वाराणसी: बनारस के प्रसिद्ध लेखक श्रीनाथ खंडेलवाल का निधन हो गया है. 80 साल की उम्र में वाराणसी के एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. 400 से ज्यादा किताबें लिखने वाले और 80 करोड़ से ज्यादा की संपति के मालिक ये प्रसिद्ध साहित्यकार अपनी जिंदगी के आखिरी समय में गुमनामी की जिंदगी को जीया. बच्चों की ओर से बेघर किेए जाने के बाद से ये वाराणसी के हीरामनपुर में एक वृद्ध आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. बड़ी बात ये है कि, मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में भी उनके बच्चे नहीं आए. बेटे ने शहर से बाहर होने की बात करके अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना कर दिया, तो वहीं बेटी ने फोन भी नहीं उठाया.
दरअसल, लेखक और अनुवादक श्रीनाथ खंडेलवाल वाराणसी के रहने वाले थे. ये दसवीं फेल थे, लेकिन किताबों की जानकारी, पुराणों का अनुवाद और हजारों पन्नों की किताबें लिखना इनके लिए बहुत ही आसान था. उम्र के इस पड़ाव में भी आकर इनके मन में किताबें लिखने कि लालसा खत्म नहीं हुई थी. ये वाराणसी के वृद्धाश्रम में रहकर हाथ से किताबें लिख रहे थे. इनकी किताबें ऑनलाइन, ऑफलाइन हजारों की संख्या में बिकती हैं. इनकी उपलब्धि ऐसी थीं कि इन्हें पद्मश्री सम्मान के लिए नामित किया गया था, लेकिन इन्होंने इसे लेने से भी मना कर दिया था.
ईटीवी से पहले हुई बातचीत में श्रीनाथ खंडेलवाल ने बताया था कि, उन्होंने 15 वर्ष की आयु में पहली किताब लिखी थी, यहीं से उनका किताबों को लिखना शुरु हो गया था. पद्मपुराण लिखा, मत्स्य पुराण 2000 पन्नों का लिखा था. तंत्र पर करीब 300 पन्नों की किताबें लिखी थी. कुछ अभी छप रही हैं. शिवपुराण का 5 खंडों में अनुवाद किया है. आसामी और बांग्ला भाषाओं में अधिक अनुवाद किया था. अभी तक 21 या 22 उपपुराण और 16 महापुराणों का अनुवाद किया है. किताब लिखने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग नहीं करते थे. शुरू से ही हाथ से लिखते थे. वर्तमान में वो नरसिंह पुराण लिख रहे थे.
अपने बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था कि, किताब छपने के बाद जो उसकी बिक्री होती है उससे वो फिर किताब छपा लेते हैं. कभी प्रकाशक के दरवाजे हम गए नहीं. मोल भाव नहीं करते . आजतक अपनी किताब का विमोचन नहीं कराया, कभी विज्ञापन नहीं किया. मैंने एक रिक्शेवाले को बुलाकर तीन किताबों का विमोचन कर दिया.
समाजसेवी अमन कबीर ने बताया कि, जब श्रीनाथ खंडेलवाल हमें मिले थे तो बुरे हाालत में थे. उनको उठाकर हम लोगों ने वृद्धाश्रम में रखा. ये लंका के रहने वाले थे, करोड़ों की संपति के ये मालिक थे. आश्रम में परिवार का उनसे कोई मिलने नहीं आता था. ऐसा लगता है कि परिवार ने ही उनको छोड़ा होगा. हम लोगों द्वारा यहां पर उनके रहने की व्यवस्था की गई थी. ये करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं. शनिवार को इनकी अस्पताल में मृत्यु हो गई. जिसके बाद उनके परिजनों को सूचित किया गया. लेकिन परिवार से कोई भी नहीं आया. जिसके बाद अमन कबीर ने अपने साथियों के साथ मिलकर खंडेलवाल का अंतिम संस्कार किया.
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