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बनारस के इस स्थान पर गिरा था मां जगदंबा का कुंडल, यहां रात्रि विश्राम करने आते हैं बाबा विश्वनाथ, पढ़िए विशालाक्षी मंदिर का इतिहास - Banaras Vishalakshi Temple

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

नवरात्रि की शुरुआत के बाद देवी मंदिरों में पूजा-पाठ के लिए भक्त पहुंचने लगे हैं. काशी का विशालाक्षी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. इस मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है. यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.

नवरात्रि में पूजा-पाठ के लिए उमड़ती है भीड़.
नवरात्रि में पूजा-पाठ के लिए उमड़ती है भीड़. (Photo Credit; ETV Bharat)

वाराणसी : सप्त पुरी काशी को काशीपुराधिपति के साथ मां जगदंबा का शहर भी कहा जाता है. यहां पर 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी शक्तिपीठ मौजूद है. यहां पर मां का कर्ण कुंडल गिरा था. इस शक्तिपीठ का वर्णन देवी पुराण में भी मिलता है. मां के दर्शन-पूजन से अखंड सौभाग्य के साथ धन की वर्षा होती है. नवरात्रि में यहां काफी संख्या में भक्तों की भीड़ जुटती है. लोग पूजा-पाठ के लिए यहां पहुंचते हैं. माता को कुमकुम-हल्दी चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि यहां बाबा विश्वनाथ रात्रि विश्राम करने आते हैं.

विशालाक्षी मंदिर काशी विश्वनाथ धाम के बगल में मीरघाट मोहल्ले में विराजमान है. इस मोहल्ले में मां का भव्य मंदिर स्थापित है. यहां हर दिन हजारों की संख्या में देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं. मंदिर के महंत राधेश्याम दुबे ने ईटीवी भारत को बताया कि मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है. मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में गणेश, शंकर जी वह अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं तैयार की गईं हैं. यहां पर माता के साथ काल भैरव और विशालाक्षी ईश्वर यानी कि बाबा विश्वनाथ की भी प्रतिमा विराजमान है. यूं तो हर दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है, लेकिन नवरात्र के पांचवीं तिथि पर मां के दर्शन का अपना एक विशेष महत्व होता है.

बनारस के इस मंदिर का है पौराणिक महत्व. (Video Credit; ETV Bharat)

51 शक्तिपीठों में से एक है विशालाक्षी मंदिर : मंदिर के महंत कहते हैं कि, देश के 51 शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ का महत्व है. दक्षिण से आने वाले भक्त कहते हैं कि कांची में कामाख्या, मदुरई में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्ष. इन तीनों का महत्व एक समान है. यह तीनों देवियां आपस में बहन मानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि, काशी के यदि विशालाक्षी देवी की बात कर ली जाए तो पुराणों में ऐसा वर्णित है कि देवी शक्ति का यहां पर कर्ण कुंडल गिरा है. इस वजह से यहां मां स्वयंभू है. भक्त उनके दर्शन करते हैं. उन्होंने कहा कि मां के स्वरूप की बात कर ली जाए तो यहां पर मां की 2 प्रतिमाएं विराजमान है. एक जो मां का स्वयंभू है और दूसरा यहां पर एक चल प्रतिमा शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित की गई है.

हर दिन होती है चार आरती, दो अभिषेक : उन्होंने बताया कि, हर दिन मां की दोनों प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. चार पहर की आरती होती है. पहली प्रातः काल आरती और अभिषेक होता है. इसके बाद दोपहर में 12:30 बजे मां की आरती और अभिषेक किया जाता है. यह विशेष आरती होती है. इसमें मां को भोग लगता है. इसके बाद शाम 5:00 बजे मां की सायं कालीन आरती होती है, इसके बाद रात्रि में शयन आरती होने के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि मां की सबसे महत्वपूर्ण आरती भोग और शयन आरती होती है.

चावल-दाल लगता है भोग, कुमकुम हल्दी चढ़ाने से दूर होती है विवाह बाधा : महंत बताते हैं कि मां के भोग की बात कर ले तो मां को शुद्ध सात्विक चावल-दाल का भोग लगता है. इसके साथ मां का पसंदीदा पुष्प कमल, दौना और गुलाब है. भक्त यहां मां को 16 श्रृंगार के समान संग हल्दी कुमकुम अर्पित करते हैं. महंत बताते हैं कि जो महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना करना चाहती हैं या जिन कुंवारी कन्याओं के विवाह में किसी तरीके की दिक्कत आ रही है, यदि वह 41 दिन तक मां के दर्शन करें, उन्हें हल्दी कुमकुम अर्पित करें तो उनके विवाह में आ रही बाधा तुरंत समाप्त हो जाती है. उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वह बताते हैं कि नवरात्रि के पांच में तिथि पर यदि भक्ति मां के दर्शन कर लेते हैं तो उनकी अब तक के हुए सारे पाप कट जाते हैं और मां के आशीर्वाद सभी मनोकामना भी पूरी होती है.

बाबा विश्वनाथ हर दिन करने आते हैं रात्रि विश्राम : वह बताते हैं कि इस मंदिर को लेकर के एक अलग मान्यता और भी है. कहते हैं कि यहां बाबा विश्वनाथ प्रत्येक दिन रात्रि विश्राम के लिए आते हैं. इसलिए इस मंदिर में मां विशालाक्षी के अलावा विशालाक्षी ईश्वर महादेव का शिवलिंग भी स्थापित है और बाबा विश्वनाथ इसी शिवलिंग में मौजूद रहते हैं. काशी खंड में इनका वर्णन भी मिलता है, जो भी वक्त मां और बाबा दोनों का दर्शन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

भक्तों की सभी मनोकामना की होती है पूरी : मंदिर में आने वाले तेलंगाना शहर के भक्तों का कहना है कि वह काशी में बाबा विश्वनाथ और मां विशालाक्षी के दर्शन पूजन करने के लिए आए हैं. वह 2 साल से अनवरत दर्शन कर रहे हैं. उन्हें बेहद अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि, यहां आकर मां के दर्शन करने से ही मन को शांति मिलती है और मां सभी मनोकामनाएं को पूरा करती है. वहीं इंदौर से आई भक्त ने बताया कि, उन्होंने माता के बारे में बहुत सुना था और वह यहां उनके दर्शन के लिए आई है. उन्होंने मां को हल्दी कुमकुम अर्पित किया है और उनसे आशीर्वाद लिया है.काशी में रहने वाले मां के नेमी भक्त बताते हैं कि, यह मां का वह स्थान है जहां पर हर दिन मां विराजमान होती है. यहां मां के दर्शन करने से ऐसा लगता है कि स्वयं वह भक्तों को आकर आशीर्वाद दे रहीं हैं. यही वजह है कि वह हर दिन सुबह नियमित रूप से आकर के मां का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और वह मां से जो भी कहते हैं वह उन्हें पूरा करती है.

यह भी पढ़ें : यूपी का ऐसा मंदिर जहां माता सीता ने कराया था लव-कुश का मुंडन, 4 देवियों के होते हैं दर्शन, नवरात्रि पर लगती है भीड़

वाराणसी : सप्त पुरी काशी को काशीपुराधिपति के साथ मां जगदंबा का शहर भी कहा जाता है. यहां पर 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी शक्तिपीठ मौजूद है. यहां पर मां का कर्ण कुंडल गिरा था. इस शक्तिपीठ का वर्णन देवी पुराण में भी मिलता है. मां के दर्शन-पूजन से अखंड सौभाग्य के साथ धन की वर्षा होती है. नवरात्रि में यहां काफी संख्या में भक्तों की भीड़ जुटती है. लोग पूजा-पाठ के लिए यहां पहुंचते हैं. माता को कुमकुम-हल्दी चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि यहां बाबा विश्वनाथ रात्रि विश्राम करने आते हैं.

विशालाक्षी मंदिर काशी विश्वनाथ धाम के बगल में मीरघाट मोहल्ले में विराजमान है. इस मोहल्ले में मां का भव्य मंदिर स्थापित है. यहां हर दिन हजारों की संख्या में देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं. मंदिर के महंत राधेश्याम दुबे ने ईटीवी भारत को बताया कि मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है. मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में गणेश, शंकर जी वह अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं तैयार की गईं हैं. यहां पर माता के साथ काल भैरव और विशालाक्षी ईश्वर यानी कि बाबा विश्वनाथ की भी प्रतिमा विराजमान है. यूं तो हर दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है, लेकिन नवरात्र के पांचवीं तिथि पर मां के दर्शन का अपना एक विशेष महत्व होता है.

बनारस के इस मंदिर का है पौराणिक महत्व. (Video Credit; ETV Bharat)

51 शक्तिपीठों में से एक है विशालाक्षी मंदिर : मंदिर के महंत कहते हैं कि, देश के 51 शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ का महत्व है. दक्षिण से आने वाले भक्त कहते हैं कि कांची में कामाख्या, मदुरई में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्ष. इन तीनों का महत्व एक समान है. यह तीनों देवियां आपस में बहन मानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि, काशी के यदि विशालाक्षी देवी की बात कर ली जाए तो पुराणों में ऐसा वर्णित है कि देवी शक्ति का यहां पर कर्ण कुंडल गिरा है. इस वजह से यहां मां स्वयंभू है. भक्त उनके दर्शन करते हैं. उन्होंने कहा कि मां के स्वरूप की बात कर ली जाए तो यहां पर मां की 2 प्रतिमाएं विराजमान है. एक जो मां का स्वयंभू है और दूसरा यहां पर एक चल प्रतिमा शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित की गई है.

हर दिन होती है चार आरती, दो अभिषेक : उन्होंने बताया कि, हर दिन मां की दोनों प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. चार पहर की आरती होती है. पहली प्रातः काल आरती और अभिषेक होता है. इसके बाद दोपहर में 12:30 बजे मां की आरती और अभिषेक किया जाता है. यह विशेष आरती होती है. इसमें मां को भोग लगता है. इसके बाद शाम 5:00 बजे मां की सायं कालीन आरती होती है, इसके बाद रात्रि में शयन आरती होने के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि मां की सबसे महत्वपूर्ण आरती भोग और शयन आरती होती है.

चावल-दाल लगता है भोग, कुमकुम हल्दी चढ़ाने से दूर होती है विवाह बाधा : महंत बताते हैं कि मां के भोग की बात कर ले तो मां को शुद्ध सात्विक चावल-दाल का भोग लगता है. इसके साथ मां का पसंदीदा पुष्प कमल, दौना और गुलाब है. भक्त यहां मां को 16 श्रृंगार के समान संग हल्दी कुमकुम अर्पित करते हैं. महंत बताते हैं कि जो महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना करना चाहती हैं या जिन कुंवारी कन्याओं के विवाह में किसी तरीके की दिक्कत आ रही है, यदि वह 41 दिन तक मां के दर्शन करें, उन्हें हल्दी कुमकुम अर्पित करें तो उनके विवाह में आ रही बाधा तुरंत समाप्त हो जाती है. उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वह बताते हैं कि नवरात्रि के पांच में तिथि पर यदि भक्ति मां के दर्शन कर लेते हैं तो उनकी अब तक के हुए सारे पाप कट जाते हैं और मां के आशीर्वाद सभी मनोकामना भी पूरी होती है.

बाबा विश्वनाथ हर दिन करने आते हैं रात्रि विश्राम : वह बताते हैं कि इस मंदिर को लेकर के एक अलग मान्यता और भी है. कहते हैं कि यहां बाबा विश्वनाथ प्रत्येक दिन रात्रि विश्राम के लिए आते हैं. इसलिए इस मंदिर में मां विशालाक्षी के अलावा विशालाक्षी ईश्वर महादेव का शिवलिंग भी स्थापित है और बाबा विश्वनाथ इसी शिवलिंग में मौजूद रहते हैं. काशी खंड में इनका वर्णन भी मिलता है, जो भी वक्त मां और बाबा दोनों का दर्शन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

भक्तों की सभी मनोकामना की होती है पूरी : मंदिर में आने वाले तेलंगाना शहर के भक्तों का कहना है कि वह काशी में बाबा विश्वनाथ और मां विशालाक्षी के दर्शन पूजन करने के लिए आए हैं. वह 2 साल से अनवरत दर्शन कर रहे हैं. उन्हें बेहद अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि, यहां आकर मां के दर्शन करने से ही मन को शांति मिलती है और मां सभी मनोकामनाएं को पूरा करती है. वहीं इंदौर से आई भक्त ने बताया कि, उन्होंने माता के बारे में बहुत सुना था और वह यहां उनके दर्शन के लिए आई है. उन्होंने मां को हल्दी कुमकुम अर्पित किया है और उनसे आशीर्वाद लिया है.काशी में रहने वाले मां के नेमी भक्त बताते हैं कि, यह मां का वह स्थान है जहां पर हर दिन मां विराजमान होती है. यहां मां के दर्शन करने से ऐसा लगता है कि स्वयं वह भक्तों को आकर आशीर्वाद दे रहीं हैं. यही वजह है कि वह हर दिन सुबह नियमित रूप से आकर के मां का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और वह मां से जो भी कहते हैं वह उन्हें पूरा करती है.

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