बगहाः घड़ियालों के संरक्षण को लेकर वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की 14 साल की कोशिशें अब रंग लाती दिख रही हैं. बगहा के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से होकर बहती गंडक नदी में मॉनसून से पहले 164 घड़ियाल छोड़े जाने के बाद नदी की खूबसूरती में चार चांद लग गए हैं. इसके साथ ही गंडक नदी में अब घड़ियालों की संख्या करीब 600 पहुंच गयी है.
घड़ियालों को भा रही है गंडक नदीः पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस गंडक नदी में ही गज और ग्राह का युद्ध भी हुआ था और अब इस नदी का जल घड़ियालों को खूब भा रहा है. तभी तो मध्य प्रदेश की चंबल नदी के बाद गंडक ऐसी दूसरी नदी बन गयी है जहां सबसे अधिक संख्या में घड़ियाल रहते हैं. ये वाल्मीकि रिजर्व टाइगर के साथ-साथ बिहार के लिए भी बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.
2010 में शुरू हुई थी परियोजनाः दरअसल, 2010 में बिहार सरकार ने डब्लूटीआई (WTI) के साथ मिलकर एक परियोजना शुरू की थी, जिसका मकसद था गंडक नदी में घड़ियालों की संख्या बढ़ाना. तब तक गंडक नदी में 10 घड़ियाल थे. करीब चार साल के बाद करीब 30 घड़ियालों को गंडक नदी में छोड़ा गया. इसके बाद स्थानीय लोगों की मदद से घड़ियालों के घोंसलों की निगरानी की गई. इसके बाद गंडक नदी में घड़ियालों की संख्या लगातार बढ़ती गई.
10 घड़ियालों से 600 घड़ियाल तक का सफरः बिहार सरकार और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ईमानदार कोशिशों से गंडक नदी में घड़ियालों की संख्या 10 से 600 तक जा पहुंची है. साल 2010-11 में जहां 10 घड़ियाल थे वहीं 2014-15 में इनकी संख्या बढ़ कर 54 हो गयी. वहीं 2017-18 में ये संख्या 211 पहुंच गयी. वहीं 2020-2021 में 260 और 2022-23 में ये संख्या 217 रही.
गंडक नदी और घड़ियाल.. दिलचस्प कहानी : साल 2003, गंडक नदी में डॉल्फिन का सर्वेक्षण कार्य चल रहा था. इसी दौरान डब्लूटीआई यानी भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट की टीम को एक शिशु घड़ियाल मिला, जिसकी पूंछ कटी हुई थी. इसके बाद वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की इन इलाकों में घड़ियालों को लेकर दिलचस्पी बढ़ती गई. डब्लूटीआई की दिलचस्पी का नतीजा ये रहा कि नेपाल के हिस्से वाली गंडक नदी में त्रिवेणीघाट पर कई घड़ियाल देखे गए और इसी के साथ शुरू हुआ घड़ियालों का संरक्षण और सर्वेक्षण.
ऐसे होता है अंडों से घड़ियाल का जन्म : गंडक नदी के किनारे घड़ियालों के कई प्रजनन स्थल हैं. एस्सपर्ट की मानें तो, यहां रेत (बालू) में मादा घड़ियाल 30 से 40 सेंटीमीटर गड्ढा खोदकर 40 से 50 की संख्या में अंडा देती हैं. करीब दो महीने बाद इन अंडों से बच्चे निकलते हैं. जब बच्चे अंडों से बाहर आते है, उससे पहले एक तरह की खास आवाजें निकालते हैं, जिसे 'मदर कॉल' कहते हैं
लॉस एंजिल्स जू का भी सहयोगः घड़ियालों के अंडों के संरक्षण और प्रजनन में लॉस एंजिल्स जू कैलिफोर्निया का भी सहयोग मिलता है. इसकी देखरेख में ही वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया और वन-पर्यावरण विभाग घड़ियालों के संरक्षण और संवर्धन में जुटा है.अतिसंरक्षित प्राणी घड़ियाल के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की पहल अब परवान चढ़ चुकी है.पिछले साल भी 125 घड़ियाल गंडक नदी में छोड़े गये थे.
'अलगअलग होते हैं घड़ियाल और मगरमच्छः': न्यूज एनवायरनमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी के प्रॉजेक्ट मैनेजर अभिषेक का कहना है कि "अधिकांश लोग घड़ियाल को ही मगरमच्छ समझ लेते हैं. लेकिन घड़ियालों की अपनी एक अलग खासियत होती है. इनका थूथुन यानी मुंह आगे से नुकीला होता है जबकि मगरमच्छ का मुंह थोड़ा चौड़ा होता है."
"मगरमच्छ सर्वाहारी होते हैं और ये जानवर समेत इंसानों पर भी हमले कर देते हैं, जबकि घड़ियाल शर्मीले होते हैं. ये नदी में पाए जाने वाले मछलियों, मेढ़क समेत अन्य छोटे-छोटे जीवों को खाकर अपनी भूख मिटाते हैं. घड़ियाल इंसान पर हमले नहीं करते हैं और उनके लिए खतरा साबित नहीं होते हैं. एक खासियत ये भी है कि घड़ियाल बहते पानी में ही रहते हैं जबकि मगरमच्छ किसी तरह के पानी में रह लेते हैं."-अभिषेक, प्रॉजेक्ट मैनेजर, न्यूज एनवायरनमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी
गंडक में हुआ था गज-ग्राह युद्धः जिस गंडक नदी में घड़ियालों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है, मान्यता है कि उसी गंडक में ही महाभारत काल के दौरान गज यानी हाथी और ग्राह यानी घड़ियाल के बीच युद्ध हुआ था. कथा के अनुसार सोनपुर से ये युद्ध शुरू हुआ था और भारत-नेपाल की सीमा पर त्रिवेणी में इसका समापन तब हुआ था, जब गज की गुहार पर भगवान स्वयं पहुंचे थे और उसकी जान बचाई थी. नेपाल के त्रिवेणी में आज भी गजेंद्र मोक्ष धाम लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है.
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