पटना: भूमिहार समाज के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीति का सबसे मुखर कास्ट हैं. यह समाज जिसकी तरफ जाता है, उसके पक्ष में न केवल हवा बनती है बल्कि कई बार सरकार भी उसी पार्टी की बनती है. बिहार के कई जिलों में भूमिहार वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. बेगूसराय, मुंगेर, जहानाबाद, लखीसराय, नवादा, आरा, पटना, मुजफ्फरपुर और वैशाली जिलों में भूमिहार समाज की संख्या अधिक है. जहां भूमिहार मतदाता राजनीतिक रूप से निर्णायक की भूमिका में होते हैं.
R-A-M पर सियासी दलों की नजर: भूमिहार वोटरों के बारे में कहा जाता है कि पिछले कई सालों से वह बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक रहा है. इसी वोट बैंक पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है. कांग्रेस ने मगध क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले रामजतन सिन्हा को फिर से पार्टी में शामिल करवाया है. वहीं जेडीयू पटना, मुंगेर और लखीसराय में भूमिहारों में प्रभाव रखने वाले अनंत सिंह को अपने पाले में लाने की जुगत में है.
वहीं, आरजेडी भी भूमिहारों को अपने पाले में लाने के लिए लोकसभा चुनाव के समय से ही राजनीतिक प्रयास कर रहा है. तिरहुत क्षेत्र में भूमिहारों में प्रभाव रखने वाले मुन्ना शुक्ला को तेजस्वी यादव ने अपने पाले में लाकर भूमिहार वोट को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया. एक बार फिर आरजेडी मुन्ना शुक्ला के सहारे उस इलाके में विधानसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने की जुगत में है.
R- रामजतन सिन्हा की कांग्रेस में वापसी: बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके प्रो. रामजतन सिन्हा एक बार फिर पुराने घर कांग्रेस में लौट आए हैं. 14 अगस्त को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. पार्टी से नाराज होकर रामजतन सिन्हा दो बार कांग्रेस छोड़ चुके हैं. पहली बार 2005 और दूसरी बार 2012 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ी. रामजतन सिन्हा लोजपा और जेडीयू में भी शामिल हो चुके हैं. 2003 से 2005 के दौरान बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे रामजतन तब मगध के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे. जहानाबाद, अरवल, गया, नवादा और पटना में भूमिहार समाज में उनका प्रभाव रहा है.
A- अनंत सिंह जेल से रिहा हुए: बाहुबली नेता अनंत सिंह का मोकामा और मुंगेर में अच्छी पकड़ रही है. अनंत सिंह मोकामा से 2005 और 2010 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि 2015 में नीतीश से नाराजगी के कारण वे जेडीयू से अलग हो गए. 2015 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी, जबकि 2020 में आरजेडी के सिंबल पर विधाकयक बने थे. वहीं, एके-47 मामले में 10 साल की सजा होने के बाद उनकी विधायकी चली गई. इसके बाद हुए उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ीं और उन्होंने जीत हासिल की.
भूमिहार वोट बैंक पर मजबूत पकड़: मुंगेर और आसपास के इलाके में अनंत सिंह का प्रभाव इतना है कि 2024 लोकसभा के चुनाव में जेडीयू कैंडिडेट ललन सिंह की मदद के लिए अनंत सिंह 15 दिनों के लिए पैरोल पर जेल से बाहर निकले. हालांकि पैरोल मिलने की वजह पारिवारिक जमीन का बंटवारा करना था. कहा जाता है कि अनंत सिंह ने ललन सिंह की खुलकर मदद की, जिसका नतीजा रहा कि ललन सिंह की चुनाव में जीत हुई. अब अनंत सिंह पटना उच्च न्यायालय द्वारा एके-47 रखने के मामले में दोष मुक्त करार दिए गए हैं. वह जेल से रिहा हो चुके हैं. चर्चा है कि एक बार फिर से वह जेडीयू में शामिल होंगे और आगामी विधानसभा चुनाव जेडीयू के सिंबल पर लड़ेंगे.
नीतीश से हो चुकी है मुलाकात: जेल से रिहा होने के बाद बाहुबली अनंत सिंह की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से दो बार मुलाकात हो चुकी है. एक बार पटना में जाकर अनंत ने सीएम से भेंट की थी. वहीं दूसरी बार मुख्यमंत्री खुद उनके पैतृक गांव आए और उनसे मुलाकात की. वहीं ललन सिंह से भी लगातार उनका मिलना-जुलना हो रहा है.
M- मुन्ना शुक्ला का अपने इलाके में प्रभाव: बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला का वैशाली और मुजफ्फरपुर के इलाके में व्यापक प्रभाव है. दर्जनों आपराधिक मामलों का सामना कर रहे मुन्ना शुक्ला ने 2002 में राजनीति में कदम रखा था. 2002 में जेल से ही चुनाव लड़कर उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद 2005 के चुनाव और मध्यावधि चुनाव में जेडीयू के टिकट पर विधायक बने. साल 2009 में एक बार फिर से जेडीयू ने मुन्ना शुक्ला को मैदान में उतारा लेकिन इस बार वह चुनाव हार गए. इसके बाद उन्होंने 2010 में अपनी पत्नी अन्नु शुक्ला को लालगंज सीट से जेडीयू का टिकट दिलवाया और वह चुनाव जीत गईं.
लोकसभा चुनाव से पहले आरजेडी में शामिल: 2024 में मुन्ना शुक्ला ने राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया. लालू यादव ने भूमिहार वोटों को अपने पक्ष में लाने के लिए वैशाली से उनको टिकट दे दिया. हालांकि लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा लेकिन आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में उनके सहारे एक बार फिर से आरजेडी उस इलाके में भूमिहार वोटरों को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहा है. चर्चा है कि मुन्ना शुक्ला की पत्नी अनु शुक्ला लालगंज से आरजेडी की उम्मीदवार होंगी.
जेडीयू में कई बड़े भूमिहार नेता मौजूद: जेडीयू प्रवक्ता अरविंद निषाद का कहना है कि हमारी पार्टी और हमारे नेता जाति विशेष के लिए काम नहीं करते हैं. जेडीयू में ललन बाबू हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रहे हैं अभी पार्टी की ओर से केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. वहीं, विजय चौधरी बिहार सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं. वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी रहे हैं. प्रशासनिक पदों पर भी सभी समाज के लोगों को राज्य सरकार ने अवसर दिया है. अनंत सिंह के जेडीयू में आने के सवाल पर अरविंद निषाद ने कहा कि अनंत सिंह को फैसला करना है कि उनको आगे क्या करना है?
"हमारे नेता सभी समाज औक सभी धर्म सभी लोगों के लिए काम करते हैं. चाहे वह अगड़ा-पिछड़ा या अति पिछड़ा हो या फिर दलित और महादलित हो. मुसलमान हो या महिला, हमलोग सभी वर्गों को साथ लेकर के चलते रहे हैं. हमारी पार्टी में सभी समाज के लोगों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. इसलिए यह कहना कि हमलोग भूमिहार वोट बैंक को साधने के लिए किसी नेता को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, यह ठीक नहीं."- अरविंद निषाद, प्रवक्ता, जनता दल यूनाइटेड
अनंत सिंह के बहाने आरजेडी का नीतीश पर निशाना: आरजेडी के बारे में कहा जाता है कि इस पार्टी में शुरू से ही बाहुबली नेताओं का बोलबाला रहा है. अभी भी कई ऐसे विधायक हैं, जिनकी छवि बाहुबली वाली है लेकिन जैसे ही अनंत सिंह का झुकाव फिर से जेडीयू की तरफ हुआ है, आरजेडी इसको लेकर नीतीश कुमार पर निशाना साथ रहा है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि बिहार के अपराध जगत के जितने बादशाह है, वह जेल से निकलते ही मुख्यमंत्री के अगल-बगल में बैठने लगते हैं.
"जितने लोग अपराध जगत के बाहुबली थे, वह अब नीतीश कुमार के अगल-बगल में बैठेंगे और नीतीश कुमार की शोभा बढ़ाएंगे. सत्ता संरक्षित अपराध का आरोप ऐसे ही उन पर नहीं लगता है. नीतीश कुमार के द्वार पर हुई अपराधियों की भीड़, नीतीश कुमार चंदन रगड़ें और तिलक करें बाहुबली और वीर."- शक्ति सिंह यादव, प्रवक्ता, जेडीयू
भूमिहार वोट बैंक पर बीजेपी का दावा: उधर, बीजेपी प्रवक्ता राकेश कुमार सिंह का कहना है कि किसी नेता के इधर-उधर जाने से बीजेपी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. जिस समाज की चर्चा आप कर रहे हैं, उसका पूरा वोट भारतीय जनता पार्टी के साथ पहले से है. पूरा का पूरा वोट भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के साथ है. लोकसभा चुनाव में भी समाज के सभी वर्गों का वोट मिला है, जिसके चलते बिहार में एनडीए ने 30 सीटों पर जीत हासिल की है. राकेश सिंह ने कहा कि आरजेडी को बाहुबलियों के ऊपर बोलने का कोई अधिकार नहीं है.
2020 चुनाव में कितने भूमिहार विधायक जीते?: 2020 में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में 21 भूमिहार विधायक जीते. इसमें सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी से जीते थे. बीजेपी के 14 भूमिहार प्रत्याशियों में से 8 ने जीत दर्ज की. जेडीयू के 8 भूमिहार प्रत्याशियों में से 5 जीते. हम से एक उम्मीदवार जीता, यानी एनडीए से 14 भूमिहार विधायक बने. वहीं, महागठबंधन के टिकट पर 6 भूमिहार विधायकों ने जीत दर्ज की. इनमें सबसे ज्यादा कांग्रेस के 11 प्रत्याशियों में से 4 ने जीत दर्ज की, जबकि आरजेडी और सीपीआई से एक-एक विधायक ने जीत दर्ज की.
2024 लोकसभा चुनाव में कितने भूमिहार सांसद बने?: वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में तीन सीटों पर भूमिहार कैंडिडेट ने जीत दर्ज की. मुंगेर से जेडीयू उम्मीदवार ललन सिंह ने जीत दर्ज की. बेगूसराय से बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह और नवादा से बीजेपी कैंडिडेट विवेक ठाकुर ने चुनाव में जीत दर्ज की. वैशाली से आरजेडी ने मुन्ना शुक्ला और महाराजगंज से कांग्रेस ने आकाश कुमार सिंह को टिकट दिया था लेकिन दोनों को हार का सामना करना पड़ा.
क्या कहते हैं जानकार?: वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि भूमिहार समाज की गिनती वाइब्रेट समाज में होती है. बिहार में जब नीतीश कुमार ने ध्रुवीकरण की कोशिश के तहत पिछड़ा बनाम अति पिछड़ा, दलित बनाम महादलित की तो आरजेडी को भी लगा कि हम अगड़ा-पिछड़ा कर के बहुत दिन तक राजनीति में सर्वाइव नहीं कर सकते हैं. ऐसे में लालू यादव ने भी अपनी एक चाल चली और उन्होंने भूमिहारों पर डोरा डालना शुरू किया. तेजस्वी यादव लगातार एटूजेड की बात करते हैं, इसी के तहत मुन्ना शुक्ला को लोकसभा चुनाव में वैशाली से उम्मीदवार बनाया. वहीं कांग्रेस अब रामजतन सिन्हा पर दावा लगा रही है. जिस अनंत सिंह से नीतीश कुमार दूरी बनाते थे, अब दोनों की नजदीकी बढ़ने लगी है.
"अब राजनीतिक दलों में बाहुबली को लेकर कोई कॉन्सेप्ट नहीं रह गया है. उनका सीधा दिख रहा है कि यदि बाहुबलियों के आने से भूमिहार समाज का वोट उनके पक्ष में आता है तो किसी पार्टी को कोई परहेज नहीं है. सभी राजनीतिक दल अपना अपना प्लेटफार्म खोलकर बैठी हुई है. आप हमारे साथ आइये, आपको हम टिकट देंगे. जो राजनीतिक दल पिछड़ा और अति पिछड़ा की राजनीति करती थी, उन्हें भी अब भूमिहारों से कोई परहेज नहीं."- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
ये भी पढ़ें: