जयपुर. पिंकसिटी में शुक्रवार को त्रिपोलिया गेट से बूढ़ी गणगौर की सवारी निकाली गई, जिसे देखने के लिए शहर वासियों के साथ-साथ पर्यटकों का हुजूम भी उमड़ा. इस शाही सवारी के समापन के साथ ही न सिर्फ गणगौर फेस्टिवल का समापन हुआ, बल्कि तीज-त्योहार पर भी ब्रेक लग गया है.
राजस्थान में ये कहावत प्रचलित है 'तीज त्योहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर'. दरअसल, तीज के त्योहार से पर्वों की शुरुआत होती है और गणगौर के बाद चार महीने तक कोई भी त्योहार नहीं आता. शुक्रवार को बूढ़ी गणगौर की सवारी के समापन के साथ तीज-त्योहार का दौर भी थम गया. जयपुर की प्रसिद्ध गणगौर फेस्टिवल के दूसरे दिन भी पूजा अर्चन कर जनाना ड्योढ़ी से बूढ़ी गणगौर की शाही सवारी चांदी की पालकी में विराजित कर त्रिपोलिया गेट से निकलकर छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार होते हुए तालकटोरा पहुंची.
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शान से निकली सवारी : बूढ़ी गणगौर की इस शाही सवारी को देखने के लिए भी देशी-विदेशी पर्यटक एक बार फिर सवारी मार्ग पर उमड़े. गणगौर माता के लवाजमे में जयपुर के गौरव के निशान पचरंगा ध्वज को लिए हाथी और विशेष रूप से सजाए गए ऊंट, घोड़े, बैलगाड़ी नजर आए. लोक कलाकारों ने राजस्थान की परंपरा और लोक कला को पारंपरिक अंदाज में प्रस्तुत करते हुए समा बांधा. लोक कलाकारों ने राजस्थान की प्रसिद्ध कच्ची घोड़ी, कालबेलिया, गैर और बहरूपिया जैसी लोक कला को एक बार फिर जीवंत कर दिया. इस दौरान जयपुर की इस विरासत को अपने कैमरे में कैद करने की पर्यटकों में होड़ रही. वहीं, जयपुर के कई प्रमुख बैंड ग्रुप शाही सवारी के साथ स्वर लहरियां बिखेरते हुए चले.
स्वच्छ जयपुर क दिया संदेश : इस दौरान महिलाओं ने गणगौर माता के दर्शन करते हुए उनसे अखंड सौभाग्य की कामना की, जबकि युवतियों ने अच्छे वर का आशीर्वाद मांगा. पर्यटन विभाग की ओर से विदेशी पर्यटकों का देशी अंदाज में स्वागत सत्कार किया गया. वहीं, हेरिटेज नगर निगम की ओर से जीरो वेस्ट प्लान को धरातल पर उतारते हुए पत्ते के दोने में घेवर परोसा गया. पानी के लिए प्लास्टिक की बोतल की बजाय कांच की बोतल का इस्तेमाल किया गया और गणगौर माता की सवारी के पीछे कचरा संग्रहण करने वाले हूपर और स्वच्छता प्रहरियों का काफिला चला, जिन्होंने यहां सवारी के बाद मार्ग पर फैले कचरे को हाथों-हाथ हटाकर नजीर पेश की.