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वाराणसी में मरीजों को बड़ी राहत; BHU जूनियर डाॅक्टरों का धरना समाप्त, काम पर लौटे

17 से 19 सितंबर तक हड़ताल पर नर्सिंग अफसर, BHU जूनियर डाॅक्टरों का धरना समाप्त

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

BHU जूनियर डाॅक्टरों का धरना समाप्त (फाइल फोटो)
BHU जूनियर डाॅक्टरों का धरना समाप्त (फाइल फोटो) (Photo credit: ETV Bharat)

वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में व्यवस्था एक बार फिर पटरी पर लौट आई है. लगभग चार दिनों से हड़ताल पर गए जूनियर रेजिडेंट काम पर लौट आए हैं. इनके काम पर आने से मरीजों की संख्या भी बढ़ी है और इलाज भी मिलना शुरू हो गया है. बीते चार दिनों से मरीज और परिजन काफी मुश्किलों का सामना कर रहे थे. सैकड़ों की संख्या में मरीज वापस लौटकर जा रहे थे. आज से हालात सुधरे नजर आ रहे हैं.

कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी के बाद सर सुंदरलाल अस्पताल के जूनियर रेजिडेंट भी हड़ताल पर उतर आए थे. कुल 17 दिन हड़ताल रही. नर्सिंग ऑफिसर 17 से 19 सितंबर तक हड़ताल पर थे. वहीं, पिछले चार दिनों से डॉक्टर कल तक यानी 18 अक्टूबर तक हड़ताल पर रहे. इन 17 दिनों की हड़ताल का असर ये रहा कि सबसे अधिक मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ी. व्यवस्था बिगड़ते देख आईएमएस के निदेशक ने जूनियर रेजिडेंटों से बातचीत की.

बैठक के बाद काम पर लौटे रेजिडेंट : IMS-BHU के निदेशक प्रो. एसएन शंखवार ने डॉक्टरों के साथ बैठक की. इस दौरान उन्होंने रेजिडेंट्स की मांगों पर भी चर्चा की. निदेशक ने कहा कि एमएस ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल (एसओपी) बना दी है. रेजिडेंट के साथ कोई घटना होती है तो जांच के बाद 6 घंटे में मुकदमा दर्ज होगा. एसओपी बनाए जाने, मुकदमा, सुरक्षा गार्ड की संख्या बढ़ाने, बायोमेट्रिक लॉक लगाने के आश्वासन पर रेजिडेंट्स मान गए हैं. बैठक में सहमति बनने पर हड़ताल वापसी का फैसला हुआ और जूनियर रेजिडेंट काम पर लौट आए हैं.

मरीजों को देखने की संख्या 4000 तक पहुंची : बता दें कि, हड़ताल के दौरान सीनियर डॉक्टर दिन में सिर्फ 100 मरीजों को देख रहे थे, वहीं कुछ ओपीडी में अधिकतम 200 मरीज ही देखे जा रहे थे. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, सामान्य दिनों में 7000 तक मरीज एक दिन में देख लिए जाते हैं, जबकि बीते दिनों 3000-4000 मरीज ही देखे जा रहे थे. रेजिडेंट्स के काम पर लौटने के बाद मरीज ओपीडी में जा रहे हैं. कल तक काउंटर पर, लैब आदि में मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई थी.

यह भी पढ़ें : बीएचयू के ट्रामा सेंटर और सर सुंदरलाल अस्पताल में लग रहीं नई मशीनें, दिल और फेफड़े के मरीजों को मिलेगी सहूलियत

यह भी पढ़ें : चोरों का अड्डा बना बीएचयू का अस्पताल, एक आरोपी गिरफ्तार, जेब में मिले सर्जिकल उपकरण, वीडियो वायरल

वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में व्यवस्था एक बार फिर पटरी पर लौट आई है. लगभग चार दिनों से हड़ताल पर गए जूनियर रेजिडेंट काम पर लौट आए हैं. इनके काम पर आने से मरीजों की संख्या भी बढ़ी है और इलाज भी मिलना शुरू हो गया है. बीते चार दिनों से मरीज और परिजन काफी मुश्किलों का सामना कर रहे थे. सैकड़ों की संख्या में मरीज वापस लौटकर जा रहे थे. आज से हालात सुधरे नजर आ रहे हैं.

कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी के बाद सर सुंदरलाल अस्पताल के जूनियर रेजिडेंट भी हड़ताल पर उतर आए थे. कुल 17 दिन हड़ताल रही. नर्सिंग ऑफिसर 17 से 19 सितंबर तक हड़ताल पर थे. वहीं, पिछले चार दिनों से डॉक्टर कल तक यानी 18 अक्टूबर तक हड़ताल पर रहे. इन 17 दिनों की हड़ताल का असर ये रहा कि सबसे अधिक मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ी. व्यवस्था बिगड़ते देख आईएमएस के निदेशक ने जूनियर रेजिडेंटों से बातचीत की.

बैठक के बाद काम पर लौटे रेजिडेंट : IMS-BHU के निदेशक प्रो. एसएन शंखवार ने डॉक्टरों के साथ बैठक की. इस दौरान उन्होंने रेजिडेंट्स की मांगों पर भी चर्चा की. निदेशक ने कहा कि एमएस ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल (एसओपी) बना दी है. रेजिडेंट के साथ कोई घटना होती है तो जांच के बाद 6 घंटे में मुकदमा दर्ज होगा. एसओपी बनाए जाने, मुकदमा, सुरक्षा गार्ड की संख्या बढ़ाने, बायोमेट्रिक लॉक लगाने के आश्वासन पर रेजिडेंट्स मान गए हैं. बैठक में सहमति बनने पर हड़ताल वापसी का फैसला हुआ और जूनियर रेजिडेंट काम पर लौट आए हैं.

मरीजों को देखने की संख्या 4000 तक पहुंची : बता दें कि, हड़ताल के दौरान सीनियर डॉक्टर दिन में सिर्फ 100 मरीजों को देख रहे थे, वहीं कुछ ओपीडी में अधिकतम 200 मरीज ही देखे जा रहे थे. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, सामान्य दिनों में 7000 तक मरीज एक दिन में देख लिए जाते हैं, जबकि बीते दिनों 3000-4000 मरीज ही देखे जा रहे थे. रेजिडेंट्स के काम पर लौटने के बाद मरीज ओपीडी में जा रहे हैं. कल तक काउंटर पर, लैब आदि में मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई थी.

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