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बुंदेलखंड का पान कभी पाकिस्तान और बांग्लादेश के होंठ करता था लाल,आज बर्बादी की कगार पर खेती

छतरपुर के गढ़ीमलहरा और महाराजपुर के पान की डिमांड विदेशों तक थी लेकिन अब मुनाफा कम और लागत ज्यादा के चलते कारोबार सिमट रहा है.

CHHATARPUR BETEL FARMING SHRINK
बुंदेलखंड में सिमट रही पान की खेती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 3 hours ago

छतरपुर: देश के कई हिस्सों में पान आज भी परंपरा का हिस्सा है. पूजा-पाठ से लेकर देसी माउथ फ्रेशनर के रूप में इसका इस्तेमाल होता है. वैसे तो पान की खेती पूरे भारत में की जाती है लेकिन ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड भी इसके लिए मशहूर था. बुंदेलखंड के पान की मांग पाकिस्तान और बांग्लादेश तक थी. छतरपुर जिले के गढ़ीमलहरा और महाराजपुर के अलावा आस-पास के गांवों में बड़े पैमाने पर पान की खेती होती थी और किसानों को इससे अच्छी कमाई होती थी. साल 2001 के बाद से माहौल धीरे-धीरे पूरी तरह बदल गया. अब आलम यह है कि यहां का किसान अपनी पान की खेती को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

कभी थे 1000 पान बरेजे, घटकर पहुंचे 45

अपने अलग खास स्वाद और तासीर के लिए पहचाने जाने वाला साधारण सा पान का पत्ता अब समय के साथ-साथ असाधारण होता जा रहा है. जिस पान की फसल और व्यवसाय से हजारों लोगों को रोजगार मिलता था अब वह आंकड़ा धीरे-धीरे सिमटने लगा है.
लगातार पान बरेजों में नुकसान होने से इसकी खेती लगातार सिमटती जा रहा है. जिसका मुख्य कारण असमान्य बारिश और गर्मी के साथ अधिक सर्दी पड़ना है. साथ ही यहां स्थापित पान अनुसंधान केंद्र को नौगांव शिफ्ट कर बंद करना भी एक कारण है.

छतरपुर जिले में पान किसानों की बड़ी परेशानी (ETV Bharat)

गढ़ीमलहरा और महाराजपुर में एक हजार से अधिक पान बरेजे लगाए जाते थे उनकी संख्या घटकर मात्र 45 रह गई है. पान की खेती का रकबा घटने के पीछे कई कारण हैं. जिनमें युवा पीढ़ी की रुचि में कमी, श्रमिकों की कमी, बढ़ती लागत, मौसम की अनिश्चितता, और बीमारियों का प्रकोप प्रमुख हैं. हालांकि, पान की खेती एक समय में यहां के किसानों के लिए समृद्धि का स्रोत थी लेकिन अब यह खेती चुनौतियों के कारण सिमटती जा रही है.

bundelkhand Pan ki Kheti
बुंदेलखंड में पान की खेती (ETV Bharat)

एक बरेजे में लाखों का है खर्च

एक पान बरेजे में 80 से 100 पारी होती हैं. जिसे 10 से 12 किसान आपस में मिलकर तैयार करते हैं. इस एक पारी को तैयार करने में किसान को 9 से 10 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इस प्रकार एक पान बरेजे की लागत लाखों के करीब पहुंच जाती है. हर साल मार्च माह में लगाए जाने वाले बरेजे में अधिक गर्मी, अधिक सर्दी, अधिक भारिश और अज्ञात बीमारी से नुकसान होता ही है, साथ ही तेज आंधी और तूफान से पान बरेजे धराशायी हो जाते हैं.

betel farming business down
बर्बादी की कगार पर पान की खेती (ETV Bharat)

बुंदेलखंड में पान की खेती का इतिहास

पान की खेती का अलग ही इतिहास है. 1707 ईसवी में महाराज छत्रसाल ने जब महराजपुर नगर बसाया उस समय यहां के लोगों को रोजगार के साधन के लिए पान की खेती शुरू कराई गई. पान की खेती के गुर और ज्ञान के लिए महोबा के पान किसानों का सहारा लिया गया. तभी से यह खेती इस जिले के साथ, पन्ना , दमोह , सागर और टीकमगढ़ जिले तक फैली. मुख्य तौर से देसी पान की खेती छतरपुर जिले में ही होती है.

'सरकार से मिलने वाली मदद बंद'

पान किसान संजय कुमार चौरसिया ने बताया कि "यह देशी पान कई बीमारी भी ठीक करता है,अगर आपको खांसी है तो पान चवा लो खांसी सही हो जाएगी. आज पान की खेती को खुद बीमारी लग लग गई है. सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही जबकि पहले कुछ मदद मिल जाती थी अब वह भी बंद हो गई. नई पीढ़ी कोई रुचि नहीं लेती. इसलिए धीरे धीरे पान की खेती खत्म हो रही है." वहीं गढ़ीमलहरा निवासी जगदीश चौरसिया बताते हैं कि "यह पान आज भी लखनऊ, रामपुर, मुरादाबाद, सतना सहित एमपी,यूपी के कई जिलों में छतरपुर का पान जाता है. कभी बुंदेलखंड के पान की मांग पाकिस्तान और बांग्लादेश तक थी."

'25 हजार का अनुदान देती है सरकार'

उद्यानिकी विभाग के संचालक जेके मुजालकार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि "छतरपुर के महाराजपुर, गढ़ीमलहरा और पिपट,पनागर में आज भी पान की खेती होती है. लगभग 200 लोग इसकी खेती करते हैं. किसानों को पान के उत्पादन का मूल्य बाजार में कम मिलता है जिस कारण पान किसान का रुझान खेती से कम हो रहा है. सरकार द्वारा 25 हजार का अनुदान पान किसान को दिया जाता है."

छतरपुर: देश के कई हिस्सों में पान आज भी परंपरा का हिस्सा है. पूजा-पाठ से लेकर देसी माउथ फ्रेशनर के रूप में इसका इस्तेमाल होता है. वैसे तो पान की खेती पूरे भारत में की जाती है लेकिन ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड भी इसके लिए मशहूर था. बुंदेलखंड के पान की मांग पाकिस्तान और बांग्लादेश तक थी. छतरपुर जिले के गढ़ीमलहरा और महाराजपुर के अलावा आस-पास के गांवों में बड़े पैमाने पर पान की खेती होती थी और किसानों को इससे अच्छी कमाई होती थी. साल 2001 के बाद से माहौल धीरे-धीरे पूरी तरह बदल गया. अब आलम यह है कि यहां का किसान अपनी पान की खेती को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

कभी थे 1000 पान बरेजे, घटकर पहुंचे 45

अपने अलग खास स्वाद और तासीर के लिए पहचाने जाने वाला साधारण सा पान का पत्ता अब समय के साथ-साथ असाधारण होता जा रहा है. जिस पान की फसल और व्यवसाय से हजारों लोगों को रोजगार मिलता था अब वह आंकड़ा धीरे-धीरे सिमटने लगा है.
लगातार पान बरेजों में नुकसान होने से इसकी खेती लगातार सिमटती जा रहा है. जिसका मुख्य कारण असमान्य बारिश और गर्मी के साथ अधिक सर्दी पड़ना है. साथ ही यहां स्थापित पान अनुसंधान केंद्र को नौगांव शिफ्ट कर बंद करना भी एक कारण है.

छतरपुर जिले में पान किसानों की बड़ी परेशानी (ETV Bharat)

गढ़ीमलहरा और महाराजपुर में एक हजार से अधिक पान बरेजे लगाए जाते थे उनकी संख्या घटकर मात्र 45 रह गई है. पान की खेती का रकबा घटने के पीछे कई कारण हैं. जिनमें युवा पीढ़ी की रुचि में कमी, श्रमिकों की कमी, बढ़ती लागत, मौसम की अनिश्चितता, और बीमारियों का प्रकोप प्रमुख हैं. हालांकि, पान की खेती एक समय में यहां के किसानों के लिए समृद्धि का स्रोत थी लेकिन अब यह खेती चुनौतियों के कारण सिमटती जा रही है.

bundelkhand Pan ki Kheti
बुंदेलखंड में पान की खेती (ETV Bharat)

एक बरेजे में लाखों का है खर्च

एक पान बरेजे में 80 से 100 पारी होती हैं. जिसे 10 से 12 किसान आपस में मिलकर तैयार करते हैं. इस एक पारी को तैयार करने में किसान को 9 से 10 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इस प्रकार एक पान बरेजे की लागत लाखों के करीब पहुंच जाती है. हर साल मार्च माह में लगाए जाने वाले बरेजे में अधिक गर्मी, अधिक सर्दी, अधिक भारिश और अज्ञात बीमारी से नुकसान होता ही है, साथ ही तेज आंधी और तूफान से पान बरेजे धराशायी हो जाते हैं.

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बर्बादी की कगार पर पान की खेती (ETV Bharat)

बुंदेलखंड में पान की खेती का इतिहास

पान की खेती का अलग ही इतिहास है. 1707 ईसवी में महाराज छत्रसाल ने जब महराजपुर नगर बसाया उस समय यहां के लोगों को रोजगार के साधन के लिए पान की खेती शुरू कराई गई. पान की खेती के गुर और ज्ञान के लिए महोबा के पान किसानों का सहारा लिया गया. तभी से यह खेती इस जिले के साथ, पन्ना , दमोह , सागर और टीकमगढ़ जिले तक फैली. मुख्य तौर से देसी पान की खेती छतरपुर जिले में ही होती है.

'सरकार से मिलने वाली मदद बंद'

पान किसान संजय कुमार चौरसिया ने बताया कि "यह देशी पान कई बीमारी भी ठीक करता है,अगर आपको खांसी है तो पान चवा लो खांसी सही हो जाएगी. आज पान की खेती को खुद बीमारी लग लग गई है. सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही जबकि पहले कुछ मदद मिल जाती थी अब वह भी बंद हो गई. नई पीढ़ी कोई रुचि नहीं लेती. इसलिए धीरे धीरे पान की खेती खत्म हो रही है." वहीं गढ़ीमलहरा निवासी जगदीश चौरसिया बताते हैं कि "यह पान आज भी लखनऊ, रामपुर, मुरादाबाद, सतना सहित एमपी,यूपी के कई जिलों में छतरपुर का पान जाता है. कभी बुंदेलखंड के पान की मांग पाकिस्तान और बांग्लादेश तक थी."

'25 हजार का अनुदान देती है सरकार'

उद्यानिकी विभाग के संचालक जेके मुजालकार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि "छतरपुर के महाराजपुर, गढ़ीमलहरा और पिपट,पनागर में आज भी पान की खेती होती है. लगभग 200 लोग इसकी खेती करते हैं. किसानों को पान के उत्पादन का मूल्य बाजार में कम मिलता है जिस कारण पान किसान का रुझान खेती से कम हो रहा है. सरकार द्वारा 25 हजार का अनुदान पान किसान को दिया जाता है."

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