पटना: बिहार म्यूजियम में मंगलवार को पद्मश्री कलाकारों सम्मानित किया गया. इनमें मिथिला पेंटिंग से शिवन पासवान और शांति देवी मौजूद रही. टिकुली कला से अशोक कुमार विश्वास भी रहे. इनका चयन हाल ही में पद्मश्री के लिए हुआ है. कार्यक्रम की शुरुआत बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कलाकारों के जीवन परिचय से की. उन्होंने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है कि मिथिला पेंटिंग में दलित और पुरुष को यह सम्मान मिला है.
कलाकारों को सहयोग राशि दी गईः अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि अभी तक यह सम्मान सिर्फ महिलाओं को मिलता था, लेकिन पहली बार शिवन पासवान को यह सम्मान मिला. उन्होंने शांति देवी और शिवन पासवान के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें उस समय में समाज के दुव्याव्हार का सामना करना पड़ता था. उन्होंने उनके जीवन के कुछ संस्मरण के बारे में भी बताया. इस मौके पर कलाकारों को एक-एक लाख रुपए की सहयोग राशि दी गई.
'विलुप्त हो रही थी टिकुली कला': अशोक कुमार विश्वास के बारे में बताते हुए कहा कि एक समय पर टिकुली कला विलुप्त हो रही थी. अशोक कुमार विश्वास ने इसे अस्त्तिव में लाने का काम किया. उनसे करीब 20 हजार लोगों ने इस कला को सीखा है. दुनियाभर में पहचान बनाए. कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कला संस्कृति व युवा विभाग की अपर सचिव हरजोत कौर बम्हरा ने कहा कि अक्सर आपकी एक गलती कलाकारों की पीछे कर देती है. एक कृत उनका जीवन बना देती है.
"प्रतिभा की कोई जाति नहीं होती है. अगर आप मदद नहीं कर सकते है तो उन्हें ठोकर भी मत मारिए. कठिनाई कितनी भी बड़ी हो आपके हौसले के सामने छोटी है. हर इंसान को एक मेंटर की जरूरत ही." -हरजोत कौर बम्हरा, अपर सचिव, कला संस्कृति व युवा विभाग
'18 साल पहले की तस्वीर बदली': बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि आज 18 साल पहले की तस्वीर बदली है. उस समय चुनिंदा कलाकार मिथिला पेंटिंग करते थे लेकिन आज इसकी स्थिति मजबूत हुई है. इसकी संख्या और विविधिता में भी बढ़ोत्तरी हुई है. हमारी ताकत हमारी लोक कलाएं है.
"कोशिश है कि म्यूजियम को एक रेफरेंस सेंटर के रूप में तैयार किया जाए. ताकि लोगों को लोक कलाओं के बारे में अधिक जानकारी हो. इसलिए मिथिला पेंटिंग पर एक मोटिफ तैयार किया जा रहा है. इससे युवाओं को पता चलेगा कि मिथिला पेंटिंग में किन पक्षियों का इस्तेमाल होता है. राम-सीता के कितने रूप है और अन्य चीजें पुरानी तरीके से जिंदा करने की एक कोशिश है." -अंजनी कुमार सिंह, महानिदेशक, बिहार म्यूजियम
'टिकुली कला को मिले जीआई टैग': अशोक कुमार विश्वास ने कहा कि यह एक सपने जैसा है. लोक कलाओं को सम्मान मिला है. किसी भी कला में लगने से काम करेंगे तो सम्मान मिलेगा. लोगों को प्रेरित करिए. उन्हें समाज में उत्थान देने के लिए योग्य बनाए. अब कोशिश है कि टिकुली कला को जीआई टैग मिले. जिसके लिए मदद की जरूरत है.
48 सालों से पेंटिंगः शिवन पासवान ने कहा कि एक वक्त था पिता जी इस कला से इतने ना खुश थे कि दूसरों के घरों में पेंटिंग तैयार होती थी. 48 साल से पेंटिंग के साथ संघर्ष करते आया हूं. जब समाज से विरोध मिला तो राजा शैलेश को तस्वीरों में उतारना शुरू किया. उन्होंने 10 हजार लोगों को मिथिला पेंटिंग में गोदना कला सीखाई है. उन्होंने कहा कि परिश्रम करते हैं तो इसका फल भी मिलता है.