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होली विशेषः बीकानेर की पहचान है 400 साल पुरानी 'रम्मत', पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहे इस खास कला को

बीकानेर में होलाष्टक के लगने के साथ ही हर दिन रम्मत का मंचन होता है. इस रम्मत के लिए क्षेत्र के लोगों में अलग ही क्रेज है. यहां जानिए क्या है ये रम्मत और कैसे यह बनी परंपरा...

Bikaneri Rammat
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 21, 2024, 6:32 AM IST

बीकानेर में होता है रम्मतों का आयोजन

बीकानेर. फाल्गुनी मस्ती में डूबे बीकानेर में इन दिनों होली के रंग पूरे परवान पर है. कहा भी जाता है कि बरसाने की लट्ठमार होली के बाद बीकानेर की होली की अपनी एक अलग छाप है. होली में बीकानेर में रात में पूरा शहर जागता है और होली के गीतों के साथ चंग की थाप भी सुनाई देती है. बीकानेर शहर के अंदरूनी क्षेत्र जहां अधिसंख्या में पुष्करणा ब्राह्मण निवास करते हैं, जिनकी वजह से बीकानेर की होली विश्व प्रसिद्ध है. लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज एक अनूठा उदाहरण है. होलाष्टक लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है.

बसंत पंचमी से शुरू होता अभ्यास : बीकानेर शहर में बसंत पंचमी के साथ ही रम्मतों के अभ्यास का आयोजन शुरू हो जाता है. दरअसल, किसी न किसी विषय पर मंचित होते नाटक की तरह ये मंचन होता है, जिसे रम्मत कहा जाता है. बीकानेर के बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से आयोजित हो रही भक्त पूर्णमल और शहजादी नौटंकी दो रम्मत का आयोजन होता है. हर एक साल के अंतराल में एक रम्मत होती है.

बीकानेर में होता रम्मतों का आयोजन
बीकानेर में होता रम्मतों का आयोजन

पढे़ं. हंसी-ठिठोली और उड़ते रंगों के बीच प्यार की लाठियां बरसी, देखें VIDEO

पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा : रम्मत के मुख्य कलाकार किशन कुमार बिस्सा कहते हैं कि मनोरंजन के नाम पर त्योहार के मौके पर अपनों को एक जगह एकत्रित करने के उद्देश्य से शुरू हुई यह रम्मत अब परंपरा बन चुकी है. बिस्सा कहते है कि वो अपने परिवार की छठी पीढ़ी के व्यक्ति हैं, जो इस रम्मत से जुड़े हैं.

रम्मतों का अपना अलग क्रेज : देर रात शुरू होने वाली इन रम्मत को देखने के लिए जुटी लोगों की भीड़ इसकी लोकप्रियता बताने के लिए काफी है. बीकानेर में अलग अलग मोहल्ले के अनुसार इन रम्मतों का आयोजन होता है, जिनमें जमनादास कल्ला की रम्मत हो या स्वांग मेहरी या फक्कड़दाता की रम्मत. सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज है.

होलाष्टक के साथ रम्मतों का मंचन शुरू : इन रम्मतों को लेकर पुरानी पीढ़ी नहीं बल्कि युवाओं में भी क्रेज देखने को मिलता है. हालांकि, अब मोबाइल और टेक्नोलॉजी के इस युग में युवाओं को इन रम्मतों के प्रति जोड़े रखना भी कलाकारों के लिए एक चुनौती है. पूर्व कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला कहते हैं कि होलाष्टक के साथ ही बीकानेर में इन रम्मतों का आयोजन होता है. इन रम्मत कलाकारों की मेहनत का नतीजा है कि आज भी लोग इससे जुड़े हुए हैं. आने वाली पीढ़ी भी धीरे-धीरे इससे जुड़ रही है.

बीकानेर में होता है रम्मतों का आयोजन

बीकानेर. फाल्गुनी मस्ती में डूबे बीकानेर में इन दिनों होली के रंग पूरे परवान पर है. कहा भी जाता है कि बरसाने की लट्ठमार होली के बाद बीकानेर की होली की अपनी एक अलग छाप है. होली में बीकानेर में रात में पूरा शहर जागता है और होली के गीतों के साथ चंग की थाप भी सुनाई देती है. बीकानेर शहर के अंदरूनी क्षेत्र जहां अधिसंख्या में पुष्करणा ब्राह्मण निवास करते हैं, जिनकी वजह से बीकानेर की होली विश्व प्रसिद्ध है. लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज एक अनूठा उदाहरण है. होलाष्टक लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है.

बसंत पंचमी से शुरू होता अभ्यास : बीकानेर शहर में बसंत पंचमी के साथ ही रम्मतों के अभ्यास का आयोजन शुरू हो जाता है. दरअसल, किसी न किसी विषय पर मंचित होते नाटक की तरह ये मंचन होता है, जिसे रम्मत कहा जाता है. बीकानेर के बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से आयोजित हो रही भक्त पूर्णमल और शहजादी नौटंकी दो रम्मत का आयोजन होता है. हर एक साल के अंतराल में एक रम्मत होती है.

बीकानेर में होता रम्मतों का आयोजन
बीकानेर में होता रम्मतों का आयोजन

पढे़ं. हंसी-ठिठोली और उड़ते रंगों के बीच प्यार की लाठियां बरसी, देखें VIDEO

पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा : रम्मत के मुख्य कलाकार किशन कुमार बिस्सा कहते हैं कि मनोरंजन के नाम पर त्योहार के मौके पर अपनों को एक जगह एकत्रित करने के उद्देश्य से शुरू हुई यह रम्मत अब परंपरा बन चुकी है. बिस्सा कहते है कि वो अपने परिवार की छठी पीढ़ी के व्यक्ति हैं, जो इस रम्मत से जुड़े हैं.

रम्मतों का अपना अलग क्रेज : देर रात शुरू होने वाली इन रम्मत को देखने के लिए जुटी लोगों की भीड़ इसकी लोकप्रियता बताने के लिए काफी है. बीकानेर में अलग अलग मोहल्ले के अनुसार इन रम्मतों का आयोजन होता है, जिनमें जमनादास कल्ला की रम्मत हो या स्वांग मेहरी या फक्कड़दाता की रम्मत. सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज है.

होलाष्टक के साथ रम्मतों का मंचन शुरू : इन रम्मतों को लेकर पुरानी पीढ़ी नहीं बल्कि युवाओं में भी क्रेज देखने को मिलता है. हालांकि, अब मोबाइल और टेक्नोलॉजी के इस युग में युवाओं को इन रम्मतों के प्रति जोड़े रखना भी कलाकारों के लिए एक चुनौती है. पूर्व कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला कहते हैं कि होलाष्टक के साथ ही बीकानेर में इन रम्मतों का आयोजन होता है. इन रम्मत कलाकारों की मेहनत का नतीजा है कि आज भी लोग इससे जुड़े हुए हैं. आने वाली पीढ़ी भी धीरे-धीरे इससे जुड़ रही है.

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