छपरा के 4600 लोग बेघर हो गए थे. जैसे-जैसे बाढ़ का पानी उतर रहा है वैसे-वैसे लोग वापिस घर लौट रहे है, लेकिन अब भी 300 लोग तटबंध पर ही रह रहे हैं. जिनकी नवरात्रि व दीपावली के बाद अब छठ भी तटबंध पर ही गुजरेगी. यहां रह रहे 120 व्रती छठ महापर्व की तैयारी में जुट गए हैं. इनमें 80 महिलाएं शामिल हैं.
छठ के गीतों से गूंजा तरियानी तटबंध: 300 लोग अब भी तटबंध पर पॉलिथीन टांग कर रहने को विवश हैं. वक्त गुजरने के साथ लोगों ने यहां मजबूरी के बीच जीना सीख लिया है. हालांकि अब तटबंध पर रह रहे महिला व पुरुष सहित 120 लोग छठ की तैयारी में जुट गए हैं. मिट्टी के चूल्हे बनाने के लिए महिलाएं मिट्टी काट कर ला रही हैं. गेहूं धोने व सुखाने का काम चल रहा है. वहीं छठ गीतों की गूंज भी सुनाई देने लगी है. यहां के लोग तटबंध पर ही खरना करेंगे और इसी टूटे तटबंध के पास बागमती नदी में आस्था का अर्घ्य देंगे.
"कैसे पूजा करेंगे. कुछ नहीं है. सब पानी में बह गया. मांगकर पूजा करेंगे. लोगों की मदद मिलेगी तो ठीक है नहीं तो पान सुपारी फूल से करेंगे."- यशोदा देवी, छठव्रती
जब सरकार कोई सहायता नहीं दे रही है, तो क्या करें? "हमने सभी से गुहार लगाई हैं, लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला. जिनके पास घर है, उन्हें लाभ मिल रहा है, जबकि जिनके पास कुछ नहीं है, उन्हें कोई सहायता नहीं मिल रही. हम बस यही मांग रहे हैं कि मां हमें रहने के लिए घर दे और सहारा दे."- रजिया देवी, छठव्रती
35 साल से छठ कर रही हैं राम सिंहासन देवी: बता दें कि तटबंध पर रह रही 55 वर्षीया राम सिंहासन देवी पिछले 35 वर्षों से छठ का व्रत रख रही हैं. कह रही है कि 35 वर्षों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब घर के बाहर तटबंध पर छठ का व्रत करेंगी. बताती है कि छठ महापर्व का काफी महत्व है. सूरज देव और छठी मैया ने अबतक सारे दुख दूर किए हैं. इस बार भी छठी मैया बेड़ा पार लगाएगी.
सभी को घर वापसी का इंतजार: इसी तटबंध पर छठ की तैयारी में जुटी देवकी देवी बताती है कि छठी मैया बाढ़ से मुक्ति दिलाएगी और हमारी घर वापसी होगी. बाढ़ की पीड़ा के बावजूद आस्था कम न हुई है और न होगी. बताती हैं कि इस व्रत से जुड़ी आस्था की डोर काफी मजबूत है. हां- परदेस में रह रहे स्वजन इस बार छठ पर घर नहीं आ पाएंगे. वजह घर में पानी है. परिवार के कुछ सदस्यों के साथ मैं तटबंध पर रह रही हूं. परदेसी आएंगे तो कहां रहेंगे. सुगंधी देवी, भारती देवी, राम संजीवन देवी, देवकलिया देवी, मनोरथ सहनी व दिगंबर प्रसाद आदि बताते हैं कि यह परीक्षा की घड़ी है. हम प्रतीक्षा कर रहे हैं. छठ बाद हमारी घर वापसी होगी. छठी मैया की कृपा बरसेगी.
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