Amaltas Flower। एमपी का शहडोल संभाग आदिवासी बाहुल्य संभाग है. इस संभाग में आज भी कई ऐसी जड़ी बूटियां पाई जाती हैं, जिसका इस्तेमाल करके लोग बड़े से बड़े मर्ज असाध्य रोगों को ठीक कर देते हैं. आज हम बात करेंगे एक ऐसे वृक्ष की, जिसके पीले फूल को लेकर यहां के लोगों में हर सीजन में बड़ा क्रेज होता है, जैसे ही पीले फूल से ये पेड़ अच्छादित होता है. लोग इन फूलों का साल भर में एक बार जरूर सेवन करते हैं, इस वृक्ष के फूलों को लेकर कहा जाता है की ये साल भर के पित्त को खत्म कर देता है.
करकचहा के फूल का बड़ा क्रेज
शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां आज भी पुराने लोग औषधीय महत्व की चीजों का भरपूर उपयोग करते हैं. शहडोल जिले के रहने वाले मुकेश यादव बताते हैं जब सीजन आता है, करकचहा वृक्ष में फूल आते हैं, तो क्षेत्र में उसकी सब्जियां और कढ़ी काफी फेमस है, लोग इसका बड़े चाव के साथ सेवन करते हैं. क्योंकि ये साल भर की सब्जी तो है ही, साथ ही इसकी कढ़ी बड़ी स्वादिष्ट होती है और औषधीय महत्व का होता है. मुकेश यादव कहते हैं की इसके बारे में बड़े बुजुर्ग बताते हैं की इसके फूल का सेवन साल भर में करना चाहिए, क्योंकि ये साल भर का पित्त खत्म कर देता है.
औषधि की खान है करकचहा का वृक्ष
एक ऐसा वृक्ष जिसके पीले फूल इन दिनों सभी का मन मोह रहे हैं. पूरा का पूरा वृक्ष ही इन पीले फूलों से आच्छादित है. ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति ने इस वृक्ष को सोने से सजा दिया हो, अक्सर ही तालाब के किनारे बगीचों में सड़क के किनारे ये वृक्ष पाया जाता है. शहडोल संभाग में लोकल भाषा में इसे करकचहा के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसका प्रचलित नाम अमलतास है. कई प्राचीन ग्रंथों में भी अमलतास का विवरण मिलता है, आमतौर पर भारत में अमलतास को अलग-अलग नाम से जाना जाता है.
अमलतास का वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला है. हिंदी में इसे अमलतास, सोनहाली और सियरलाठी के नाम से जाना जाता है. अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग नाम से इसे जाना जाता है, तो वहीं इंग्लिश में इसे कैसिया, गोल्डन शावर के नाम से जाना जाता है. जबकि संस्कृत में इसे आरगवाद के नाम से जाना जाता है. उर्दू में अमलतास के नाम से जाना जाता है. जो इस वृक्ष के लिए सबसे प्रचलित नाम है. अधिकतर जगहों पर इसे अमलतास के नाम से ही जाना जाता है. आयुर्वेद में भी अमलतास का एक विशेष स्थान बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि अमलतास जड़ से लेकर वृक्ष तना पत्ती फल फूल सभी आयुर्वेद महत्व के हैं और इनमें कई बीमारियों की ठीक करने की अद्भुत क्षमता है.
अमलतास का औषधीय महत्व
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की अमलतास का जो वृक्ष होता है संस्कृत में उसे आर्गवद बोलते हैं, इसका बॉटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला है. इसके जो फल होते हैं कुछ-कुछ मुनगा के सदृश्य दिखते हैं. इसके जब पीले फूल पूरे पेड़ में छा जाते हैं तो उसकी खूबसूरती देखते ही बनती है. इसे देव वृक्ष भी कहा जाता है. यह पूरा का पूरा पेड़ जो है औषधि की खान है. इसके जो फूल होते हैं. इस क्षेत्र में अलग अलग तरीके से उसका सेवन करते हैं. उसकी सब्जी बनाकर खाते हैं और इसे बहुत अच्छा लिवर टॉनिक भी माना गया है. लिवर टॉनिक होने के कारण है यह पार्टिकुलर पित्त में काम करता है और एसिडिटी जैसी समस्या, हेपेटाइटिस जैसी समस्याएं और लीवर की कमजोरी जॉन्डिस जैसी समस्याओं में इसके फूलों की सब्जी बहुत फायदेमंद है.
इसका जो फल होता है, इसके अंदर का जो पल्प होता है या फलमज्जा वो मृदुरेचक होता है. मृदु रेचक मतलब पेट को साफ रखती है. आयुर्वेद की बहुत सारी औषधि में इसके फल की मज्जा का प्रचुर रूप में उपयोग किया जाता है. कई सारी औषधीय में इसका काफी उपयोग किया जाता है. इस वृक्ष का जो छाल होता है. उसका रस 20 से 30 एमएल की मात्रा में पेट के कीड़े मारने में भी काफी उपयोगी होता है. वेटरनरी मेडिसिन में भी इसका काफी उपयोग किया जाता है. पशुओं के पेट के कीड़े मारने में भी इसका उपयोग किया जाता है. जिन लोगों को पुराना बुखार रहता है. खासतौर पर टायफाइड फीवर रहता है, पेट से संबंधित कांस्टीपेशन रहता है, वहां पर अमलतास लॉन्ग रन में अच्छा काम करता है.
अमलतास का पूरा पेड़ औषधि की खान
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की अमलतास का पूरा का पूरा पेड़ ही औषधि की खान है. इसका जड़, इसकी छाल, इसका फूल, इसका तना, इसका फल, इसकी पत्ती, सबकुछ अलग अलग मर्ज के औषधियों के तौर पर इस्तेमाल की जाती है. आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की इसका फूल लिवर डिसऑर्डर में काम करता है. फल गैस्ट्रिक डिसऑर्डर में काम करता है, इन डाइजेशन में कन्स्टीपेशन में काम करता है, इसका जो छाल है पेट के कीड़े मारने में काम आता है और इसका जो जड़ है वो भी कई सारी बीमारियों में काम आता है.