भोपाल। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के लोकसभा चुनाव जीत जाने के बाद उनकी विधानसभा सीट बुधनी में उपचुनाव की घंटी बजने जा रही है, लेकिन सवाल ये है कि केवल बीजेपी के इस गढ़ से आखिर कौन होगा शिवराज का सियासी वारिस, क्या शिवराज की बनाई इस मजबूत पिच पर उनके बेटे को कार्तिकेय चौहान को बल्लेबाजी का मौका बीजेपी दे सकती है. कतार में वो नाम भी है जिन्होंने 2005 में अपनी जीती जिताई सीट छोड़कर त्याग किया, लेकिन सिला आज तक नहीं मिला. राजेन्द्र सिंह ने 2005 में शिवराज के कहने पर बुधनी सीट से त्यागपत्र दे दिया था.
बुधनी सीट पर किरार या नया चेहरा
बुधनी विधानसभा सीट एक तरीके से शिवराज सिंह का होम पिच है. इस सीट से वैसे बीजेपी के सामने उम्मीदवारों का संकट नहीं है, लेकिन सवाल ये है कि यहां नाम शिवराज की च्वाइस पर फाइनल होगा या पार्टी की मुहर पर. खास बात ये है कि इस सीट पर किरार समाज का वोट बैंक सबसे ज्यादा मजबूत है. 40 हजार से ज्यादा यहां किरार वोटर हैं. दूसरा शिवराज सिंह चौहान का चेहरा, अब तक यहां बीजेपी के लिए जीत की जमानत रहा है. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं 'देखिए एमपी में जब टिकट बांटे गए थे, विधानसभा चुनाव थे, उसमें भी शिवराज सिंह चौहान की च्वाइस पर पूरा ध्यान रखा गया और जो टिकट उनकी मर्जी से बंटे, वहां पार्टी को जीत भी मिली. तो इसमें दो राय नहीं कि बुधनी में भी उनकी राय अहम रहेगी, लेकिन सवाल ये है कि क्या शिवराज कार्तिकेय का नाम बढ़ा पाएंगे. बीजेपी में जिस तरह से परिवारवाद को लेकर क्राइटेरिया बनाया गया है, उसमें ये संभव हो पाएगा. ये भी सही है कि शिवराज की बनाई पिच होने की वजह से नहीं, लेकिन कार्तिकेय खुद भी बुधनी में लंबे समय से सक्रिय हैं.
कार्तिकेय क्या बनेंगे पार्टी की च्वाइस
फिलहाल यहां जो नाम मजबूती में है, उनमें पहला नाम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान का है. कार्तिकेय अभी संगठन में किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन अपने पिता शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उन्होंने बुधनी सीट पर जमीनी तैयारी शुरु कर दी थी. यहां तक की बीते विधानसभा चुनाव में कार्तिकेय और साधना सिंह ही यहां सक्रिय रहे. बीजेपी को जीत दिलाने के लिए शिवराज सिंह चौहान तो पूरे प्रदेश में सभाएं कर रहे थे. लिहाजा ये नहीं कहा जा सकता कि कार्तिकेय इस पिच पर कमजोर पड़ सकते हैं, लेकिन सवाल उनके सिलेक्शन का है. क्या पार्टी बुधनी में परिवारवाद का बीज बोने देगी.
क्या अब मिलेगा त्याग का सिला
इस कतार में एक नाम राजेन्द्र सिंह का भी है. 2003 में बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव जीते राजेन्द्र सिंह ने 2005 में शिवराज सिंह चौहान के कहने पर एक मिनट में सीट खाली कर दी थी. कुल जमा डेढ़ साल की विधायकी के बाद फिर राजेन्द्र सिंह चुनाव नहीं लड़ पाए. हालांकि उन्हें निगम मंडलों में जगह देकर भरपाई की गई, लेकिन विधानसभा या लोकसभा का टिकट कभी नहीं मिला. इस लिहाज से देखें तो इस बार राजेन्द्र सिंह को बीस बरस पहले किए गए उनके त्याग का सिला दिया जा सकता है.
किरार समाज पर गौर किया तो ये नाम
किरार समाज की ओर से अगर कोई नाम बढ़ाया जाता है तो कार्तिकेय चौहान के बाद दूसरा नाम रवीश चौहान का है. बीजेपी किसान मोर्चे के पूर्व प्रदेश महामंत्री रहे रवीश किरार समाज में सक्रिय हैं. बुधनी सीट पर इस समाज का अच्छा खासा मजबूत वोट बैंक है. इस इलाके में करीब चालीस हजार के लगभग किरार समाज के वोट हैं.
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35 साल से बुधनी पर किरार समाज का कब्जा
बुधनी सीट में किरार समाज का वोट निर्णायक है. यही वजह है कि कि 1985 छोड़कर प्रायः किरार समाज को ही टिकट मिलती रही और जीतते रहे. इस सीट 1985-90 चौहान सिंह चौहान, 1990 में शिवराज सिंह चौहान इस सीट से विधायक चुने गए, लगभग डेढ़ साल बाद उन्हें पार्टी ने उपचुनाव में विदिशा से टिकट दी और जीतकर वे सांसद बने. शिवराज के बाद किरार समाज से ही कांग्रेस नेता राजकुमार पटेल 93-98, 98-2003 में राजकुमार पटेल के भाई देव कुमार पटेल विधायक बने, 2003 में ठाकुर समाज के राजेंद्र सिंह जीते, फिर उन्होंने शिवराज के लिए सीट छोड़ दी, उप चुनाव में शिवराज सिंह जीते.