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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश-IT से जुड़े अपराधों की जांच में सावधानी बरतें विवेचक - Allahabad High Court Order

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप, धमकी और उसकी अश्लील वीडियो बनाकर वायरल करने के मामले के विवेचक की कड़ी आलोचना करते हुए डीजीपी को निर्देश दिया कि सूचना एवं तकनीक से जुड़े आपराधिक मामलों के लिए सभी जांच अधिकारियों को काफी सावधानी बरतने के लिए आदेशित करें.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 2, 2024, 8:47 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप, धमकी और उसकी अश्लील वीडियो बनाकर वायरल करने के मामले के विवेचक की कड़ी आलोचना करते हुए डीजीपी को निर्देश दिया कि सूचना एवं तकनीक से जुड़े आपराधिक मामलों के लिए सभी जांच अधिकारियों को काफी सावधानी बरतने के लिए आदेशित करें. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले आरोपी या पीड़िता के मौलिक अधिकारों के हनन से जुड़े होते हैं इसलिए डीजीपी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए सुधारात्मक आदेश भी जारी करें.

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने यह आदेश गैंगरेप, धमकी और वीडियो वायरल करने के आरोपी सौरभ उर्फ सौरभ कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. मामले के तथ्यों के अनुसार सौरभ कुमार और सेहबान ने नाबालिग पीड़िता को उसके स्कूल से बहला-फुसलाकर यौन उत्पीड़न किया. उन पर घटना का वीडियो बनाने और व्हाट्सएप से वीडियो प्रसारित करने का भी आरोप है. वीडियो पीड़िता के भाई के मोबाइल पर आया, जिसके बाद गत तीन अप्रैल को आजमगढ़ के अहरौला थाने में सौरभ कुमार व एक अन्य पर आईपीसी की धारा 376 डीबी व 506, पोक्सो एक्ट की धारा 5 जी एवं 5 एम/जी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता को आरोपियों ने ब्लैकमेल किया और धमकाया. बाद में वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल कर दिया. सौरभ के वकील ने याची को निर्दोष बताते हुए कहा कि उसे परेशान करने और पीड़ित करने के लिए झूठा फंसाया गया है. इस बात पर जोर दिया गया कि याची की संलिप्तता दर्शाने का कोई ठोस सबूत नहीं हैं क्योंकि एफआईआर में तारीख व समय का जिक्र नहीं है.

कोर्ट ने पाया कि बरामद किए गए वीडियो साक्ष्य का विवरण नहीं दिया गया है. साथ ही आरोपी के मोबाइल की सामग्री की जांच करने या गैलरी की सामग्री को सत्यापित करने में विवेचक की विफलता ने जांच की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए. कोर्ट ने डिजिटल साक्ष्यों को संभालने में जांच अधिकारी की सतर्कता में कमी के लिए जांच अधिकारियों के बेपरवाह रवैये की निंदा करते हुए कहा कि यह कृत्य केवल जिम्मेदारी से बचने का प्रयास प्रतीत होता है. इस कृत्य को रोकना होगा. जांच अधिकारी द्वारा इस तरह की चूक से आरोपी और पीड़ित दोनों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.

कोर्ट ने इस मामले के विवेचक को निर्देश दिया कि याची के खिलाफ प्रसारित वीडियो से संबंधित साक्ष्यों का विवरण देते हुए व्यक्तिगत हलफनामा प्रस्तुत करे, जिसमें इसकी सामग्री भी शामिल हो.

यह भी पढ़ें : यूपी में सड़क-फुटपाथों के अतिक्रमण को लेकर हाईकोर्ट सख्त, नगर निगम से पूछा- क्या कदम उठाए - Allahabad High Court Encroachment

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप, धमकी और उसकी अश्लील वीडियो बनाकर वायरल करने के मामले के विवेचक की कड़ी आलोचना करते हुए डीजीपी को निर्देश दिया कि सूचना एवं तकनीक से जुड़े आपराधिक मामलों के लिए सभी जांच अधिकारियों को काफी सावधानी बरतने के लिए आदेशित करें. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले आरोपी या पीड़िता के मौलिक अधिकारों के हनन से जुड़े होते हैं इसलिए डीजीपी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए सुधारात्मक आदेश भी जारी करें.

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने यह आदेश गैंगरेप, धमकी और वीडियो वायरल करने के आरोपी सौरभ उर्फ सौरभ कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. मामले के तथ्यों के अनुसार सौरभ कुमार और सेहबान ने नाबालिग पीड़िता को उसके स्कूल से बहला-फुसलाकर यौन उत्पीड़न किया. उन पर घटना का वीडियो बनाने और व्हाट्सएप से वीडियो प्रसारित करने का भी आरोप है. वीडियो पीड़िता के भाई के मोबाइल पर आया, जिसके बाद गत तीन अप्रैल को आजमगढ़ के अहरौला थाने में सौरभ कुमार व एक अन्य पर आईपीसी की धारा 376 डीबी व 506, पोक्सो एक्ट की धारा 5 जी एवं 5 एम/जी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता को आरोपियों ने ब्लैकमेल किया और धमकाया. बाद में वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल कर दिया. सौरभ के वकील ने याची को निर्दोष बताते हुए कहा कि उसे परेशान करने और पीड़ित करने के लिए झूठा फंसाया गया है. इस बात पर जोर दिया गया कि याची की संलिप्तता दर्शाने का कोई ठोस सबूत नहीं हैं क्योंकि एफआईआर में तारीख व समय का जिक्र नहीं है.

कोर्ट ने पाया कि बरामद किए गए वीडियो साक्ष्य का विवरण नहीं दिया गया है. साथ ही आरोपी के मोबाइल की सामग्री की जांच करने या गैलरी की सामग्री को सत्यापित करने में विवेचक की विफलता ने जांच की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए. कोर्ट ने डिजिटल साक्ष्यों को संभालने में जांच अधिकारी की सतर्कता में कमी के लिए जांच अधिकारियों के बेपरवाह रवैये की निंदा करते हुए कहा कि यह कृत्य केवल जिम्मेदारी से बचने का प्रयास प्रतीत होता है. इस कृत्य को रोकना होगा. जांच अधिकारी द्वारा इस तरह की चूक से आरोपी और पीड़ित दोनों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.

कोर्ट ने इस मामले के विवेचक को निर्देश दिया कि याची के खिलाफ प्रसारित वीडियो से संबंधित साक्ष्यों का विवरण देते हुए व्यक्तिगत हलफनामा प्रस्तुत करे, जिसमें इसकी सामग्री भी शामिल हो.

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