जयपुर : राजस्थान कांग्रेस के मुखिया गोविंद सिंह डोटासरा का जन्मदिन सियासी गलियारों में उनकी अपील पर नहीं मनाया गया. 59 साल के इस कांग्रेस नेता ने एक दौर में कमजोर समझी जा रही पार्टी में बतौर प्रदेश अध्यक्ष जिम्मेदारी संभाली और उनके नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 11 सीटों पर जीत हासिल भी की. डोटासरा के जन्मदिन पर उनकी राजनीतिक पारी को लेकर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि वह निश्चित तौर पर भाग्य के धनी हैं, जब उन्हें अशोक गहलोत के कहने पर पार्टी ने 24 जुलाई 2020 को उन्हें पार्टी की कमान सौंपी थी. उनका कहना है कि डोटासरा फिलहाल कांग्रेस को मजबूत बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए नजर नहीं आते हैं, बल्कि उनका चेहरा जाति विशेष तक सिमट कर रह गया है.
दिग्गज नेताओं की पंक्ति में इंतजार : शेखावाटी में जब कांग्रेस और जाट लीडरशिप की बात होती है तो कुंभाराम आर्य जैसे नेताओं का जिक्र होता है, जिनका वर्चस्व सर्वजातियों में माना जाता था. इसी तरह डोटासरा के राजनीतिक गुरु नारायण सिंह की भी चर्चा होती है. शेखावाटी के दिग्गज नेताओं की फेहरिस्त में इसके आगे रामनारायण चौधरी और शीशराम ओला का भी नाम आता है. श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार लक्ष्मणगढ़ से लगातार चौथी जीत डोटासरा को आज के दौर में इन सब नेताओं की पंक्ति में खड़ा कर देती है, लेकिन अभी उनकी राह आसान नहीं है. जाहिर है कि इसी शेखावाटी की जमीन से निकले डॉक्टर चंद्रभान भी अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे, लेकिन उनके माथे पर कामयाबी का इतना बड़ा सेहरा नहीं बंध सका.
क्या पहले जाट सीएम की डोटासरा में संभावना ? : राजस्थान की जाट लीडरशिप का एक कद्दावर चेहरा होने के साथ गोविंद सिंह डोटासरा के मौजूदा कद को देखते हुए उन्हें फ्यूचर सीएम वाली लिस्ट में उनके प्रशंसक शुमार करते रहे हैं. इस सवाल पर श्याम सुंदर शर्मा मानते हैं कि ऐसा होना फिलहाल मौजूदा सूरत-ए-हाल में मुमकिन नहीं लगता है. शर्मा कहते हैं कि जब मदेरणा 153 सीटें जीतने के बावजूद सीएम की कुर्सी से दूर रह जाते हैं तो डोटासरा की लंबी पारी का 2028 तक बरकरार रहना मुश्किल लगता है. शर्मा कहते हैं कि फिलहाल डोटासरा के लिए पार्टी में खुद को बनाए रखा एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि जाट नेता बनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाना आसान नहीं है.
पायलट, गहलोत की कतार में आने का इंतजार : अपने विश्लेषण में श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट जैसे नेता राजस्थान में कांग्रेस का चेहरा-मोहरा हैं, जिनका दिल्ली में अपना एक वजूद है. फिलहाल डोटासरा दिल्ली तक वह पकड़ बना पाने में नाकाम साबित हुए हैं. हालांकि, वह मानते हैं कि सोनिया गांधी को राजस्थान से राज्यसभा तक भेजे जाने का श्रेय डोटासरा को जाता है, लेकिन इस फैसले का क्रेडिट भी अशोक गहलोत के खाते में चला गया.
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क्या डोटासरा ने गुटबाजी पर लगाया विराम ? : श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार डोटासरा राजस्थान में गहलोत-पायलट खेमे के बीच की गुटबाजी को खत्म कर पाने में कामयाब साबित नहीं हो सके. उन्होंने कहा कि पायलट-गहलोत के बीच की सियासी अदावत आज भी जस की तस नजर आती है. दोनों नेता आज भी एक दूसरे से दूर नजर आते हैं. ऐसे ही बतौर पीसीसी चीफ डोटासरा की पार्टी के मुखिया के रूप में कार्यशैली भी वक्त-वक्त पर उनके कौशल को लेकर सवाल खड़े करती रही है. वे मानते हैं कि प्रदेश कांग्रेस की बागडोर जिस तरह से डोटासरा को थामनी चाहिए, आज वह सब मुमकिन नहीं हो पाया है. मोदी लहर की दो बार 25 सीट जीतने के बाद राजस्थान में 11 सीटों पर कांग्रेस और सहयोगी दलों की जीत क्या डोटासरा को एक बड़ा नेता साबित करती है के सवाल पर श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि इस जीत में हनुमान बेनीवाल, अमराराम और राजकुमार रोत की भी भागीदारी है, लेकिन 8 सीटों पर कांग्रेस के काबिज होने का श्रेय पीसीसी चीफ को भी दिया जाना चाहिए.