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मासूम हो रहे ब्रेन रोट के शिकार, नहीं बोल और समझ पा रहे मनुष्य की आवाज - HEALTH NEWS

ब्रेन रोट मासूमों को अपना शिकार बन रहा है. इस कारण बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है.

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मासूम हो रहे ब्रेन रोट का शिकार (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

लखनऊ: ब्रेन रोट एक ऐसी दिक्कत है जिससे एक से दो वर्ष के मासूम चपेट में आ रहे हैं. केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में इस तरह के बहुत सारे मासूम आ रहे हैं, जो ब्रेन रोट की गिरफ्त में है. विशेषज्ञ के मुताबिक यह बच्चों के मानसिक विकास पर बाधा डालती है. इसके कारण जिस उम्र में मासूम का मस्तिष्क विकसित होता है, उस समय वह बैरियर की तरह रोक लगाता है.

यह मोबाइल, टीबी, लैपटॉप समेत तमाम आधुनिक उपकरणों के कारण हो रहा है. लंबे समय तक एक ही पोजीशन में बैठने से सर्वाइकल के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इसमें बच्चे भी शामिल हैं, जो घंटों मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल करते हैं. सरकारी अस्पतालों के फिजियोथेरेपी विभाग में हर महीने कम से कम दस बच्चे सर्वाइकल के दर्द की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं. इनके परिजन रोजाना विभाग में थेरेपी कराने आ रहे हैं.

केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शोभित नयन ने दी जानकारी (Video Credit; ETV Bharat)
बच्चों का समय स्क्रीन पर: केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शोभित नयन ने बताया कि ब्रेन रोट एक ऐसा शब्द है जिसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हाल ही में जोड़ा गया है. अपने आप में यह बड़ी बात है. क्योंकि, यह छोटे-छोटे मासूमों को अपना शिकार बन रहा है. ब्रेन रोट के कारण छोटे-छोटे मासूमों का विकास नहीं हो पाता है. बच्चे बोल नहीं पाते हैं, समझ नहीं पाते हैं. उनका मानसिक विकास नहीं हो पता है. आज के समय में 10 में से चार से पांच बच्चे इससे पीड़ित हो रहे हैं.

अपने आप में यह बड़ा आंकड़ा है. लेकिन, यह सच बात है. डॉ. शोभित नयन ने कहा कि आज के समय में पैरेंटिंग बहुत बदल चुकी है. माता-पिता बच्चों को मोबाइल पकड़ा देते हैं. बच्चे का अधिक से अधिक जो समय है, वह स्क्रीन पर बीतता है. इस कारण बच्चा जो कुछ भी देखता है, सीखता है, वह स्क्रीन से सीखता है. क्योंकि, उस उम्र में बच्चों की सीखने की क्षमता अधिक होती है. ऐसे में कभी-कभी बच्चे जो चीज देखते हैं, उसी को अपने जहन में भर लेते हैं. वैसे ही आवाज निकालते हैं.

डॉ. शोभित नयन ने बताया कि ओपीडी में बहुत सारे ऐसे बच्चे आते हैं, जिसमें अभिभावक बताते हैं पांच वर्ष तक हमारा बच्चा बोल रहा था. लेकिन, अचानक से उसने बोलना छोड़ दिया. हमारी किसी भी बात को समझता नहीं है. यहां तक की हमारी बात को सुनता भी नहीं है. कभी-कभी सोते-सोते किसी जानवर की या किसी कार्टून की आवाज निकालता है. इसकी आवाज सुनने के लिए हम तरस गए हैं. इस तरह की बातों के साथ अभिभावक ओपीडी में आते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देखा जा रहा है कि इस तरह के आंकड़े बहुत बढ़ रहे हैं. यही कारण है कि ऑक्सफोर्ड ने ब्रेन रोट शब्द को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में जोड़ा है.

इसे भी पढ़ें - KGMU में 200 से ज्यादा पदों पर शुरू हुई भर्तियां, 30 दिसंबर तक आवेदन, जानिए क्या है प्रक्रिया - JOBS IN KGMU

कोविड ने लगायी लत : डॉ. शोभित नयन ने बताया कि कोरोना काल में पूरे दो साल तक लोग घरों में कैद रहे हैं. जिसके कारण हर घर के सभी सदस्य के पास खुद का फोन है. तभी अपने फोन में बिजी रहे पढ़ाई से लेकर गेमिंग सभी चीजें ऑनलाइन होने लगी. ज्यादातर अभिभावक भी मोबाइल फोन पर बिजी रहते हैं. छह महीने के बच्चे को मोबाइल में कार्टून लगाकर पकड़ा दिया जाता है, ताकि वह देखता रहे और अभिभावक अपना काम कर सके.

आलम यह है कि अब अभिभावक जब खाली भी होते हैं तो उस समय पर भी अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. मोबाइल की लत ने बच्चों को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. इसके कारण बच्चे पिछड़ेपन के शिकार हो जाते हैं. एक लंबे समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के बाद जब बच्चे से मोबाइल छीना जाता है, तो बच्चे गुस्सैल व चिड़चिड़े हो जाते हैं.

बच्चों के सामने ना इस्तेमाल करें मोबाइल : डॉ. शोभित ने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मोबाइल फोन की लत से बाहर निकले, तो इसके लिए सबसे पहले आपको स्वयं मोबाइल का त्याग करना होगा. कोशिश करें कि बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल न चलाएं. क्योंकि जब बच्चे से मोबाइल छीन लिया जाता है, तो ऐसे बच्चे गुस्से में क्यों खड़े हो जाते हैं.

धीरे-धीरे करके बच्चे को मोबाइल फोन से दूर करें. अचानक से कोई भी काम न करें, ताकि बच्चे को यह महसूस हो कि उसे मोबाइल फोन नहीं इस्तेमाल करने दिया जा रहा है. बच्चे के सामने कभी भी एंड्रॉयड फोन का इस्तेमाल न करें. अगर बच्चा जिद कर रहा है तो उसे कहीं बाहर घुमा लाए.

नहीं शुरू किया बोलना, चल रही थेरेपी : केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में अपने तीन साल के बच्चे का इलाज करने के लिए गाजियाबाद से पहुंचे शादाब अहमद ने कहा, कि हम अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत चिंता में है. गलती इतनी हुई कि हमने बच्चे को मोबाइल पकड़ा दिया. ताकि, वह रोएं नहीं. अब इसकी स्थिति ऐसी है कि बिना मोबाइल को देखे खाना तक नहीं खाता है.

हमारे घर में दूसरे बच्चे ने दो साल बाद बोलना शुरू कर दिया था. लेकिन, मेरी बच्ची तीन साल की हो चुकी है. लेकिन, अब भी कुछ भी नहीं बोल पाती है. कभी-कभी अजीब सी आवाज निकालती है. डॉक्टर बता रहे हैं कि इसके मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ा और बच्चे मोबाइल की आदि हो गई है. अब विशेषज्ञ कुछ थेरेपी के लिए कहा है. उन्होंने कहा है कि अभी शीला शुरू हो जाएगा तो भविष्य में दिक्कत नहीं होगी.

गुम हुई बोलने की क्षमता : बिहार के रहने वाले नरेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया, कि उनका बेटा चार साल से अधिक का हो गया है. लेकिन, वह बोल नहीं पता है. केजीएमयू के मनोरोग विभाग में और न्यूरोलॉजी विभाग में दिख रहे हैं. सबसे पहले मनोरोग के भाग में दिखाया वहां से विशेषज्ञ ने न्यूरोलॉजी विभाग में परामर्श के लिए दूसरे डॉक्टर के पास भेजा. दोनों ही विशेषज्ञों ने यह बताया कि बच्चे की यह स्थिति सिर्फ स्क्रीन पर अधिक समय बिताने की वजह से हुआ है.

उन्होंने पूरी काउंसलिंग की थी. सारी जांचें हुई. बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित नहीं है. इस बात की पूरी पुष्टि जांच में हुई है. उन्होंने बताया कि बच्चे जब अधिक मोबाइल पर समय बिताते हैं तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पता है. बच्चों की स्थिति यह है कि वह हमारी आवाज को समझ ही नहीं पता है. वहीं टीवी पर अगर कोई कार्टून आ रहा हो या फिर कोई जीव जंतु की आवाज सुन रहा हो तो उसे पर रिएक्ट करता है. कभी-कभी उनके जैसे ही आवाज निकालता है.


ऐसे छुड़ाए मोबाइल की लत : कोशिश करें कि बच्चे को एंड्रॉयड फोन बिल्कुल भी न दें. अगर बात पढ़ाई की है तो घर पर ही कंप्यूटर सिस्टम लगवाएं. छोटे से बच्चे को मोबाइल फोन पर कार्टून या म्यूजिक सुनने के लिए बिल्कुल भी न पकड़ाएं. क्योंकि आप चार दिन देंगे, तो पांचवें दिन से वह मोबाइल फोन का आदि हो जाएगा. बच्चे को खेलने कूदने के लिए बाहर लेकर जाएं. अगर आप ऑफिस जाते हैं तो ऑफिस से आने के बाद अपने बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं. उससे बातें करें, उसे खिलाएं. बच्चे की मोबाइल लत छुड़ाने के लिए सबसे पहले बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें.

यह भी पढ़ें - यूपी के कई मेडिकल इंस्टीट्यूट को मिलेंगे सुपर स्पेशलिस्ट, केजीएमयू के एक्सपर्ट होंगे तैनात - UP MEDICAL INSTITUTES

लखनऊ: ब्रेन रोट एक ऐसी दिक्कत है जिससे एक से दो वर्ष के मासूम चपेट में आ रहे हैं. केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में इस तरह के बहुत सारे मासूम आ रहे हैं, जो ब्रेन रोट की गिरफ्त में है. विशेषज्ञ के मुताबिक यह बच्चों के मानसिक विकास पर बाधा डालती है. इसके कारण जिस उम्र में मासूम का मस्तिष्क विकसित होता है, उस समय वह बैरियर की तरह रोक लगाता है.

यह मोबाइल, टीबी, लैपटॉप समेत तमाम आधुनिक उपकरणों के कारण हो रहा है. लंबे समय तक एक ही पोजीशन में बैठने से सर्वाइकल के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इसमें बच्चे भी शामिल हैं, जो घंटों मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल करते हैं. सरकारी अस्पतालों के फिजियोथेरेपी विभाग में हर महीने कम से कम दस बच्चे सर्वाइकल के दर्द की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं. इनके परिजन रोजाना विभाग में थेरेपी कराने आ रहे हैं.

केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शोभित नयन ने दी जानकारी (Video Credit; ETV Bharat)
बच्चों का समय स्क्रीन पर: केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शोभित नयन ने बताया कि ब्रेन रोट एक ऐसा शब्द है जिसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हाल ही में जोड़ा गया है. अपने आप में यह बड़ी बात है. क्योंकि, यह छोटे-छोटे मासूमों को अपना शिकार बन रहा है. ब्रेन रोट के कारण छोटे-छोटे मासूमों का विकास नहीं हो पाता है. बच्चे बोल नहीं पाते हैं, समझ नहीं पाते हैं. उनका मानसिक विकास नहीं हो पता है. आज के समय में 10 में से चार से पांच बच्चे इससे पीड़ित हो रहे हैं.

अपने आप में यह बड़ा आंकड़ा है. लेकिन, यह सच बात है. डॉ. शोभित नयन ने कहा कि आज के समय में पैरेंटिंग बहुत बदल चुकी है. माता-पिता बच्चों को मोबाइल पकड़ा देते हैं. बच्चे का अधिक से अधिक जो समय है, वह स्क्रीन पर बीतता है. इस कारण बच्चा जो कुछ भी देखता है, सीखता है, वह स्क्रीन से सीखता है. क्योंकि, उस उम्र में बच्चों की सीखने की क्षमता अधिक होती है. ऐसे में कभी-कभी बच्चे जो चीज देखते हैं, उसी को अपने जहन में भर लेते हैं. वैसे ही आवाज निकालते हैं.

डॉ. शोभित नयन ने बताया कि ओपीडी में बहुत सारे ऐसे बच्चे आते हैं, जिसमें अभिभावक बताते हैं पांच वर्ष तक हमारा बच्चा बोल रहा था. लेकिन, अचानक से उसने बोलना छोड़ दिया. हमारी किसी भी बात को समझता नहीं है. यहां तक की हमारी बात को सुनता भी नहीं है. कभी-कभी सोते-सोते किसी जानवर की या किसी कार्टून की आवाज निकालता है. इसकी आवाज सुनने के लिए हम तरस गए हैं. इस तरह की बातों के साथ अभिभावक ओपीडी में आते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देखा जा रहा है कि इस तरह के आंकड़े बहुत बढ़ रहे हैं. यही कारण है कि ऑक्सफोर्ड ने ब्रेन रोट शब्द को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में जोड़ा है.

इसे भी पढ़ें - KGMU में 200 से ज्यादा पदों पर शुरू हुई भर्तियां, 30 दिसंबर तक आवेदन, जानिए क्या है प्रक्रिया - JOBS IN KGMU

कोविड ने लगायी लत : डॉ. शोभित नयन ने बताया कि कोरोना काल में पूरे दो साल तक लोग घरों में कैद रहे हैं. जिसके कारण हर घर के सभी सदस्य के पास खुद का फोन है. तभी अपने फोन में बिजी रहे पढ़ाई से लेकर गेमिंग सभी चीजें ऑनलाइन होने लगी. ज्यादातर अभिभावक भी मोबाइल फोन पर बिजी रहते हैं. छह महीने के बच्चे को मोबाइल में कार्टून लगाकर पकड़ा दिया जाता है, ताकि वह देखता रहे और अभिभावक अपना काम कर सके.

आलम यह है कि अब अभिभावक जब खाली भी होते हैं तो उस समय पर भी अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. मोबाइल की लत ने बच्चों को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. इसके कारण बच्चे पिछड़ेपन के शिकार हो जाते हैं. एक लंबे समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के बाद जब बच्चे से मोबाइल छीना जाता है, तो बच्चे गुस्सैल व चिड़चिड़े हो जाते हैं.

बच्चों के सामने ना इस्तेमाल करें मोबाइल : डॉ. शोभित ने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मोबाइल फोन की लत से बाहर निकले, तो इसके लिए सबसे पहले आपको स्वयं मोबाइल का त्याग करना होगा. कोशिश करें कि बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल न चलाएं. क्योंकि जब बच्चे से मोबाइल छीन लिया जाता है, तो ऐसे बच्चे गुस्से में क्यों खड़े हो जाते हैं.

धीरे-धीरे करके बच्चे को मोबाइल फोन से दूर करें. अचानक से कोई भी काम न करें, ताकि बच्चे को यह महसूस हो कि उसे मोबाइल फोन नहीं इस्तेमाल करने दिया जा रहा है. बच्चे के सामने कभी भी एंड्रॉयड फोन का इस्तेमाल न करें. अगर बच्चा जिद कर रहा है तो उसे कहीं बाहर घुमा लाए.

नहीं शुरू किया बोलना, चल रही थेरेपी : केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में अपने तीन साल के बच्चे का इलाज करने के लिए गाजियाबाद से पहुंचे शादाब अहमद ने कहा, कि हम अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत चिंता में है. गलती इतनी हुई कि हमने बच्चे को मोबाइल पकड़ा दिया. ताकि, वह रोएं नहीं. अब इसकी स्थिति ऐसी है कि बिना मोबाइल को देखे खाना तक नहीं खाता है.

हमारे घर में दूसरे बच्चे ने दो साल बाद बोलना शुरू कर दिया था. लेकिन, मेरी बच्ची तीन साल की हो चुकी है. लेकिन, अब भी कुछ भी नहीं बोल पाती है. कभी-कभी अजीब सी आवाज निकालती है. डॉक्टर बता रहे हैं कि इसके मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ा और बच्चे मोबाइल की आदि हो गई है. अब विशेषज्ञ कुछ थेरेपी के लिए कहा है. उन्होंने कहा है कि अभी शीला शुरू हो जाएगा तो भविष्य में दिक्कत नहीं होगी.

गुम हुई बोलने की क्षमता : बिहार के रहने वाले नरेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया, कि उनका बेटा चार साल से अधिक का हो गया है. लेकिन, वह बोल नहीं पता है. केजीएमयू के मनोरोग विभाग में और न्यूरोलॉजी विभाग में दिख रहे हैं. सबसे पहले मनोरोग के भाग में दिखाया वहां से विशेषज्ञ ने न्यूरोलॉजी विभाग में परामर्श के लिए दूसरे डॉक्टर के पास भेजा. दोनों ही विशेषज्ञों ने यह बताया कि बच्चे की यह स्थिति सिर्फ स्क्रीन पर अधिक समय बिताने की वजह से हुआ है.

उन्होंने पूरी काउंसलिंग की थी. सारी जांचें हुई. बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित नहीं है. इस बात की पूरी पुष्टि जांच में हुई है. उन्होंने बताया कि बच्चे जब अधिक मोबाइल पर समय बिताते हैं तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पता है. बच्चों की स्थिति यह है कि वह हमारी आवाज को समझ ही नहीं पता है. वहीं टीवी पर अगर कोई कार्टून आ रहा हो या फिर कोई जीव जंतु की आवाज सुन रहा हो तो उसे पर रिएक्ट करता है. कभी-कभी उनके जैसे ही आवाज निकालता है.


ऐसे छुड़ाए मोबाइल की लत : कोशिश करें कि बच्चे को एंड्रॉयड फोन बिल्कुल भी न दें. अगर बात पढ़ाई की है तो घर पर ही कंप्यूटर सिस्टम लगवाएं. छोटे से बच्चे को मोबाइल फोन पर कार्टून या म्यूजिक सुनने के लिए बिल्कुल भी न पकड़ाएं. क्योंकि आप चार दिन देंगे, तो पांचवें दिन से वह मोबाइल फोन का आदि हो जाएगा. बच्चे को खेलने कूदने के लिए बाहर लेकर जाएं. अगर आप ऑफिस जाते हैं तो ऑफिस से आने के बाद अपने बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं. उससे बातें करें, उसे खिलाएं. बच्चे की मोबाइल लत छुड़ाने के लिए सबसे पहले बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें.

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