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चैत्र नवरात्रि के पहले दिन झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, महाभारतकालीन है मंदिर का इतिहास - Chaitra Navratri 2024

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि पर्व पर विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ दिखाई दी. झज्जर के बेरी में स्थित इस मंदिर का इतिहास महाभारतकालीन है.

Chaitra Navratri 2024
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Apr 9, 2024, 7:48 AM IST

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

झज्जर: बेरी में विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में चैत्र नवरात्रि पर्व पर भक्तों की भारी भीड़ दिखाई दी. नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना भी यहां की गई. मंगलवार का दिन होने के कारण माता भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को खास तरह के केसरिया रंग की रत्न जड़ित पोशाक और स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया. 9 दिन चलने वाले इस आयोजन को सफल बनाने के लिए यहां सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

महाभारत से जुड़ा है मंदिर का इतिहास: झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित इस मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है. माता भीमेश्वरी देवी पांडवों की कुलदेवी माता हिंगलाज भवानी का ही स्वरूप हैं. कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने पाण्डु पुत्र भीम को कुलदेवी मां से विजय श्री का आशीर्वाद लेने के लिए भेजा था. मां भीम के साथ चलने को तो तैयार हो गईं, लेकिन शर्त रखी कि रास्ते में कहीं उतारना नहीं होगा.

पांडवों की कुलदेवी हैं मां भीमेश्वरी: कहा जाता है कि जब भीम बेरी पहुंचे, तो उन्हें लघुशंका जाने के लिए कुलदेवी की प्रतिमा को नीचे रख दिया. तभी से मां भीमेश्वरी देवी यहां विराजमान हैं. मां की पूजा अर्चना का सिलसिला महाभारत काल से ही चला आ रहा है. यहां के मंदिर को महाभारत काल में स्थापित किया गया था. पांडवों की कुलदेवी होने से साथ साथ माता भीमेश्वरी देवी बाबा श्याम की भी कुलदेवी हैं.

मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में उमड़े भक्त: नवरात्रि पर माता का आशीर्वाद लेने वाले भगतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. बेरी स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर की खास बात ये है कि यहां मां की प्रतिमा तो एक है, लेकिन मंदिर दो हैं. मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को रोजाना सुबह 5 बजे बेरी कस्बे से बाहर स्थित मंदिर में लाया जाता है. जहां श्रद्धालु माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं. दोपहर 12 बजे प्रतिमा को पुजारी अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं. जिसके बाद अंदर वाले मंदिर में मां आराम करती हैं.

कोलकाता से आई मां की पोशाक: इस बार माता भीमेश्वरी देवी की पोशाक कोलकाता से बनकर आई है. चांदी के सिंहासन पर विराजमान मां के भव्य रूप का दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालुओं बेरी पहुंचने लगे हैं. यहां नवरात्र के दौरान ही प्रदेश का सबसे बड़ा घोड़ों और खच्चरों का पशु मेला भी लगता है. जो घोड़ों के व्यापार करने और पशु प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र रहता है.

पूजा-अर्चना का विशेष लाभ: अश्विन नवरात्र में मां की पूजा अर्चना से विशेष फल मिलता है. एक तरफ जहां नवविवाहित जोड़े माता के दर्शन कर बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, तो वही दूसरी तरफ श्रद्धालु अपने नवजात शिशुओं के सिर का मुंडन करा कर बाल माता पर चढ़ाते हैं, ताकि उनके बच्चों के सिर पर मां की कृपा बनी रहे. जिस तरह माता भीमेश्वरी देवी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. इसी तरह से हमारे दर्शकों की भी मनोकामना पूरी करें.

ये भी पढ़ें- सोमवती अमावस्या 2024: स्नान और दान के साथ शिव-पार्वती की पूजा से आर्थिक तंगी होगी दूर! इस दिन भूलकर भी न करें ये काम - Somvati Amavasya 2024

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

झज्जर: बेरी में विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में चैत्र नवरात्रि पर्व पर भक्तों की भारी भीड़ दिखाई दी. नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना भी यहां की गई. मंगलवार का दिन होने के कारण माता भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को खास तरह के केसरिया रंग की रत्न जड़ित पोशाक और स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया. 9 दिन चलने वाले इस आयोजन को सफल बनाने के लिए यहां सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

महाभारत से जुड़ा है मंदिर का इतिहास: झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित इस मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है. माता भीमेश्वरी देवी पांडवों की कुलदेवी माता हिंगलाज भवानी का ही स्वरूप हैं. कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने पाण्डु पुत्र भीम को कुलदेवी मां से विजय श्री का आशीर्वाद लेने के लिए भेजा था. मां भीम के साथ चलने को तो तैयार हो गईं, लेकिन शर्त रखी कि रास्ते में कहीं उतारना नहीं होगा.

पांडवों की कुलदेवी हैं मां भीमेश्वरी: कहा जाता है कि जब भीम बेरी पहुंचे, तो उन्हें लघुशंका जाने के लिए कुलदेवी की प्रतिमा को नीचे रख दिया. तभी से मां भीमेश्वरी देवी यहां विराजमान हैं. मां की पूजा अर्चना का सिलसिला महाभारत काल से ही चला आ रहा है. यहां के मंदिर को महाभारत काल में स्थापित किया गया था. पांडवों की कुलदेवी होने से साथ साथ माता भीमेश्वरी देवी बाबा श्याम की भी कुलदेवी हैं.

मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में उमड़े भक्त: नवरात्रि पर माता का आशीर्वाद लेने वाले भगतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. बेरी स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर की खास बात ये है कि यहां मां की प्रतिमा तो एक है, लेकिन मंदिर दो हैं. मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को रोजाना सुबह 5 बजे बेरी कस्बे से बाहर स्थित मंदिर में लाया जाता है. जहां श्रद्धालु माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं. दोपहर 12 बजे प्रतिमा को पुजारी अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं. जिसके बाद अंदर वाले मंदिर में मां आराम करती हैं.

कोलकाता से आई मां की पोशाक: इस बार माता भीमेश्वरी देवी की पोशाक कोलकाता से बनकर आई है. चांदी के सिंहासन पर विराजमान मां के भव्य रूप का दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालुओं बेरी पहुंचने लगे हैं. यहां नवरात्र के दौरान ही प्रदेश का सबसे बड़ा घोड़ों और खच्चरों का पशु मेला भी लगता है. जो घोड़ों के व्यापार करने और पशु प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र रहता है.

पूजा-अर्चना का विशेष लाभ: अश्विन नवरात्र में मां की पूजा अर्चना से विशेष फल मिलता है. एक तरफ जहां नवविवाहित जोड़े माता के दर्शन कर बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, तो वही दूसरी तरफ श्रद्धालु अपने नवजात शिशुओं के सिर का मुंडन करा कर बाल माता पर चढ़ाते हैं, ताकि उनके बच्चों के सिर पर मां की कृपा बनी रहे. जिस तरह माता भीमेश्वरी देवी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. इसी तरह से हमारे दर्शकों की भी मनोकामना पूरी करें.

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