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शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल, गांव में टीवी मोबाइल नहीं इसलिए नहीं आती हिंदी, सरकारी शिक्षक का अनोखा तर्क - Bad Condition of Education

Bad Condition of Education छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई योजनाएं लाई गई है.लेकिन ये योजनाएं क्या असली हकदार तक पहुंच पाती हैं.ये एक बड़ा सवाल है.गौरेला पेंड्रा मरवाही में इसका जीता जागता उदाहरण देखने को मिल रहा है.जहां शिक्षा के नाम पर आदिवासी छात्रों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.Gaurela Pendra Marwahi

Bad condition of education in Gaurela Pendra Marwahi
गौरेला पेंड्रा मरवाही में शिक्षा का हाल बुरा
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 15, 2024, 11:00 PM IST

गौरेला पेंड्रा मरवाही : छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए दूरस्थ इलाकों में स्कूल भवन बनाएं.इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति भी की गई.लेकिन जिन शिक्षकों के जिम्मे स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहालों का भविष्य सुधारने की जिम्मेदारी है.वो खुद स्कूल से नदारद रहते हैं.गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के दूरस्थ गांव बस्ती बगरा में ईटीवी भारत की टीम पहुंची.इस दौरान बच्चों से पढ़ाई को लेकर सवाल पूछे. जिसका जवाब सुनने के बाद हर कोई चौंक गया.

नहीं पढ़ना आता हिंदी : बस्ती बगरा स्कूल के छात्रों को हमारी टीम ने उन्हीं की हिंदी की किताबें दी.लेकिन कक्षा पांचवीं में पढ़ने वाला छात्र हिंदी नहीं पढ़ सका. कोटमीखुर्द मजखल्ला स्कूल के छात्रों ने हिंदी नहीं पढ़ पाने की वजह भी बताई. बच्चों ने भोले मन से जवाब दिया कि स्कूल में शिक्षक मोबाइल में व्यस्त रहते हैं. इसलिए पढ़ाई नहीं होती.

हाजिरी लगाकर शिक्षक नदारद : हमने जब रामगढ़, बस्ती, बगरा, कोटमीखुर्द और उसके पास के कुछ स्कूलों का भी दौरा किया.यहां भी शिक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई. शासन स्तर के ज्यादातर स्कूलों में तीन से पांच अध्यापकों की नियुक्ति की गई है. लेकिन किसी भी स्कूल में एक से अधिक शिक्षक नहीं मिले. ज्यादातर शिक्षक स्कूल पहुंचने के बाद हाजिरी लगाकर गायब थे.वहीं कुछ ने जरूरी काम का बहाना बनाकर छुट्टी ले रखी थी.जब टीम ने अटेंडेंस रजिस्टर चेक किया तो पाया कि सभी शिक्षकों की हाजिरी लगी थी.यानी भले ही वो बच्चों को नहीं पढ़ा रहे लेकिन सैलरी पूरी मिलेगी.

दो शिक्षक के भरोसे हाईस्कूल : प्राथमिक और माध्यमिक शाला का हाल तो बुरा था. इसके बाद टीम ने हाईस्कूल का रूख किया. नवमीं और दसवीं के बच्चों के लिए शासन ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी बिल्डिंग बनाई है. स्कूल में पांच शिक्षकों की नियुक्ति भी है. लेकिन हाईस्कूल में सिर्फ दो ही शिक्षक उपस्थित मिले. नवमी और दसवीं के विद्यार्थियों को सुबह 10 बजे स्कूल आने के बाद 6 घंटे में सिर्फ एक ही विषय की पढ़ाई हुई थी.क्योंकि शिक्षक जरुरी काम बताकर घर चले गए.वहीं दूसरे शिक्षक ने छुट्टी का अप्लीकेशन छोड़ रखा था.जबकि बाकी शिक्षकों के हस्ताक्षर रजिस्टर में मिले.

शिक्षकों का जवाब हैरान करने वाला : जब मीडिया ने शिक्षकों से पूछा कि बच्चे हिंदी क्यों नहीं पढ़ पा रहे तो जवाब चौंकाने वाला था.शिक्षकों के मुताबिक बच्चों के हिंदी ना पढ़ पाने का कारण उनका शर्मिला स्वभाव है.साथ ही साथ गांव के घरों में टीवी और मोबाइल नहीं होने से बच्चे हिंदी नहीं सीख सके. वहीं दूसरी ओर हाईस्कूल में शिक्षक ना होने का बचाव दूसरे शिक्षकों ने किया. इस पूरे मामले पर जिला शिक्षा अधिकारी का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने भी अब जांच की बात कहकर अपना काम पूरा कर लिया है. साथ ही जिन स्कूलों में छात्र हिंदी पढ़ना नहीं जानते उन स्कूलों के शिक्षकों को ग्रीष्म अवकाश के दौरान ट्रेनिंग देने की बात भी कही है.

जिले का मान का अपमान : गौरेला पेंड्रा मरवाही ने छत्तीसगढ़ को IAS, आईपीएस ,गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर, प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री दिया है. आज इस जिले में शिक्षा का हाल बेहाल है.आजादी से पहले इस क्षेत्र की शिक्षा का डंका पूरे देश में बजता था.लेकिन आज जब पूरे संसाधन है तो बच्चों को मातृभाषा बोलने में दिक्कत हो रही है.ऐसे में उन अधिकारियों और शिक्षकों पर सवाल उठना लाजिमी है,जिनके जिम्मे नौनिहालों के भविष्य को संवारने का जिम्मा है.

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नहीं पढ़ना आता हिंदी : बस्ती बगरा स्कूल के छात्रों को हमारी टीम ने उन्हीं की हिंदी की किताबें दी.लेकिन कक्षा पांचवीं में पढ़ने वाला छात्र हिंदी नहीं पढ़ सका. कोटमीखुर्द मजखल्ला स्कूल के छात्रों ने हिंदी नहीं पढ़ पाने की वजह भी बताई. बच्चों ने भोले मन से जवाब दिया कि स्कूल में शिक्षक मोबाइल में व्यस्त रहते हैं. इसलिए पढ़ाई नहीं होती.

हाजिरी लगाकर शिक्षक नदारद : हमने जब रामगढ़, बस्ती, बगरा, कोटमीखुर्द और उसके पास के कुछ स्कूलों का भी दौरा किया.यहां भी शिक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई. शासन स्तर के ज्यादातर स्कूलों में तीन से पांच अध्यापकों की नियुक्ति की गई है. लेकिन किसी भी स्कूल में एक से अधिक शिक्षक नहीं मिले. ज्यादातर शिक्षक स्कूल पहुंचने के बाद हाजिरी लगाकर गायब थे.वहीं कुछ ने जरूरी काम का बहाना बनाकर छुट्टी ले रखी थी.जब टीम ने अटेंडेंस रजिस्टर चेक किया तो पाया कि सभी शिक्षकों की हाजिरी लगी थी.यानी भले ही वो बच्चों को नहीं पढ़ा रहे लेकिन सैलरी पूरी मिलेगी.

दो शिक्षक के भरोसे हाईस्कूल : प्राथमिक और माध्यमिक शाला का हाल तो बुरा था. इसके बाद टीम ने हाईस्कूल का रूख किया. नवमीं और दसवीं के बच्चों के लिए शासन ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी बिल्डिंग बनाई है. स्कूल में पांच शिक्षकों की नियुक्ति भी है. लेकिन हाईस्कूल में सिर्फ दो ही शिक्षक उपस्थित मिले. नवमी और दसवीं के विद्यार्थियों को सुबह 10 बजे स्कूल आने के बाद 6 घंटे में सिर्फ एक ही विषय की पढ़ाई हुई थी.क्योंकि शिक्षक जरुरी काम बताकर घर चले गए.वहीं दूसरे शिक्षक ने छुट्टी का अप्लीकेशन छोड़ रखा था.जबकि बाकी शिक्षकों के हस्ताक्षर रजिस्टर में मिले.

शिक्षकों का जवाब हैरान करने वाला : जब मीडिया ने शिक्षकों से पूछा कि बच्चे हिंदी क्यों नहीं पढ़ पा रहे तो जवाब चौंकाने वाला था.शिक्षकों के मुताबिक बच्चों के हिंदी ना पढ़ पाने का कारण उनका शर्मिला स्वभाव है.साथ ही साथ गांव के घरों में टीवी और मोबाइल नहीं होने से बच्चे हिंदी नहीं सीख सके. वहीं दूसरी ओर हाईस्कूल में शिक्षक ना होने का बचाव दूसरे शिक्षकों ने किया. इस पूरे मामले पर जिला शिक्षा अधिकारी का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने भी अब जांच की बात कहकर अपना काम पूरा कर लिया है. साथ ही जिन स्कूलों में छात्र हिंदी पढ़ना नहीं जानते उन स्कूलों के शिक्षकों को ग्रीष्म अवकाश के दौरान ट्रेनिंग देने की बात भी कही है.

जिले का मान का अपमान : गौरेला पेंड्रा मरवाही ने छत्तीसगढ़ को IAS, आईपीएस ,गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर, प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री दिया है. आज इस जिले में शिक्षा का हाल बेहाल है.आजादी से पहले इस क्षेत्र की शिक्षा का डंका पूरे देश में बजता था.लेकिन आज जब पूरे संसाधन है तो बच्चों को मातृभाषा बोलने में दिक्कत हो रही है.ऐसे में उन अधिकारियों और शिक्षकों पर सवाल उठना लाजिमी है,जिनके जिम्मे नौनिहालों के भविष्य को संवारने का जिम्मा है.

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