लखनऊ: कुशीनगर के हरिहरपुर (तमकुहीराज) के रहने वाले रवि प्रसाद साल 2015 में इकोनॉमिक्स से एमए कर रहे थे, तभी एक गंभीर हादसे में उनके पिता को एक पैर गंवाना पड़ा. घर का इकलौता होने के कारण इस हादसे के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई. सामने घर की जिम्मेदारी थी. ऐसे में रवि को चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था. रोजी-रोटी के लिए वह दिल्ली गए. इसी दौरान प्रगति मैदान की प्रदर्शनी में दक्षिण भारत के एक स्टॉल पर केले के रेशे से बने तमाम उत्पाद देखकर उनके मन में आया, कि यह काम तो कुशीनगर में भी संभव है. इससे सबंधित कुछ बेसिक जानकारी लेकर वह घर लौटे.
रवि प्रसाद ने 2017 के आखिर में काम शुरू किया. इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) के नाम से एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की. योजना के तहत केले को कुशीनगर का ओडीओपी घोषित होने से उनका हौसला बढ़ा. उन्होंने, पीएमईजीपी योजना से पांच लाख का लोन लिया. इसके बाद काम चल निकला. आज केले के रेशे से उनकी ही नहीं, उनसे जुड़ी करीब पांच दर्जन से अधिक महिलाओं की जिंदगी भी रोशन हो रही है.
हाल ही वह अपने उत्पादों के साथ ग्रेट नोएडा में योगी सरकार की तरफ से आयोजित इंटरनेशनल ट्रेड शो में भी गए थे. उनका सारा सामान बिक गया. आज न केवल वह आत्मनिर्भर हैं, बल्कि उनकी एक सामाजिक पहचान भी है. अभी अगस्त में जिले के जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारियों ने उनकी इकाई का दौरा किया था. उनके मुताबिक केले को कुशीनगर का (ओडीओपी) घोषित कर मुख्यमंत्री ने इसकी खेती और इससे जुड़े बाकी कामों को नया जीवन दे दिया.
रेशे से बनाते हैं रोजमर्रा की जरूरत की कई चीजें: फिलहाल, रवि केले के रेशे से महिलाओं और पुरुषों के लिए बैग, टोपी, गुलदस्ता, पेन स्टैंड, पूजा की आसनी, योगा मैट, दरी, कैरी बैग, मोबाइल पर्स, लैपटॉप बैग, चप्पल बनाते हैं. केले का कुछ रेशा वह गुजरात की कुछ फर्मों को भी निर्यात करते हैं. यही नहीं केले से रेशे को अलग करने के दौरान जो पानी निकलता है, वह भी 15 से 20 रुपये लीटर की दर से बिक जाता है. इसके ग्राहक मछली उत्पादन करने वाले लोग हैं. इस पानी में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नेशियम और बिटामिन बी-6 मिलता है. इसे जिस तालाब में मछली पाली गई है, उसमें डाल देते हैं. इससे मछलियों की बढ़वार अच्छी होती है. यही नहीं बाकी अपशिष्ट की भी कम्पोस्टिंग करके बेहतरीन जैविक खाद बनाई जा सकती है.
अब तक करीब 600 लोगों को दे चुके हैं ट्रेनिंग: रवि केले के रेशे से सामान और अन्य उत्पाद बनाने के बाबत करीब 600 लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं. इसके अलावा अलग-अलग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 60 से 65 महिलाएं भी उनके साथ जुड़ी हैं. रवि के मुताबिक सबसे पहले तने को बनाना ट्री कटर में डालते हैं. वह तने के कई भाग कर देती है. फिर तने के अलग फाड़ को रेशा बनाने वाली मशीन में डालते हैं. इससे रेशा निकल आता है. इस दौरान जरूरत के लिए केले के तने से निकले रस में थोड़ा नामक डालकर गर्म कर लेते हैं. इसके बाद इस रेशे को मनचाहे रंग में रंग कर उत्पाद बनाने में प्रयोग करते हैं.
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