प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए न्यायालय की अवमानना के तहत दाखिल अधिवक्ता अरुण कुमार मिश्र की याचिका खारिज कर दी है.
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता एवं न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह प्रथम की खंडपीठ ने याचिका को तुच्छ, परेशान करने वाली, गैर-जिम्मेदाराना और गलत धारणा वाली करार देते हुए कहा कि संस्था के समुचित कामकाज के हित में इस तरह की याचिका को हर तरह से हतोत्साहित किया जाना चाहिए.
याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता अरुण मिश्र का कहना था कि वर्ष 2020 में उनकी रिट याचिका को तत्कालीन न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने उन्हें अपनी दलीलें पेश करने की अनुमति दिए बिना खारिज कर दिया था और उन पर 15,000 रुपए का हर्जाना भी लगाया गया था.
अधिवक्ता 23 फरवरी 2021 के न्यायमूर्ति अग्रवाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के एक अन्य आदेश से भी व्यथित थे, जिसमें वह याची की ओर से पेश हो रहे थे. उसे अभियोजन के अभाव के कारण खारिज कर दिया गया था. उनका कहना था कि उसी दिन अन्य वकीलों के मामलों को अभियोजन के अभाव के कारण खारिज नहीं किया गया था और दूसरी तारीख लगा दी गई थी.
उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश जानबूझकर पक्षपातपूर्ण तरीके से किया गया था, जिसका उद्देश्य उन्हें परेशान करना और नुकसान पहुंचाना था, जो वास्तव में अपने न्यायालय की अवमानना के समान है.
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी भी तरह से न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल का कृत्य और आदेश पारित करने का आचरण अधिनियम में परिभाषित आपराधिक अवमानना के दायरे में नहीं आता है. एक अधिवक्ता के रूप में खंडपीठ न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में उससे एक निश्चित सीमा तक जिम्मेदारी और संयम की अपेक्षा करती है.
खंडपीठ ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि अधिवक्ता ने पहले भी न्यायमूर्ति अग्रवाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए लिखित सहमति मांगते हुए यूपी के महाधिवक्ता कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया था. उस आवेदन को खारिज कर दिया गया था.
हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से महाधिवक्ता के इनकार को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया था. इसलिए खंडपीठ ने आगे कहा कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए अधिनियम बनाने वालों ने ऐसे आवेदनों को सीधे दाखिल करने पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक समझा तथा उन्हें महाधिवक्ता की लिखित सहमति से दाखिल करने की आवश्यकता बताई.
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