अलवर: सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघ, पैंथर, सांभर, चीतल एवं अन्य वन्यजीव देश-दुनिया के पर्यटकों को खूब लुभा रहे, लेकिन भालू अभी भी पर्यटकों को साइटिंग का इंतजार बढ़ा रहे हैं. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरिस्का प्रशासन ने जालौर जिले से चार भालुओं का पुनर्वास सरिस्का में कराया था, लेकिन अब तक एक भी पर्यटक को सरिस्का में भालुओं का दीदार नहीं हो सका है.
सरिस्का में बाघों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. अभी यहां 42 बाघ हैं, जबकि सरिस्का के एक बाघ को पिछले दिनों ही हरियाणा के झाबुआ के जंगलों से ट्रेंकुलाइज कर रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया है. इसके अलावा बड़ी संख्या में पैंथर, हाइना, सांभर, चीतल समेत अन्य वन्यजीव हैं. सरिस्का भ्रमण के लिए आने वाले पर्यटकों को ये वन्यजीव आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन यहां आने वाले पर्यटकों को अभी तक भालुओं की साइटिंग नहीं हो पाई है, जबकि पर्यटक भालुओं को देखने को उत्सुक रहते हैं.
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सरिस्का का जंगल नहीं आ रहा भालुओं को रास: वन्यजीव प्रेमी व नेचर गाइड लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि सरिस्का में पर्यटन को बढ़ावा देने और भालुओं की कमी को पूरा करने के लिए सरिस्का प्रशासन द्वारा जालौर के सुंधा माता व माउंट आबू के जंगल से चार भालुओं (दो नर व दो मादा) को लाया. लेकिन भालुओं को सरिस्का का जंगल रास नहीं आया. यही कारण है कि भालू सरिस्का के जंगल में रुकने के बजाय दूसरे वन क्षेत्रों में कूच कर गए.
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अभी सरिस्का में एक भालू हैं और शेष भालू करौली, दौसा व जयपुर के वन क्षेत्रों में घूम रहे हैं. इस कारण सरिस्का में भ्रमण को आने वाले पर्यटकों को भालुओं की साइटिंग नहीं हो पाती. उन्होंने बताया कि ऐसा माना जाता है कि यह भालू मानवीय भोजन के प्रेमी है, जिन्हें पहले भी कई बार माउंट आबू व सरिस्का के बाहर झूठा बचा हुआ भोजन खाते हुए देखा गया. साथ ही माउंट आबू में संभवत: यह भालू पहाड़ी क्षेत्र में विचरण करते थे. जिसके चलते सरिस्का आने के बाद भी भालू जंगलों से निकलकर पहाड़ी क्षेत्र की ओर घूमने लगे हैं. उन्होंने कहा कि सरिस्का प्रशासन जल्द ही भालूओं के लिए प्लान बनाए, तो आने वाले समय में पर्यटकों को भालुओं की साइटिंग भी हो सकेगी.