उज्जैन। बसंत पंचमी के अवसर पर सुबह 4 बजे महाकालेश्वर मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारियों ने बाबा महाकाल का जल से स्नान कराया. इसके बाद बाबा महाकाल का दूध, दही, घी, शहद, फलों के रस से बने पंचामृत से अभिषेक पूजन किया गया. बुधवार को बसंत पंचमी होने के काऱण बाबा महाकाल पर सरसों के पीले पुष्प अर्पित किए गए. बाबा महाकाला का माता सरस्वती के स्वरूप में श्रृंगार किया गया. सुबह से ही मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे.
माता सरस्वती के मंदिर में स्याही चढ़ाते हैं स्टूडेंट्स
वहीं, सिंहपुरी में स्थित माता सरस्वती के मंदिर में सुबह से ही बच्चों का तांता लग गया. यहां छात्र-छात्राएं सरस्वती माता को स्याही और पेन चढ़ाते हैं. इस मंदिर में बेशकीमती पाषाण की मूर्ति छोटे मंदिर में विराजत है. पंडित अनिल मोदी ने बताया कि यह मंदिर 300 वर्ष प्राचीन मुगलकालीन है. यहां पाषाण की काली मूर्ति है. विद्यार्थी सफल होने की कामना लेकर यहां स्याही चढ़ाते हैं. परीक्षा के दिनों में छात्र-छात्राओं का तांता मंदिर में लगता है. इस मंदिर में स्याही और कलम के साथ विद्यार्थी पीले फूल भी चढ़ाते हैं.
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बसंत पंचमी पर माता सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व
बसंत पंचमी के दिन सरसों के फूल का ख़ासा महत्व है. बसंत पंचमी पर्व पर यहां सुबह से ही बच्चों के साथ साथ पुरुष व महिलाओं की भीड़ जुटना शुरू हो गई. बसंत पंचमी पर्व पर पूरी मूर्ति स्याही से नहा लेती है, जिस कारण पूरा मंदिर नीले रंग का हो जाता है. माता सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए इस दिन पूजन करने की परंपरा शास्त्रार्थ भी है और लोक परंपरा में भी प्रचलित है. बसंत पंचमी का दिन माता सरस्वती की आराधना, उपासना की दृष्टि से विशेष माना जाता है.