भोपाल: भोपाल में बेगमों की हुकूमत का वो दौर जब महिलाएं अगर किसी रास्ते से गुजरती थीं तो पुरुष उनके एहतराम में पीठ फेर के खड़े हो जाते थे. रिक्शों में पर्दे लगे होते थे कि ख्वातीन यानि महिलाएं इत्मीनान से रिक्शे में बैठकर जाएं. रिक्शेवाला जिस रास्ते से गुजरता था ये आवाज देता चलता था कि रास्ता दे दें जनाना सवारी आ रही है. सोचिए तो जरा उस दौर में महिलाओं को घर की चारदीवारी से निकालकर बाहर ला पाना कितना मुश्किल रहा होगा.
भोपाल की शाहजहां बेगम ने उस दौर में महिलाओं के हुनर को जाना समझा और उन्हें आर्थिक मजबूती देने ये मौका दिया कि वे अपनी चित्रकारी, कशीदाकारी और जायकेदार खानों के हुनर के बूते आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बन सकें. शाहजहां बेगम की बदौलत भोपाल में सजा परी बाजार एक ऐसा बाजार है, जिसमें मर्दों की एंट्री बैन थी. पर क्यों बैन थी.
फिर शाहजहां बेगम के शहजहांनाबाद में सजा परी बाजार
भोपाल में बेगमों की हुकूमत जरुर थी लेकिन महिलाएं मुख्य धारा में नहीं आई थीं. भोपाल की शासक रही शाहजहां बेगम ने उस दौर में सोचा कि क्या महिलाएं अपने हुनर से जो चीजें तैयार करती हैं, उसका कारोबार बाजार तैयार नहीं हो सकता. अपने ही नाम पर रखे गए इलाके शाहजहांबाद में पहली बार परी बाजार सजा. भोपाल के इतिहास को गहराई से जानने वाले सैयद खालिद गनी बताते हैं, ''उस समय शाहजहां बेगम के नाम पर जो उपनगर बना शाहजहांनाबाद, वहां उन्होंने परी बाजार की शुरुआत की.''
सैयद खालिद गनी बताते हैं, ''मकसद ये था कि, महिलाओं को कैसे आर्थिक रुप से मजबूती दी जा सके. उस समय अगर कोई महिला बटुआ बनाती थी, कोई कशीदाकारी करती थी, कोई अचार मुरब्बे बनाया करती थी, ये सामान वो इस परी बाजार में बेच सकती थी. मकसद ये था कि घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं भी आर्थिक रुप से मजबूत हो सकें. वाकई उस दौर में शाहजहां बेगम के इस प्रयोग ने महिलाओं को काफी हौसला दिया.''
परी बाजार में मर्दों की एंट्री पर था बैन
परी बाजार की खासियत ये थी कि यहां सामान बेचने की इजाजत भी महिलाओं को ही थी और खरीददार भी महिलाएं ही होती थीं. सैयद गनी बताते हैं, ''बाकायदा शर्तें थीं परी बाजार में आने की. दस साल के ऊपर के किसी बच्चे को भी इस बाजार में आने की मंजूरी नहीं थी. मर्दों पर तो पूरी तरह से बैन था और मुमकिन भी नहीं था उस दौर. मुस्लिम महिलाएं पर्दा करती थीं बुर्का पहनकर, तो हिंदू महिलाएं घूंघट लेती थीं. यहां महिलाओं का बहुत एहतराम भी था.''
''आप समझिए कि घर के भीतर किसी के भी घर अमूमन पुरुष नहीं जाते थे. ड्योढी (चौखट) पर बैठा करते थे. उस दौर में कबेलू की छतें होती थीं तो उन्हें जो सुधारने आते थे उन्हे छबैया कहते थे. तो छबैये भी चार दफा ये आवाज लगाते थे कि छबैये आ रहे हैं पर्दा कर लें. उसके बाद घर की छत पर चढ़ते थे. तब बताइए कि परी बाजार में मर्दों को जाने की इजाजत कैसे मिल जाती.''
सैफ अली खान की दादी तक चला परी बाजार का दौर
शाहजहां बेगम का दौर बीत गया लेकिन उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने ये रिवायत जारी रखी. सैयद खालिद गनी बताते हैं, ''सुल्तान जहां बेगम शाहजहां बेगम के मुकाबले लड़कियों की शिक्षा, महिलाओं के रोजगार के मुद्दे पर चार कदम आगे थीं. उन्होंने परी बाजार बंद नहीं होने दिया. बल्कि सुल्तान जहां बेगम के दौर में लड़कियों की शिक्षा पर इतना जोर था कि स्कूल-कॉलेज भोपाल में उन्हीं के दौर के हैं. सुल्तानिया जनाना अस्पताल से लेकर सुल्तानिया स्कूल तक सब उसी दौर के हैं. सुल्तान जहां बेगम के बाद नवाब हमीदुल्ला खां के जमाने में भी परी बाजार कायम रहा. नवाब हमीदुल्ला की बेटी साजिदा सुल्तान जो सैफ अली खान की दादी हैं, उन्होंने इस रिवायत को कायम रखा.''
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भोपाल में फिर लौटी परी बाजार की रौनक
भोपाल में 'बेगम्स ऑफ भोपाल' नाम की संस्था के साथ इस परी बाजार की परंपरा को फिर गुलजार करने की कोशिश की गई है. 'बेगम्स ऑफ भोपाल' की प्रमुख रक्शां शमीम जाहिद ने भोपाल की 150 साल पुरानी परंपरा को पुर्नजीवित किया. इस क्लब के सौ से ज्यादा एक्टिव मेम्बर्स हैं. क्लब भोपाल में परी बाजार सजता है जिसमें महिलाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार के लिए बाजार देने के साथ भोपाल के इतिहास पर बातचीत के लिए मंच तैयार होता है. साथ ही अदब की महफिल सजती है.