जयपुर. पूर्वांचल की संस्कृति और भोजपुरी गीतों की स्वर लहरियों के बीच शुक्रवार सुबह छठ व्रतियों ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हुए 36 घंटे का निर्जला व्रत संपन्न किया. जयपुर में आमेर की मावठे, गलता तीर्थ, कानोता बांध में हजारों की संख्या में पूर्वांचल के लोगों ने भगवान सूर्य और छठी मैया की उपासना करते हुए परिवार की खुशहाली की कामना की.
आस्था का महापर्व छठ उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर व्रत खोलने के साथ संपन्न हुआ. महिलाओं ने 16 शृंगार करते हुए आटा, गुड़, पंचमेवे और घी से तैयार ठेकुआ, फल, और मिठाई टोकरी और सूप में लेकर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया और छठी मैया से संपन्नता और खुशहाली की कामना की. बिहार समाज संगठन के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सुरेश पंडित ने बताया कि इस अवसर पर गलता तीर्थ, आमेर मावठे सहित शहर में जगह-जगह बनाए गए कृत्रिम जलाशयों पर व्रतियों ने पानी में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया. वहीं घाट पर ही व्रतियों को प्रसाद दिया गया, जिसे लोगों ने अपने घर पर जाकर ग्रहण करते हुए पारण (व्रत पूर्ण) किया.
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राजस्थान मैथिली परिषद के अध्यक्ष दिलीप कुमार झा ने बताया कि छठ पर्व की मान्यता त्रेता युग, द्वापर युग से है. रामायण काल में कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने भी छठी मैया का उपवास रखते हुए सूर्य देव की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. इसी तरह महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी की ओर से सूर्य पूजा करने का उल्लेख मिलता है. वहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा संतान की कामना और लंबी उम्र के लिए की जाती है.
इससे पहले गुरुवार शाम को भी हजारों व्रतियों ने अस्ताचलगामी (डूबते हुए) सूर्य को अर्घ्य दिया. दीपकों से छठी मैया की आरती की. साथ ही रात्रि जागरण और भजन गायन की कार्यक्रम भी हुए. आपको बता दें कि शहर में करीब 200 स्थान पर छठ पूजन के आयोजन हुए. यहां छठ महोत्सव मनाने के लिए कृत्रिम जलाशय भी बनाए गए. जहां विशेष सजावट भी की गई.