गयाः बिहार के गया छकरबंधा थाना का क्षेत्र अति नक्सल प्रभावित है. यहां पहले बंदूकें चलती थी लेकिन पुलिस की पहल से अब कलम चल रही. दरअसल, अब यहां के लोग पुलिस से डरते नहीं बल्कि अपना दोस्त मानते हैं. यहां के बच्चों की जुबान पर 'पुलिस अंकल' रहता है. यह सब गया एसएसपी के पहल का फल है. आज छकरबंधा थाना परिसर में रोज सैंकड़ों बच्चे आते हैं और कई घंटों तक थाना परिसर में बिताते हैं.
छकरबंध थाना बना स्कूलः दरअसल, छकरबंधा थाना अब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए पाठशाला बन गयी है. यहां रोज बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं. छकरबंधा थानाध्यक्ष बताते हैं कि अब यहां 425 बच्चों का नाम दर्ज हो चुका है. रोज सैंकड़ों बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते हैं. उन्होंने गया एसएसपी को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनकी ही पहल का यह रिजल्ट है.
"एसएसपी साहेब के गाइडलाइन में इसकी शुरुआत की गयी. एक बार थाने का निरीक्षण करने आए थे तो उन्होंने कहा था कि अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चों को पढ़ाइये, बच्चों को शिक्षित कीजिए. बच्चों की उपस्थिति में उतार चढ़ाव आते रहते हैं. कभी 75 तो कभी 150 रहता है. कुल बच्चों की संख्या 425 दर्ज की गयी है. यहां अन्य पुलिस पदाधिकारी का भी सहयोग मिलता है." -अजय बहादुर सिंह, थानाध्यक्ष, छकरबंधा
400 से अधिक बच्चों का नाम दर्जः गया में थाना परिसर में पढ़ाई की लोग तारीफ कर रहे हैं. आज छकरबंधा थाना परिसर में शिक्षा की अलख जल रही है. 'वर्दी वाले शिक्षक' अक्षर का ज्ञान बांट रहे. 15 बच्चों के साथ छकरबंधा थानाध्यक्ष ने थाने में 'पाठशाला' शुरू की थी. अब इसमें अक्षर की तालीम पाने के लिए 400 से अधिक बच्चे आ रहे हैं. ये बच्चे छकरबंधा थाना इलाके के दर्जन भर गांवों से आते हैं. कई किलोमीटर दूर से पैदल चलकर, नदी पारकर शिक्षा अर्जित करने बच्चे आते हैं.
इलाकों में रहता था दहशतः बता दें कि यह नक्सलियों का गढ रहा है. जंगलों और पहाड़ों से घिरे इस इलाके की भौगोलिक बनावट नक्सलियों के लिए मददगार थी. इस इलाके में नक्सली संगठन रणनीतियां बनाते थे, जन अदालत लगाकर समानांतर चलाने का एहसास ग्रामीणों को कराते थे.
बैकफुट पर आए नक्सलीः प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का दहशत था. दिन के उजाले में नक्सलियों की बंदूकें गरजती थी. लाल फौज के नक्सली नारे गूंजा करते थे. अशिक्षा पिछड़ापन एक अभिशाप के समान था. किंतु आज हालात काफी बदलते नजर आ रहे हैं. सुरक्षा बलों की चौकसी ने नक्सलियों की गतिविधियों को बैकफुट पर लाया.
पढ़ाई से खुश हैं बच्चेः थाना परिसर में पढ़ने वाले ऐसे बच्चे भी हैं जिनके अभिभावक नक्सली कांडों में बिहार, झारखंड या छत्तीसगढ की जेलों में हैं या छूटकर आए हैं. अब स्थितियां बदल रही है. अब इस इलाके में बुलेट का जोर नहीं दिख रहा बल्कि यहां अब अक्षर ज्ञान की गूंज है. बच्चे भी मन से पढ़ाई करते हैं और पुलिस पदाधिकारी की बराई करते नजर आते हैं. बच्चों ने कहा कि उन्हें थाना में पढ़ाई करने में बहुत अच्छा लगता है.
"पहले पुलिस वालों को देखकर भाग जाते थे. घर के लोग छुप जाते थे लेकिन अब पुलिस अंकल से डर नहीं लगता. पढ़ाई के साथ साथ टाॅफियां भी दी जाती है. पुलिस अंकल से अब किसी तरह का डर नहीं लगता." -अभिषेक कुमार, छात्र
इंजीनियर और पुलिस बनना सपनाः थाना परिसर में पढ़ने वाले सोनू कुमार, राखी कुमारी समेत ऐसे कई छात्र-छात्राएं हैं जो बेहद कम उम्र के हैं. इनकी प्रतिभा ऐसी निखरी है कि देखने सुनने वाले भी दंग रह जाएंगे. यहां के बच्चे पढ़ाई कर न सिर्फ ककहरा गिनती सीख रहे बल्कि अंग्रेजी बोलना सीख रहे हैं. कोई इंजीनियर तो कोई पुलिस पदाधिकारी और डॉक्टर बनना चाह रहे हैं.
पुलिस करती है मददः छकरबंधा थाना क्षेत्र के पिछोलिया, चौड़ीताड़, महरावं, इस्लामपुर, भैंसा दोहर, सबेचुआ, बरहा, छकरबंधा समेत गांव शामिल हैं. इन इलाकों के बच्चे खुशी-खुशी छकरबंधा थाने की पाठशाला में आते हैं. थाना की ओर से बच्चों को कपड़े और चप्पल की भी मदद दी जाती है.
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