छपराः कुछ सालों पहले तक बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं थी. पढ़ाई-लिखाई के स्तर से लेकर स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण सरकारी स्कूलों की छवि दिन प्रति दिन खराब होती जा रही थी. ऐसे में सरकार ने ज्यादा से ज्यादा बच्चों को सरकारी स्कूलों तक लाने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. सारण में भी सरकारी स्कूलों की बेहतरी के लिए सरकार की योजनाएं अब रंग ला रही हैं.
प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं कई सरकारी स्कूलः स्कूलों के विकास को लेकर सरकार की गंभीरता अब सार्थक रूप ले रही है. स्कूलों में मिड डे मील, स्कॉलरशिप, साइकिल और पोशाक योजना के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की लगातार कोशिशों का नतीजा है कि अब बड़ी संख्या में छात्र सरकारी स्कूलों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. छपरा जिले में भी कई ऐसे सरकारी स्कूल हैं जो इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ पढ़ाई में भी प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं.
लोहा छपरा के उत्क्रमित मध्य विद्यालय ने पेश किया उदाहरणः सरकारी योजनाओं और मिल रही राशि के सदुपयोग से स्कूलों की तस्वीर बदली जा सकती है इसको साबित किया है सारण जिले के नगरा प्रखंड के लोहा छपरा के उत्क्रमित मध्य विद्यालय ने. इस विद्यालय में आधुनिक शिक्षा की तमाम सुविधाओं के साथ पढ़ाई का बेहतर वातावरण मौजूद है. स्थानीय लोगों के सहयोग और इस स्कूल की प्रिंसिपल की वजह से ये जिले के श्रेष्ठ स्कूलों में एक है.
कई स्कूलों की हालत अब भी बदतरः ऐसा नहीं है कि सभी सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर हो गयी है. कई जगहों पर तो हालात बेहद ही बदतर हैं. छपरा कचहरी स्टेशन परिसर में स्थित स्कूल इसका बड़ा उदाहरण है, जहां रेलवे के एक छोटे से स्कूल में दो और स्कूलों को मर्ज कर दिया गया है. जिसके कारण यहां की स्थिति दयनीय हो गयी है.यहां तक कि इस स्कूल में शौचालय और पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है जिसके कारण छात्राओं और महिला शिक्षकों को काफी परेशानी होती है.
क्या कहते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी ?: सारण जिले के स्कूलों को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी दिलीप कुमार सिंह का कहना है कि "सारण जिला के स्कूलों के विकास और जरूरी आधारभूत संरचना के लिए राज्य के शिक्षा विभाग ने 37 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी है.लेकिन चुनाव आचार संहिता के कारण अब स्कूलों के कायाकल्प का ये काम 6 जून के बाद शुरु होने की उम्मीद है."