वाराणसी : महादेव की नगरी काशी के कंकर-कंकर में शंकर हैं. इस नगरी में भगवान भोलेनाथ की अनुमति के बिना कुछ भी संभव नहीं है. काशी में राजा के रूप में जहां भोलेनाथ यानी बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं. वहीं, पूरे काशी की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने के लिए महामंत्री और कोतवाल के रूप में काल भैरव भी विराजमान हैं. आज (शनिवार) को काल भैरव अष्टमी यानी भैरव जयंती मनाई जा रही है. यह दिन कई मायने में खास है. आइए जानते हैं काल भैरव की महिमा और इनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में.
'बाबा काल भैरव को काशी का चार्ज' : मंदिर व्यवस्थापक और महंत पंडित नवीन गिरी बताते हैं कि काशी में बाबा विश्वनाथ से पहले काशी कोतवाल के रूप में विराजमान काल भैरव के दर्शन की अपनी अलग मान्यता है. इसके पीछे 2 कथाएं प्रचलित हैं. पहली कथा के मुताबिक, भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा ने काशी की स्थापना के दौरान बाबा काल भैरव को काशी की रक्षा का चार्ज दिया था और उन तीनों के आशीर्वाद से ही उन्हें यहां स्थान मिला. उन्होंने काशी की रक्षा करते हुए कोतवाल के रूप में यहां पर अपनी सेवा देनी शुरू की. यही वजह है कि वाराणसी में जब भी कोई अधिकारी नेता या कोई अन्य आता है तो उसे सबसे पहले अनुमति लेने के लिए काशी कोतवाल के दरबार में आना होता है.
बिना काल भैरव के दर्शन के यात्रा अधूरी : मंदिर व्यवस्थापक और महंत पंडित नवीन गिरी बताते हैं कि काल भैरव के दर्शन करके ही कोई भी अपने कार्य को पूरा करता है. जिलाधिकारी हों या पुलिस कमिश्नर कोई भी अधिकारी बिना काल भैरव के दर्शन किए अपनी कुर्सी पर नहीं बैठता. पहले दर्शन उसके बाद ज्वाइनिंग की प्रक्रिया पूरी की जाती है. इतना ही नहीं काशी की पवित्र पंचकोशीय यात्रा हो या काशी आने वाले लोगों के लिए काशी यात्रा, दोनों यात्राएं बिना काल भैरव के दर्शन की अधूरी है, यदि काशी आकर आपने काल भैरव का दर्शन नहीं किया और आप वापस चले गए तो आपका पुण्य नहीं होगा और आपको फिर से काशी आकर कोतवाल के दर्शन करने ही होंगे.
भगवान भैरव ने की थी कुंड की स्थापना : मंदिर व्यवस्थापक और महंत पंडित नवीन गिरी बताते हैं कि एक अन्य कथा के मुताबिक, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु अपने आप को श्रेष्ठ बताने के लिए चर्चा कर रहे थे. इस दौरान भगवान शिव वहां पहुंचे और ब्रह्मा के पांचवें सिर के द्वारा कही जा रही बातों को उन्होंने सुन लिया. भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर भगवान भोलेनाथ की बुराई कर रहा था. यह सुनकर भोलेनाथ क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से भैरव की उत्पत्ति हुई. उत्पत्ति के बाद भैरव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर अपने नाखून से काट दिया.
जिसकी वजह से उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. वह हाथों में ब्रह्मा का पांचवां सिर लेकर घूमते रहे. पृथ्वी के हर कोने पर गए ताकि उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाए, जिसके बाद में भगवान विष्णु के कहने पर वह काशी आए और काशी के स्थान पर भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर छूट गया. जिसके बाद उसी स्थान पर वह कपाल भैरव के नाम से स्थापित हुए, वहीं भगवान भैरव ने एक कुंड की स्थापना करके वहां स्नान किया और भगवान भोलेनाथ के कहने पर काशी के उस स्थान पर पहुंचे जहां वर्तमान में काल भैरव का मंदिर है. यहां पर उन्हें जब कहीं जगह नहीं मिली तो एक छोटे से टीले पर अपने नाखून को रखकर उन्होंने इस पर अपने आप को स्थापित किया.
काशी की रक्षा करते हैं काल भैरव : मंदिर व्यवस्थापक और महंत पंडित नवीन गिरी बताते हैं कि सबसे बड़ी बात यह है कि भगवान काल भैरव की जो वास्तविक प्रतिमा है. वह सामने नहीं देख रही, बल्कि उनका मुख श्मशान की तरफ है, यानी यहां पर काल भैरव श्मशान की तरफ देखते हुए पूरे काशी की रक्षा करते हैं. और यही वजह है कि पहले काशी में काल भैरव की अनुमति ली जाती है, उसके बाद यहां पर काशी यात्रा और अन्य कार्य किए जाते हैं. यहां तक कि यदि किसी व्यक्ति को काशी में अपना आशियाना खरीदना है तो सबसे पहले उसे काल भैरव के दर्शन करके अनुमति लेना अनिवार्य होता है.
दर्शन से सही हो जाती है ग्रहों की दशा : मंदिर व्यवस्थापक और महंत पंडित नवीन गिरी बताते हैं कि काशी कोतवाल के दर्शन मात्र से ही सारे बिगड़े हुए ग्रह ठीक होने लगते हैं. यदि शनिवार और मंगलवार को भगवान भोलेनाथ के इस स्वरूप के दर्शन किए जाएं तो कड़े से कड़े ग्रह की शांति होती है. इसके साथ ही काल भैरव अष्टमी के दिन यदि भगवान भोलेनाथ के इस रौद्र स्वरूप के चरणों में मस्तक झुकाया जाए और अपने ऊपर से सरसों का तेल उतार कर भगवान को अर्पित किया जाए तो सारे विघ्न बाधा और बुरी नजर खत्म हो जाती है. यहां तक की जादू का भी कोई असर नहीं होता है. इसलिए भगवान के इस स्वरूप को नजर और जादू टोने से बचाने वाले देवता के रूप में भी पूजा जाता है.
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