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आदि शक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई? मां दुर्गा को क्यों कहा जाता है आदि शक्ति, जानिए इसका रहस्य - Chaitra Navratri 2024

माता दुर्गा इस सृष्टि की आदि शक्ति मानी जाती है. हिंदू धर्म के अनुनायी माता दुर्गा की पूजा बड़ी ही आस्था के साथ करते हैं. मां दुर्गा जी की तुलना श्रृष्टि के सृजनकर्ता परम ब्रम्हा से की जाती है. क्या आप जानते हैं कि आदि शक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई? मां दुर्गा जी का नाम आदि शक्ति क्यों पड़ा. आज ईटीवी भारत आपको इसकी पौराणिक कथा बताने जा रहा है.

CHAITRA NAVRATRI 2024
आदि शक्ति की उत्पत्ति की कथा
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 8, 2024, 5:39 PM IST

आदि शक्ति की उत्पत्ति की कथा

रायपुर: आदि शक्ति की उत्पत्ति की वजह राक्षसों का अत्याचार माना जाता है. माता का यह स्वरूप अनंत शक्तियों से भरा हुआ है. मां आदि शक्ति को माता दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है. मां दुर्गा ने ही महिषासुर का अंत कर देवताओं और संसार को आसुरी शक्ति के अत्याचार से मुक्त कराया था. हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकर जी भी मां आदि शक्ति की शक्तियों से ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं. माता आदि शक्ति की उत्पत्ति के बारे में ज्योतिष एवं वास्तुविद विनीत शर्मा ने ईटीवी को हिंदू धर्म ग्रंथों की कथा बताई है.

कैसे हुई आदि शक्ति की उत्पत्ति? : हिंदू धर्म ग्रंथों में माता दुर्गा के आदि शक्ति स्वरूप को लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है. पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस वरदान पाकर अजेय हो गया था. उसने देवताओं पर हमला कर दिया. देवताओं ने कई बार उससे युद्ध किया, लेकिन दोवताओं को हर बार महिषासुर से हार का सामना करना पड़ा. उसके अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने कई बार उससे युद्ध किया, लेकिन दोवताओं को हर बार महिषासुर से हार का सामना करना पड़ा.

इसके बाद राक्षसों के अत्याचारों से तंग आकर सभी देवता ब्रम्हा जी के पास गए. जहां ब्रम्हा जी ने बताया कि महिषासुर की मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से ही होगी. जिसके बाद सभी देवताओं ने अपनी सारी शक्तियों और सम्मिलित तेज से आदि शक्ति के इस रूप को प्रकट किया. इस दौरान अलग-अलग देवताओं के तेज से देवी मां के स्वरूप का निर्माण हुआ. जब आदि शक्ति की उत्पत्ति हुई तो माता का यह स्वरूप अनंत शक्तियों से भरा हुआ था. इसीलिए माता के इस स्वरूप को आदि शक्ति कहा जाता है.

कैसा है आदि शक्ति माता दुर्गा का स्वरूप: दंतकथा के अनुसार, माता दुर्गा के 18 हाथ हैं. यह सभी हाथ जगत संचालक श्री हरि विष्णु भगवान की कृपा से प्राप्त हुए हैं. जगत जननी मां दुर्गा के हाथों में शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है, जो उन्हें भगवान रुद्र यानी शंकर ने प्रदान किया है. माता भगवती के हाथ में एक चक्र दिखाई पड़ता है, जिसे श्री हरि भगवान विष्णु ने प्रदान किया है. ब्रह्मा जी से प्राप्त कमंडल को लेकर माता हर समय दिखाई देती है. माता भगवती के नाखूनों और उनके सौंदर्य को भगवान विश्वकर्मा ने दिया. वायु देवता ने माता को असंख्य तीरों, धनुष और गदा प्रदान किए हैं. समुद्र देवता ने माता दुर्गा को शंख प्रदान किया है. मृत्यु के देवता यमराज ने माता के हाथ में एक फंदा प्रदान किया, जिससे वह असुरों दैत्य और नकारात्मक शक्तियों का संघार करती हैं. इसी तरह समस्त देवी देवताओं ने आदि शक्ति को अनेक शस्त्र प्रदान किए और इस तरह मां दुर्गा की उत्पत्ति हुई.

नोट: यहां प्रस्तुत सारी बातें पंडित जी की तरफ से बताई गई बातें हैं. इसकी पुष्टि ईटीवी भारत नहीं करता है.

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आदि शक्ति की उत्पत्ति की कथा

रायपुर: आदि शक्ति की उत्पत्ति की वजह राक्षसों का अत्याचार माना जाता है. माता का यह स्वरूप अनंत शक्तियों से भरा हुआ है. मां आदि शक्ति को माता दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है. मां दुर्गा ने ही महिषासुर का अंत कर देवताओं और संसार को आसुरी शक्ति के अत्याचार से मुक्त कराया था. हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकर जी भी मां आदि शक्ति की शक्तियों से ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं. माता आदि शक्ति की उत्पत्ति के बारे में ज्योतिष एवं वास्तुविद विनीत शर्मा ने ईटीवी को हिंदू धर्म ग्रंथों की कथा बताई है.

कैसे हुई आदि शक्ति की उत्पत्ति? : हिंदू धर्म ग्रंथों में माता दुर्गा के आदि शक्ति स्वरूप को लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है. पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस वरदान पाकर अजेय हो गया था. उसने देवताओं पर हमला कर दिया. देवताओं ने कई बार उससे युद्ध किया, लेकिन दोवताओं को हर बार महिषासुर से हार का सामना करना पड़ा. उसके अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने कई बार उससे युद्ध किया, लेकिन दोवताओं को हर बार महिषासुर से हार का सामना करना पड़ा.

इसके बाद राक्षसों के अत्याचारों से तंग आकर सभी देवता ब्रम्हा जी के पास गए. जहां ब्रम्हा जी ने बताया कि महिषासुर की मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से ही होगी. जिसके बाद सभी देवताओं ने अपनी सारी शक्तियों और सम्मिलित तेज से आदि शक्ति के इस रूप को प्रकट किया. इस दौरान अलग-अलग देवताओं के तेज से देवी मां के स्वरूप का निर्माण हुआ. जब आदि शक्ति की उत्पत्ति हुई तो माता का यह स्वरूप अनंत शक्तियों से भरा हुआ था. इसीलिए माता के इस स्वरूप को आदि शक्ति कहा जाता है.

कैसा है आदि शक्ति माता दुर्गा का स्वरूप: दंतकथा के अनुसार, माता दुर्गा के 18 हाथ हैं. यह सभी हाथ जगत संचालक श्री हरि विष्णु भगवान की कृपा से प्राप्त हुए हैं. जगत जननी मां दुर्गा के हाथों में शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है, जो उन्हें भगवान रुद्र यानी शंकर ने प्रदान किया है. माता भगवती के हाथ में एक चक्र दिखाई पड़ता है, जिसे श्री हरि भगवान विष्णु ने प्रदान किया है. ब्रह्मा जी से प्राप्त कमंडल को लेकर माता हर समय दिखाई देती है. माता भगवती के नाखूनों और उनके सौंदर्य को भगवान विश्वकर्मा ने दिया. वायु देवता ने माता को असंख्य तीरों, धनुष और गदा प्रदान किए हैं. समुद्र देवता ने माता दुर्गा को शंख प्रदान किया है. मृत्यु के देवता यमराज ने माता के हाथ में एक फंदा प्रदान किया, जिससे वह असुरों दैत्य और नकारात्मक शक्तियों का संघार करती हैं. इसी तरह समस्त देवी देवताओं ने आदि शक्ति को अनेक शस्त्र प्रदान किए और इस तरह मां दुर्गा की उत्पत्ति हुई.

नोट: यहां प्रस्तुत सारी बातें पंडित जी की तरफ से बताई गई बातें हैं. इसकी पुष्टि ईटीवी भारत नहीं करता है.

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