जयपुर. राजस्थान की राजनीति जातीय समीकरण पर टिकी है. चारों दिशाओं में अलग-अलग जातियों का प्रभाव है. अक्सर इन जातियों का दबदबा चुनाव में देखने को भी मिलता है. यही वजह है कि अब भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर खास रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है. विधानसभा चुनाव के बाद भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई हो, लेकिन अपेक्षा अनुरूप परिणाम नहीं आने से पार्टी शीर्ष नेतृत्व लोकसभा चुनाव में अलग प्लान के साथ उतरने जा रही है. दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं के बावजूद अपेक्षाकृत परिणाम नहीं आने पर अब भाजपा आदिवासी नेताओं के जरिए आदिवासी वोटर्स को साधने की कवायद में जुट गई है. यही वजह है कि लंबे समय से हाशिए पर चल रहे आदिवासी नेता चुन्नीलाल गरासिया को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया गया और फिर कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता व पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय को पार्टी से जोड़ने की रणनीति बनाई गई है, ताकि आदिवासी वोट बैंक को अपने पाले में किया जा सके.
आदिवासी समाज का प्रभाव : राजस्थान में विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो 200 में से 25 सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है, जिसमें अकेले उदयपुर डिवीजन 16 सीट एसटी के लिए आरक्षित है. इसी तरह से लोकसभा सीटों के लिहाज से देखें तो प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 3 सीट एसटी के लिए आरक्षित है, जिसमें से 2 सीट अकेले उदयपुर डिवीजन में है. यानी प्रदेश में उदयपुर डिवीजन आदिवासियों के लिहाज से बड़ा वोट बैंक माना जा सकता है. इसमें भी उदयपुर और डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभ सीट खास महत्व रखती है, जो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. दोनों लोकसभा सीटों के आंकड़ों को देखें तो 16 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 7, कांग्रेस के पास 6, जबकि पहली बार चुनावी मैदान में उतरी बीएपी यानी भारतीय आदिवासी पार्टी के पास तीन सीटें हैं.
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बीएपी ने बदले समीकरण : बीएपी की बात करें तो ये पार्टी पूरी तरह से आदिवासियों के दम पर बीते विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही तो वहीं, 16 सीटों पर उसे बड़ा वोट मार्जिन हासिल हुआ. 2023 के विधानसभा चुनाव में उदयपुर डिवीजन में भाजपा को 6 लाख 46 हजार के करीब वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 5 लाख 15 हजार और बीएपी को 3 लाख 60 हजार से अधिक वोट हासिल हुए थे. इसी तरह से डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर भाजपा को 5 लाख 30 के करीब वोट पड़े, जबकि कांग्रेस को 5 लाख 97 हजार और बीएपी को 4 लाख 81 हजार से अधिक वोट मिले. ऐसे में अब बीएपी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने इस बार आदिवासी वोटरों पर विशेष फोकस किया है और यही वजह है कि पार्टी ने चुन्नीलाल गरासिया को अपना राजयसभा उम्मीदवार बनाया. वहीं, चुन्नीलाल गरासिया भी एक साक्षात्कार में इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि आदिवासियों में कुछ शक्तियां खड़ी हो रही हैं, जिन पर काबू पाना बेहद जरूरी है.
उदयपुर और डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट : उदयपुर लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 5 सीटों पर जीत मिली. इसमें गोगुंदा (ST), झाड़ोल (ST), उदयपुर शहरी , उदयपुर ग्रामीण (ST), सलूंबर (ST) सीट शामिल है, जबकि खेरवाड़ा सीट पर कांग्रेस और धरियावद और आसपुर दो सीटों पर भारतीय आदिवसी पार्टी को जीत मिली. इसी तरह से डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट में डूंगरपुर जिले की 3 और बांसवाड़ा जिले की 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें सागवाड़ा (ST) और गढ़ी (ST) सीट भाजपा के पास है तो डूंगरपुर (एसटी), घाटोल (ST), बांसवाड़ा (ST) भगीदौरा (ST), कुशलगढ़ (ST) कांग्रेस के खाते में गई. वहीं, चौरासी (एसटी) सीट को निकालने में बीएपी कामयाब रही.
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गरासिया और मालवीय का सियासी गणित : बीते विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा उदयपुर डिवीजन में अच्छी बढ़त हासिल करने में कामयाब रही हो, लेकिन जिस तरह से भारतीय आदिवासी पार्टी ने अपनी जमीन को मजबूत किया है, उससे कहीं न कहीं भाजपा को लोकसभा चुनाव में खतरा महसूस हो रहा है. क्षेत्र के सियासी जानकार लालकुमार बताते हैं कि चुन्नीलाल गरासिया आदिवासी समाज के बड़े नेता हैं. ऐसे में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का उम्मीदवार बनाकर आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की है. इसके साथ ही आदिवासी समाज से आने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय के जरिए पार्टी उदयपुर और डूंगरपुर-बांसवाड़ा विधानसभा सीटों पर भी अपनी मजबूत पकड़ बनाना चाहती है. भाजपा की रणनीति है कि उदयपुर से महेंद्रजीत सिंह मालवीय को लोकसभा का उम्मीदवार बनाकर डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर भी अपनी पकड़ मजबूत करे. मालवीय आदिवासी समाज के बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं और उनका पश्चिमी राजस्थान के आदिवासियों पर बड़ा प्रभाव है. ऐसे में भाजपा मालवीय के जरिए एक तीर से दो शिकार करने की फिराक में है.