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आयुष्मान भारत योजना से हटी मैटरनिटी फैसिलिटी, सरकारी अस्पतालों में बढ़े प्रसव के केस - डिलीवरी

Beds Doubled In Maternity Ward आयुष्मान भारत योजना से डिलीवरी केस के मामले बाहर किए गए हैं.जिसके बाद अब सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी के केस बढ़े हैं. कोरबा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मेटरनिटी वॉर्ड में बेड्स की संख्या दोगुनी की गई है.Ayushman Bharat Scheme

Beds Doubled In Maternity Ward
सरकारी अस्पतालों में बढ़े प्रसव के केस
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 23, 2024, 4:03 PM IST

Updated : Feb 23, 2024, 4:21 PM IST

सरकारी अस्पतालों में बढ़े प्रसव के केस

कोरबा : आयुष्मान भारत योजना से गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी और इलाज को बाहर किया गया है. लिहाजा अब सरकारी अस्पताल में डिलीवरी के केस बढ़ने लगे हैं. सरकारी अस्पतालों में प्रसूति वार्ड के अंदर बेड्स की संख्या दोगुनी करनी पड़ी है.मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा में बेड्स की संख्या बढ़ाई गई है.पहले अस्पताल के प्रसूति वार्ड में 45 बेड से काम चलता था. लेकिन अब बेड्स की संख्या 110 की गई है. प्रसूति कक्ष में लगे स्टोर को खाली करने के बाद यहां अतिरिक्त बेड लगाए गए हैं. जिसके बाद अस्पताल में आने वाले डिलीवरी केसेस का निपटारा किया जाता है.

Beds Doubled In Maternity Ward
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बेड्स की संख्या हुई दोगुनी




निजी अस्पताल में 1 लाख तक खर्च : प्रसव के लिए निजी अस्पताल जाने पर यदि सामान्य डिलीवरी हो गई तब भी मरीज से 30 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक वसूले जाते हैं. यदि सिजेरियन ऑपरेशन हुआ तो खर्च एक लाख को भी पार कर जाता है. पहले आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी अस्पताल में इलाज का पूरा खर्च बच जाता था . हालांकि निजी अस्पताल प्राइवेट कमरा देने का शुल्क अलग से वसूलते थे. इसके बावजूद भी लोग प्रसव के लिए निजी अस्पताल जाकर सुविधाओं का लाभ पैसे देकर लेते थे. निजी अस्पताल में प्राइवेट रूम जैसी सुविधाएं भी मिल जाती थी. लेकिन अब आयुष्मान भारत योजना से डिलीवरी केस बाहर करने पर निजी अस्पताल का पूरा खर्च वहन करना पड़ता है.



सरकारी अस्पताल में बढ़े डिलीवरी के केस : आयुष्मान भारत से प्रसव के मामलों को बाहर करने के बाद अब अकेले मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 15 से 20 डिलीवरी के मामले सामने आ रहे हैं. अस्पताल का प्रसूति विभाग पहले की तुलना में ज्यादा व्यस्त है. डॉक्टरों का काम भी बढ़ गया है. मरीजों की संख्या एक समय अनियंत्रित हो गई थी. बेड की संख्या बढ़ाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने कुछ राहत ली है. सरकारी अस्पताल में आने का एक लाभ यह भी रहता है कि यहां सिजेरियन ऑपरेशन को प्राथमिकता नहीं दी जाती. इंतजार करने के बाद जब नॉर्मल डिलीवरी की संभावना ना हो. तभी सिजेरियन डिलीवरी की जाती है.

" हमारे पास पहले प्रसूतियों के लिए 45 बेड थे. लेकिन अब 110 बेड हमने तैयार कर लिए हैं. हमारा प्रयास पहले नॉर्मल डिलीवरी करने का रहता है, जब यह संभव नहीं होता तभी हम ऑपरेशन करते हैं. फिलहाल रोज 15 से 20 डिलीवरी के केस हमारे पास आ रहे हैं." डॉ रविकांत जाटवर, अधीक्षक, मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा

केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना : सामान्य तौर पर ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां प्रसव के मामलों को स्कीम से बाहर रखती है. लेकिन सरकार ने आयुष्मान भारत के तहत इसे कवर किया था. कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए मैटरनीटी के मामलों को आयुष्मान भारत से अलग कर दिया. जिसके बाद जरुरतमंद अब प्रसव के लिए ज्यादातर सरकारी अस्पतालों को प्राथमिकता दे रहे हैं. सरकार के इस कदम की लोग आलोचना भी कर रहे हैं.

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सरकारी अस्पतालों में बढ़े प्रसव के केस

कोरबा : आयुष्मान भारत योजना से गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी और इलाज को बाहर किया गया है. लिहाजा अब सरकारी अस्पताल में डिलीवरी के केस बढ़ने लगे हैं. सरकारी अस्पतालों में प्रसूति वार्ड के अंदर बेड्स की संख्या दोगुनी करनी पड़ी है.मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा में बेड्स की संख्या बढ़ाई गई है.पहले अस्पताल के प्रसूति वार्ड में 45 बेड से काम चलता था. लेकिन अब बेड्स की संख्या 110 की गई है. प्रसूति कक्ष में लगे स्टोर को खाली करने के बाद यहां अतिरिक्त बेड लगाए गए हैं. जिसके बाद अस्पताल में आने वाले डिलीवरी केसेस का निपटारा किया जाता है.

Beds Doubled In Maternity Ward
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बेड्स की संख्या हुई दोगुनी




निजी अस्पताल में 1 लाख तक खर्च : प्रसव के लिए निजी अस्पताल जाने पर यदि सामान्य डिलीवरी हो गई तब भी मरीज से 30 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक वसूले जाते हैं. यदि सिजेरियन ऑपरेशन हुआ तो खर्च एक लाख को भी पार कर जाता है. पहले आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी अस्पताल में इलाज का पूरा खर्च बच जाता था . हालांकि निजी अस्पताल प्राइवेट कमरा देने का शुल्क अलग से वसूलते थे. इसके बावजूद भी लोग प्रसव के लिए निजी अस्पताल जाकर सुविधाओं का लाभ पैसे देकर लेते थे. निजी अस्पताल में प्राइवेट रूम जैसी सुविधाएं भी मिल जाती थी. लेकिन अब आयुष्मान भारत योजना से डिलीवरी केस बाहर करने पर निजी अस्पताल का पूरा खर्च वहन करना पड़ता है.



सरकारी अस्पताल में बढ़े डिलीवरी के केस : आयुष्मान भारत से प्रसव के मामलों को बाहर करने के बाद अब अकेले मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 15 से 20 डिलीवरी के मामले सामने आ रहे हैं. अस्पताल का प्रसूति विभाग पहले की तुलना में ज्यादा व्यस्त है. डॉक्टरों का काम भी बढ़ गया है. मरीजों की संख्या एक समय अनियंत्रित हो गई थी. बेड की संख्या बढ़ाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने कुछ राहत ली है. सरकारी अस्पताल में आने का एक लाभ यह भी रहता है कि यहां सिजेरियन ऑपरेशन को प्राथमिकता नहीं दी जाती. इंतजार करने के बाद जब नॉर्मल डिलीवरी की संभावना ना हो. तभी सिजेरियन डिलीवरी की जाती है.

" हमारे पास पहले प्रसूतियों के लिए 45 बेड थे. लेकिन अब 110 बेड हमने तैयार कर लिए हैं. हमारा प्रयास पहले नॉर्मल डिलीवरी करने का रहता है, जब यह संभव नहीं होता तभी हम ऑपरेशन करते हैं. फिलहाल रोज 15 से 20 डिलीवरी के केस हमारे पास आ रहे हैं." डॉ रविकांत जाटवर, अधीक्षक, मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा

केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना : सामान्य तौर पर ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां प्रसव के मामलों को स्कीम से बाहर रखती है. लेकिन सरकार ने आयुष्मान भारत के तहत इसे कवर किया था. कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए मैटरनीटी के मामलों को आयुष्मान भारत से अलग कर दिया. जिसके बाद जरुरतमंद अब प्रसव के लिए ज्यादातर सरकारी अस्पतालों को प्राथमिकता दे रहे हैं. सरकार के इस कदम की लोग आलोचना भी कर रहे हैं.

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Last Updated : Feb 23, 2024, 4:21 PM IST
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