चाकसू/ कुचामनसिटी. पूरे उपखण्ड क्षेत्र में शुक्रवार को बछ बारस श्रद्धा व उल्लास से मनाई गई. महिलाओं ने सुबह मंगल गीत गाते हुए गाय व बछड़े के भाल पर तिलक लगाकर विधि-विधान के साथ उनका पूजन किया. गायों को चूनरी ओढ़ाई. इसके मोहल्लों में घर के आगे गाय के गोबर से बनी तलाई बनाकर उसमें पानी भरा और बछ बारस की कथा का श्रवण किया. मान्यता है कि बछ बारस करने से बेटों की उम्र लम्बी होती है और उनके जीवन में खुशहाली रहती है. महिलाओं ने बताया कि आज के दिन बछ बारस पर गाय के दूध से बने उत्पादो का उपयोग नही किया जाता है. इस दिन गेहूं और चाकू एवं धारदार किसी चीज से कटी हुई वस्तु का इस्तेमाल नही किया जाता है. इसके स्थान पर बाजरा या मक्का से बनी खाद्य वस्तुओं अंकुरित चना, मूंग-मोठ की सब्जी का उपयोग होता है. जिसका पूजन के बाद परिजनों के साथ महिलाओं ने आनन्द लिया.
आचार्य पं जगदीश शर्मा ने बताया कि पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इस दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था. जिस गौ माता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हो और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया. ऐसे में गौमाता की रक्षा करना और उनका पूजन करना हर भारतवंशी का धर्म है. इस अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. भारतीय धार्मिक पुराणो में गौ माता में समस्त तीर्थ होने की बात कही गई है.
बताया कि पूज्यनीय गौ माता हमारी ऐसी मां है जिसकी बराबारी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ, क्योंकि गोमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नही प्राप्त हो सकता है. गौरतलब हैं कि भाद्रवा महीने में कृष्ण पक्ष की बारस यानी द्वादशी तिथि को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है.
कुचामनसिटी में माताओं ने की गाय व बछड़े की पूजा : सुबह से ही माताओं ने की गाय व बछड़े की पूजा महिलाओं ने सामुहिक रूप से बछ बारस का पर्व धुम धाम से मनाया. सुहागन महिलाओं ने गाय सहित बछड़े पूजा की आज के दिन माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद दिया. आज के दिन महिलाएं अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत भी रखा इस दिन गेंहू से बने हुवे पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नही खाई जाती. बाजरे व ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी व सूखी सब्जी बनाई जाती है. महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया को अच्छी तरह सजा कर उसमें कच्चा दूध और पानी भरकर कुमकुम, मोली धूप दीप प्रज्जलित कर पूजा अर्चना की गई. पण्डित नवरत्न शर्मा ने बताया कि इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. भाद्रपद मास में पड़ने वाले इस उत्सव को गोवत्स द्वादशी या बछ बारस के नाम से भी जाना जाता हैं.