बेतियाः जिस चीनी मिल की मशीनें जब शोरगुल करती थीं तो किसानों के दिल बल्लियों उछलने लगते थे. जो मिल पूरे इलाके के किसानों के घर में खुशहाली का जरिया थी वो आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. 30 साल हो गये मिल के बंद हुए,हर चुनाव में ये मिल बड़ा मुद्दा रही, लेकिन कोई ऐसा नहीं आया जो मिल की मुर्दा हो चुकी मशीनों को संजीवनी दे सके.
1932 में हुई थी चनपटिया चीनी मिल की स्थापनाः बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिलों में शुमार चनपटिया चीनी मिल की स्थापना 1932 में श्री सूर्या सुगर मिल वर्क्स ने की थी. ये मिल 58 सालों तक इलाके के किसानों के घर खुशियां बांटती रही, लेकिन 1990 में चीनी मिल की दुर्गति शुरू हुई और शुरू हुआ किसानों का दुर्भाग्य.
1994 में लग गया तालाः 1990 में शुरू हुई दुर्गति की कहानी 4 सालों में पूरी हो गयी और 1994 में चीनी मिल में ताला लग गया. चार साल बाद 1998 में एक कोशिश हुई इसे को-ऑपरेटिव के जरिये फिर से जिंदा करने की. तबतक देर हो चुकी थी. मिल प्रबंधन और किसानों में सामंजस्य नहीं बैठ पाया और प्रयोग पूरी तरह फेल हो गया.
30 सालों पहले खुशियां लहललहाती थींः इलाके के किसानों का कहना है कि मिल बंद होने के पहले गन्ने की फसल के रूप में खुशियां लहलहाती थीं. चनपटिया चीनी मिल में जैसे-जैसे गन्ने का रस चीनी बनता जाता था किसानों का परिवार खुशियों में सराबोर होता जाता था.
मिल हुई बंद, कंगाली शुरू !: चनपटिया चीनी मिल बंद होने के साथ ही इस इलाके के किसानों के दुःख भरे दिन शुरू हो गये. मिल बंद हुई तो किसानों की गन्ने की खेती भी बंद हो गयी. जाहिर है जिस गन्ने की खेती ने किसानों को संपन्न बना रखा था, खेती बंद हुई तो किसानों के सामने जीवन-यापन का सवाल खड़ा हो गया.
चुनाव दर चुनाव फेल होते गये वादेः लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव, हर चुनाव में यहां आनेवाले नेता एक वादा जरूर करते हैं कि इस बार जीते तो चनपटिया चीनी मिल के बीते दिन लौट आएंगे. लेकिन चुनाव बाद नेताजी को अपना वादा याद कहां रहता है ? नेताओं के झूठे वादों पर भरोसा करते-करते इस मिल ने दम तोड़ दिया है.
मुख्यमंत्री का वादा भी हुआ फेलः 2019 के लोकसभा चुनाव में नेताओं ने इस मिल की चिमनी से धुआं उगलवाने का वादा किया था. 2020 के चुनाव के दौरान जब सीएम नीतीश कुमार ने खुद चनपटिया चीनी मिल चालू कराने का वादा किया तो 20 हजार से अधिक किसानों के दिलों में उम्मीदों की एक लौ जली, लेकिन सभी वादे छलावे साबित हुए.
मजदूरों-किसानों के करोड़ों बकायाः चीनी मिल के बंद होने से जहां इलाके के हजारों किसानों की खुशियां छिन गयीं तो चीनी मिल में काम करनेवाले करीब 2 हजार मजदूरों की नौकरी और दिहाड़ी चली गयी. आज भी चनपटिया चीनी मिल के पास किसानों-मजदूरों के करोड़ों रुपये बकाया हैं.
मिल के पास 200 एकड़ जमीनः 30 सालों से बंद होने के कारण मिल पूरी तरह जर्जर हो चुकी है और मिल में लगी मशीनें बेकार हो चुकी हैं. अब ये मिल अपने गौरवशाली की अतीत का छाया ही रह गई है, लेकिन सबसे बड़ी बात कि चीनी मिल के पास अभी भी 200 एकड़ बेशकीमती जमीन है. देश में नये उद्योग की स्थापना के लिए जहां जमीन का घोर संकट है वही 200 एकड़ जमीन यूँ ही बेकार पड़ी हुई है.
"चीनी मिल नजदीक होने के कारण मिल में गन्ना पहुंचने में आसानी होती थी. कम पैसे में ही चीनी मिल तक गन्ना पहुंच जाता था. आज नरकटियागंज, लौरिया, रामनगर गन्ना ले जाना पड़ता है. जिस कारण भाड़ा भी ज्यादा लगता है और पैसा ज्यादा खर्च होता है." नारायण साह, किसान
"फैक्ट्री बंद हो जाने के बाद हम लोग बेरोजगार हो गए. कई मजदूरों की तो मौत भी हो गयी. सबसे खराब हालत तो किसानों की हो गयी. गन्ना नकदी फसल है और मिल जब थी तो आसानी से गन्ने की खपत हो जाती थी लेकिन मिल बंद होने के बाद गन्ने की खेती कम हो गयी." मार्कंडेय सिंह, कर्मचारी
'किसान हो गये बदहालः' चनपटिया के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा ने बताया कि "चीनी मिल बंद हो जाने से यहां के किसानों की हालत बहुत खराब हो गई है. गन्ने की फसल से यहां के किसानों के सारे काम हो जाते थे. आज चीनी मिल बंद हो जाने से किसानों की हालत खराब हो गई है."
'वादों पर नहीं रहा ऐतबार': वहीं चनपटिया के ओमप्रकाश क्रांति बताते हैं कि हर चुनाव में किसानों को चीनी मिल चालू करने का भरोसा दिया जाता है. अब तो आश्वासन की घुट्टी पीते-पीते किसान थक चुके हैं . चुनाव दर चुनाव नेताजी वादे करते जा रहे हैं और किसान ठगे जा रहे हैं.
2024 के चुनाव में भी किए गये वादेः 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर नेताओं ने चनपटिया मिल को चालू कराने का वादा किया है. क्या वाकई चनपटिया चीनी मिल के 30 वर्षों का इंतजार खत्म होगा, क्या वाकई कोई आएगा जो इसका उद्धार करेगा. सच तो ये है कि अब मिल को किसी के वादों भी पर ऐतबार नहीं है.
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