पटनाः 1989 में केंद्र में सत्ता गंवाने के ठीक एक साल बाद हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार मिली और उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा और तब से लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस बिहार में अपनी खोई जमीन पाने में पूरी तरह नाकाम रही है. आखिर जमीन मिलेगी भी कैसे, बिहार में पार्टी अब आरजेडी पर आत्मनिर्भर हो चुकी है. यहां न पार्टी का कोई संगठन है और न ही आकार, ऐसे में जनाधार कैसे बढ़ेगा ?
अखिलेश प्रसाद सिंह के बड़े दावे फेलः बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पार्टी आलाकमान ने 2022 में मदन मोहन झा की जगह अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया.अखिलेश सिंह ने 11 दिसंबर 2022 को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया और बिहार में कांग्रेस की खोई जमीन वापस लाने की बात कही. ये भी दावा किया कि एक महीने के भीतर प्रदेश की सभी कमेटियों का गठन कर दिया जाएगा. लेकिन 2 साल पूरे होनेवाले हैं अभी तक बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन नहीं हो सका है. अगर इसको लेकर सवाल किया जाता है तो नाराज भी हो जाते हैं. हां चुनाव जीतकर बिहार से NDA सरकार उखाड़ने का दावा जरूर करते हैं.
"कांग्रेस पॉलिटिकल पार्टी है. आजादी की पार्टी है. मुस्तैदी से कोई भी चुनाव लड़ती है. ये चुनाव भी हमलोग मजबूती से लड़ेंगे और NDA की सरकार को यहां से हटाएंगे. प्रदेश कमेटी का चुनाव आपको बताकर हम नहीं करेंगे, ये प्रक्रिया में है."- अखिलेश प्रसाद सिंह, बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
अशोक चौधरी के समय हुआ था कमेटी का गठनः 2013 में अशोक चौधरी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. तब उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन किया था.अशोक चौधरी के कार्यकाल में 255 सदस्यों की प्रदेश कार्यकारिणी बनाई गई थी.जिसमें 15 उपाध्यक्ष, 25 महासचिव, 76 सचिव, 45 संगठन सचिव,77 कार्यकारिणी के सदस्य और विशेष आमंत्रित सदस्य के अलावा एक कोषाध्यक्ष बनाया गया था.
सालों से कमेटी के गठन का इंतजारः 25 सितंबर 2017 को अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से हटाए गये. इसके बाद कौकब कादरी को बिहार प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद मदन मोहन झा कांग्रेस के पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. उनके 4 वर्षों के कार्यकाल में कांग्रेस की प्रदेश कमेटी का गठन नहीं हो सका. उन्हीं के कार्यकाल के दौरान 2019 में लोकसभा का चुनाव और 2022 में बिहार विधानसभा का चुनाव भी लड़ा गया. 11 दिसंबर 2022 को बिहार कांग्रेस की कमान अखिलेश प्रसाद सिंह को सौंप दी गयी.
पार्टी प्रभारी भी नहीं करवा सके कमेटी का गठनः पिछले 10 वर्षों में बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए 3 प्रभारी बने. अशोक चौधरी के कार्यकाल के दौरान शक्ति सिंह गोहिल को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था.उन्हीं के कार्यकाल में 2014 का लोकसभा चुनाव और 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ. इसके बाद भक्त चरणदास को बिहार का प्रभारी बनाया गया.2024 में मोहन प्रकाश को बिहार का प्रभारी बनाया गया. भक्त चरणदास और मोहन प्रकाश के कार्यकाल में भी बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन नहीं हो पाया.
नाराजगी का डरःअखिलेश सिंह कोई पहले अध्यक्ष नहीं हैं, जिन्होंने प्रदेश समिति नहीं बनाई है, इससे पहले मदन मोहन झा के कार्यकाल में भी बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन नहीं हो पाया था. कांग्रेस के प्रदेश कमेटी नहीं बनाए जाने के पीछे मुख्य वजह है नाराजगी का डर. प्रदेश अध्यक्ष के सामने समस्या ये है कि किसको अपनी कमेटी में जगह दें और किसको नहीं ? जिनको कमेटी में जगह नहीं मिलेगी वो नाराज हो जाएंगे.
क्या कहते हैं जानकार ?: बिहार में कांग्रेस पिछले तीन दशकों से ज्यादा से सत्ता से दूर रही है. 1990 के बाद से बिहार में हाशिये पर पड़ी है और फिलहाल आरजेडी पर पूरी तरह से निर्भर हो चुकी है. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रो नवल किशोर चौधरी का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व चुनाव के आधार पर अध्यक्ष का चयन एवं कार्यकारिणी के गठन पर गंभीर नहीं है. कांग्रेस का कलचर है कि ऊपर से नेताओं को नियुक्त किया जाता है. कांग्रेस में जो भी निर्णय होता है वह आलाकमान करता है. चुनाव के आधार पर नेताओं के चयन को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं है.यही कारण है कि प्रदेश में पार्टी का संगठन कमजोर है.
"बिहार में कांग्रेस पूरी तरीके से आरजेडी पर निर्भर है. इससे चुनाव में कुछ लाभ तो जरूर मिल जाता है, क्योंकि गठबंधन में रहने के कारण आरजेडी की मदद से कांग्रेस कुछ सीट जीतने में सफल हो जा रही है. लेकिन अपना संगठन मजबूत नहीं कर पाने के कारण कांग्रेस अपने बल पर चुनाव जीतने में सक्षम नहीं है."- प्रो नवल किशोर चौधरी, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
जातीय समीकरण से जनाधार बढ़ाने की कोशिशः संगठन को मजबूत बनाने की बजाय कांग्रेस जातीय समीकरण के जरिए जनाधार वापस की मुहिम में जुटी है. इसलिए प्रदेश अध्यक्ष की कमान सवर्ण को दी तो बिहार विधानसभा में विधायक दल क नेता शकील अहमद खान मुस्लिम को बनाया गया. वहीं महिला कांग्रेस की कमान पहली बार मुस्लिम के हाथों में दी गई और शरबत जहां फातिमा को प्रदेश महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया.जबकि यूथ कांग्रेस की कमान पिछड़े वर्ग से आने वाले गरीब दास को दी गयी. लेकिन सवाल ये है कि इस कवायद से बिहार में कांग्रेस के पुराने दिन लौट पाएंगे ?
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