लखनऊ: 10 साल पहले 2 अक्टूबर 2014 को लखनऊ में एक ऐसी एक संस्था की नींव पड़ी जिसका मकसद था समाज से बहिष्कृत जीवन जीने वाले भिखारियों को फिर से मुख्यधारा में लाना. उनके अंदर जीने की ललक पैदा करना और फिर रोजी रोटी का जुगाड़ कर उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाना. तीन लोगों शरद पटेल, उनके सहपाठी जय दीप कुमार रावत और महेंद्र प्रताप से शुरू हुआ यह सफर एक साल में ही संस्था में बदल गया और नाम भी रखा गया 'बदलाव'. आज 450 भिखारियों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकाल कर उन्हें रोजगार से जोड़ा है. वहीं 1400 से अधिक लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर उनके स्वरोजगार को शुरू करने में मदद की है.
शरद पटेल ने 2014 की एक घटना को याद करते हैं. एक दिन एक भिखारी उनके पास दस रुपये मांगने के लिए आया. लेकिन पैसे देने के बजाय, वह उसे एक होटल में ले गए और खाना खिला दिया. वह जिस तरह भीख मांग रहा था वह दिल दहला देने वाला था. तभी उसे ख्याल आया कि एक समय का भोजन मिलने से इनकी तत्काल समस्या तो हल हो जाएगी. लेकिन उसे हुनर सिखाया जाए तो वह आत्मनिर्भर बन जायेंगे. इसी उद्देश्य को लेकर 2 अक्टूबर 2014 को भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान शुरू हुआ. 2015 में शरद ने बदलाव की स्थापना की इसके बाद से, बदलाव ने अभियान को गति दी.
शरद पटेल ने महीनों सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद उन्हें नगर निगम का रैन बसेरा मिला. जहां से उन्होंने अपने अभियान को शुरू किया और भिक्षावृत्ति करने वाले को लोगों को केन्द्र में लाकर उनकी काउंसलिंग शुरू की. अब तक 484 लोग भीख मांगना छोड़कर फिर से समाज से जुड़े और अब छोटे-मोटे रोजगार या नौकरी कर अपनी जिन्दगी को सम्मानजनक तरीखे से जी रहे हैं.
शरद पटेल ने बताया कि अपना अभियान के तहत सबसे पहले सेंटर पर लाकर उनको नशा से छुटकारा दिलाने का काम करते हैं. क्योंकि अकेले रहने के चलते इनको नशे की लत जल्दी लगती है. इसके लिए कई संस्थानों से उनको मदद मिलती है. इसके बाद इन लोगों को छोटे छोटे हुनर जैसे पेपर के लिफाफे बनाना, सब्जी के ठेले लगाना आदि स्वरोजगार शुरू करने के लिए डोनेशन लेकर उनकी सहायता करते हैं और एक बार स्वरोजगार शुरू करना में मदद करते हैं फिर उनके कामकाज पर लगातार निगरानी रखी जाती है.
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