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बीबीएयू के दो प्रोफेसर तंबाकू से मुंह में होने वाले कैंसर के कारणो का लगाएंगे पता

BBAU cancer Research: बीबीएयू के शोधकर्ताओं को भारत सरकार से ओरल माइक्रोबियल हेल्थ पर अध्ययन करने के लिए शोध अनुदान मिला है.

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बीबीएयू प्रोफेसर डॉ. दिग्विजय वर्मा और डॉ. यूसुफ अख्तर (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

लखनऊ: डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के सूक्ष्मजीव विशेषज्ञ डॉ. दिग्विजय वर्मा और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजिस्ट डॉ. यूसुफ अख्तर को केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से प्रतिष्ठित कोर रिसर्च ग्रांट प्रदान किया गया है. यह अध्ययन एसटी-प्रेरित बायोफिल्म निर्माण और इन बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के पीछे के आणविक तंत्र को समझने में एक नया अध्याय खोलने के लिए तैयार है. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एनएमपी वर्मा ने डॉ. दिग्विजय वर्मा व डॉ. युसुफ अख्तर को उनकी इस सफलता पर बधाई दी. इसे विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय बताया है. यह जानकारी विश्वविद्यालय की प्रवक्ता डॉक्टर रचना गंगवार ने दी.

डॉ. युसुफ अख्तर ने बताया, कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष तम्बाकू के सेवन से लगभग 80 लाख लोगों की मौत होती है. जिनमें से अधिकांश लगभग 80% निम्न और मध्यम आय वाले देशों जैसे भारत से आते हैं. तम्बाकू का जटिल रासायनिक संघटन मानव स्वास्थ्य पर इसके विभिन्न हानिकारक प्रभावों को और अधिक बढ़ाता है.

स्मोकलेस टोबैको उत्पादों में अकेले लगभग 4000 रसायन होते हैं. जिनमें से कई हानिकारक मुंह में पाए जाने वाले बैक्टीरिया जैसे स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स और स्टैफिलोकोकस ऑरियस के प्रजनन और बायोफिल्म निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए जाने जाते हैं. बायोफिल्म जटिल घटकों से बने ऐसे बहुलक (पॉलीमर) होते हैं. जो दवाइयों को रोगजनक बैक्टीरिया तक नहीं पहुंचने देते. ये एंटीबायोटिक प्रतिरोध कारक होते हैं.

यह भी पढ़े-नैक की जारी रिपोर्ट में BBAU को मिला A++ ग्रेड, पहले लखनऊ विश्वविद्यालय को मिली थी उपलब्धि

निकोटीन, तम्बाकू के प्रमुख उत्तेजक पदार्थों में से एक है. इन रोगजनक बैक्टीरिया में बायोफिल्म निर्माण को बढ़ावा देता है. डॉ. वर्मा और डॉ. अख्तर का अध्ययन अन्य तम्बाकू रसायन की बायोफिल्म-निर्माण और विषाणुता से जुड़े प्रोटीन मॉलिक्यूल्स के साथ उनके मिलन की अंतःक्रियाओं पर पहली बार रोशनी डालेगा. इस परियोजना में प्रोटीन-मेटाबोलाइट्स की अंतःक्रियाओं का विश्लेषण करने के लिए उच्च-थ्रूपुट मॉलिक्यूलर डॉकिंग और मॉलिक्यूलर डायनामिक्स सिमुलेशन का उपयोग किया जाएगा. जो स्मोकलेस टोबैको के माध्यम से बैक्टीरिया की विषाणुता और प्रतिरोध को कैसे बढ़ावा मिलता है, इस पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा.

इसके बाद सूक्ष्मजीव प्रयोगशाला में विभिन्न बायोफिल्म अध्ययनों का उपयोग करके विशिष्ट मेटाबोलाइट्स का रोगजनक, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया पर प्रभाव का मूल्यांकन किया जाएगा. इस शोध के परिणाम सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. विशेषकर स्मोकलेस टोबैको उपयोगकर्ताओं के बीच. क्योंकि इससे तम्बाकू-संबंधित बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न मौखिक स्वास्थ्य जोखिमों का खुलासा होगा.

ये परिणाम भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) जैसे नियामक निकायों को सख्त दिशा-निर्देशों को तैयार करने में भी सहायता कर सकते हैं. इस शोध परिणाम भारत सरकार द्वारा सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 (COTPA) को और अधिक सख्त बनाने के प्रयासों को और मजबूती दे सकता है.

यह शोध तम्बाकू उपयोगकर्ताओं में बैक्टीरिया-जनित मुंह में होने वाले रोगों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रस्तुत करता है. बायोफिल्म निर्माण और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगजनकों को लक्षित करने वाली नई दवाओं के विकास में भी सहायक साबित हो सकता है.

इसे भी पढ़े-यूपी में बीएचयू, एएमयू जैसी टॉप यूनिवर्सिटी से भी आगे निकला लविवि, जानिए नैक ए++ मिलने के क्या हैं फायदे

लखनऊ: डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के सूक्ष्मजीव विशेषज्ञ डॉ. दिग्विजय वर्मा और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजिस्ट डॉ. यूसुफ अख्तर को केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से प्रतिष्ठित कोर रिसर्च ग्रांट प्रदान किया गया है. यह अध्ययन एसटी-प्रेरित बायोफिल्म निर्माण और इन बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के पीछे के आणविक तंत्र को समझने में एक नया अध्याय खोलने के लिए तैयार है. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एनएमपी वर्मा ने डॉ. दिग्विजय वर्मा व डॉ. युसुफ अख्तर को उनकी इस सफलता पर बधाई दी. इसे विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय बताया है. यह जानकारी विश्वविद्यालय की प्रवक्ता डॉक्टर रचना गंगवार ने दी.

डॉ. युसुफ अख्तर ने बताया, कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष तम्बाकू के सेवन से लगभग 80 लाख लोगों की मौत होती है. जिनमें से अधिकांश लगभग 80% निम्न और मध्यम आय वाले देशों जैसे भारत से आते हैं. तम्बाकू का जटिल रासायनिक संघटन मानव स्वास्थ्य पर इसके विभिन्न हानिकारक प्रभावों को और अधिक बढ़ाता है.

स्मोकलेस टोबैको उत्पादों में अकेले लगभग 4000 रसायन होते हैं. जिनमें से कई हानिकारक मुंह में पाए जाने वाले बैक्टीरिया जैसे स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स और स्टैफिलोकोकस ऑरियस के प्रजनन और बायोफिल्म निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए जाने जाते हैं. बायोफिल्म जटिल घटकों से बने ऐसे बहुलक (पॉलीमर) होते हैं. जो दवाइयों को रोगजनक बैक्टीरिया तक नहीं पहुंचने देते. ये एंटीबायोटिक प्रतिरोध कारक होते हैं.

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निकोटीन, तम्बाकू के प्रमुख उत्तेजक पदार्थों में से एक है. इन रोगजनक बैक्टीरिया में बायोफिल्म निर्माण को बढ़ावा देता है. डॉ. वर्मा और डॉ. अख्तर का अध्ययन अन्य तम्बाकू रसायन की बायोफिल्म-निर्माण और विषाणुता से जुड़े प्रोटीन मॉलिक्यूल्स के साथ उनके मिलन की अंतःक्रियाओं पर पहली बार रोशनी डालेगा. इस परियोजना में प्रोटीन-मेटाबोलाइट्स की अंतःक्रियाओं का विश्लेषण करने के लिए उच्च-थ्रूपुट मॉलिक्यूलर डॉकिंग और मॉलिक्यूलर डायनामिक्स सिमुलेशन का उपयोग किया जाएगा. जो स्मोकलेस टोबैको के माध्यम से बैक्टीरिया की विषाणुता और प्रतिरोध को कैसे बढ़ावा मिलता है, इस पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा.

इसके बाद सूक्ष्मजीव प्रयोगशाला में विभिन्न बायोफिल्म अध्ययनों का उपयोग करके विशिष्ट मेटाबोलाइट्स का रोगजनक, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया पर प्रभाव का मूल्यांकन किया जाएगा. इस शोध के परिणाम सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. विशेषकर स्मोकलेस टोबैको उपयोगकर्ताओं के बीच. क्योंकि इससे तम्बाकू-संबंधित बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न मौखिक स्वास्थ्य जोखिमों का खुलासा होगा.

ये परिणाम भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) जैसे नियामक निकायों को सख्त दिशा-निर्देशों को तैयार करने में भी सहायता कर सकते हैं. इस शोध परिणाम भारत सरकार द्वारा सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 (COTPA) को और अधिक सख्त बनाने के प्रयासों को और मजबूती दे सकता है.

यह शोध तम्बाकू उपयोगकर्ताओं में बैक्टीरिया-जनित मुंह में होने वाले रोगों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रस्तुत करता है. बायोफिल्म निर्माण और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगजनकों को लक्षित करने वाली नई दवाओं के विकास में भी सहायक साबित हो सकता है.

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