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पांच साल से कम उम्र के बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक मां, हाईकोर्ट ने पिता की अपील खारिज की - ALLAHABAD HIGH COURT

पत्नी से अलग रह रहे मेरठ के व्यक्ति ने बेटी की अभिरक्षा देने की अपील की थी, तर्क दिया कि बेटी उसके साथ बहुत खुश

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 15, 2025, 10:52 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक मां है. ऐसा बच्चा पिता के साथ खुश है, सिर्फ इस आधार पर मां को उसकी संरक्षकता से वंचित नहीं कर सकते. इसी के साथ कोर्ट ने बेटी की अभिरक्षा के लिए पिता की ओर से दाखिल की अपील खारिज कर दी. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति डी रमेश की खंडपीठ ने मेरठ के अमित धामा की अपील पर सुनवाई के बाद दिया.

मेरठ निवासी अमित धामा की शादी 23 मई 2010 को हुई थी और उनकी एक बेटी और बेटा हैं. कुछ साल बाद पति-पत्नी के बीच मनमुटाव हो गया और वे अलग-अलग रहने लगे. पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार का सुलह न होने पर पति ने तलाक के लिए पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दाखिल की. पत्नी ने नाबालिग बेटी की अभिरक्षा के लिए याचिका दाखिल की, जिसे पारिवारिक न्यायालय ने स्वीकार कर लिया. इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. अपीलार्थी के वकील ने दलील दी कि बेटी अपने पिता के साथ खुशी-खुशी रह रही है. ऐसे में बेटी की अभिरक्षा मां को दी जाती है तो उसके मन में सदमा लगेगा. पत्नी के वकील ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि कानूनी रूप से मां ही बच्ची की प्राकृतिक संरक्षक है.

कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि ऐसा कोई आरोप मां पर नहीं लगाया गया है, जिससे यह साबित हो कि मां के साथ बेटी का हित प्रभावित होगा. इसके अलावा मां नाबालिग बेटी की प्राकृतिक संरक्षक है. पति-पत्नी के अलगाव के दौरान बेटी पिता के साथ रही है, सिर्फ इस आधार नाबालिग बेटी की अभिरक्षा पिता को नहीं दी जा सकती.

इसे भी पढ़ें-रेलवे भर्ती बोर्ड को ड्राइवर का एक पद रिक्त रखने का निर्देश, हाईकोर्ट ने जानिए ऐसा क्यों कहा?

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक मां है. ऐसा बच्चा पिता के साथ खुश है, सिर्फ इस आधार पर मां को उसकी संरक्षकता से वंचित नहीं कर सकते. इसी के साथ कोर्ट ने बेटी की अभिरक्षा के लिए पिता की ओर से दाखिल की अपील खारिज कर दी. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति डी रमेश की खंडपीठ ने मेरठ के अमित धामा की अपील पर सुनवाई के बाद दिया.

मेरठ निवासी अमित धामा की शादी 23 मई 2010 को हुई थी और उनकी एक बेटी और बेटा हैं. कुछ साल बाद पति-पत्नी के बीच मनमुटाव हो गया और वे अलग-अलग रहने लगे. पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार का सुलह न होने पर पति ने तलाक के लिए पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दाखिल की. पत्नी ने नाबालिग बेटी की अभिरक्षा के लिए याचिका दाखिल की, जिसे पारिवारिक न्यायालय ने स्वीकार कर लिया. इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. अपीलार्थी के वकील ने दलील दी कि बेटी अपने पिता के साथ खुशी-खुशी रह रही है. ऐसे में बेटी की अभिरक्षा मां को दी जाती है तो उसके मन में सदमा लगेगा. पत्नी के वकील ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि कानूनी रूप से मां ही बच्ची की प्राकृतिक संरक्षक है.

कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि ऐसा कोई आरोप मां पर नहीं लगाया गया है, जिससे यह साबित हो कि मां के साथ बेटी का हित प्रभावित होगा. इसके अलावा मां नाबालिग बेटी की प्राकृतिक संरक्षक है. पति-पत्नी के अलगाव के दौरान बेटी पिता के साथ रही है, सिर्फ इस आधार नाबालिग बेटी की अभिरक्षा पिता को नहीं दी जा सकती.

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