प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक आदेश में कहा कि इंक्रीमेंट की देय तिथि से एक दिन पूर्व सेवा निवृत्त होने वाला कर्मचारी भी वार्षिक इंक्रीमेंट पाने का हकदार है. कोई भी नियम अथवा शासनादेश यदि कर्मचारियों को ऐसे हक से वंचित करता है, तो उसे मनमाना माना जाएगा. हाईकोर्ट ने कहा कि इस विषय को सुप्रीम कोर्ट सहित देश के तमाम उच्च न्यायालयों द्वारा पहले ही तय किया जा चुका है.
कोर्ट ने राज्य सरकार और नगर आयुक्त मेरठ को आगाह किया है कि वह भविष्य में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए मामलों में शासनादेश की आड़ में विद्वता का प्रदर्शन न करें. हाईकोर्ट ने नगर निगम मेरठ के सेवानिवृत कर्मचारी श्रीपाल को उसकी सेवा निवृत्ति वाले वर्ष का इंक्रीमेंट नहीं देने के नगर आयुक्त मेरठ के आदेश को रद्द कर दिया. साथ ही नगर आयुक्त पर कोर्ट ने 10 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया. श्रीपाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने याची के अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी की दलीलें सुनकर दिया.
याची का कहना था कि वह नगर निगम मेरठ में क्लर्क के पद से 30 जून 2019 को सेवानिवृत हुआ था. सेवानिवृत्ति से पूर्व उसने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर 1 जुलाई 2018 से 30 जून 2019 तक की अवधि का इंक्रीमेंट दिए जाने की मांग की. इसे नगर आयुक्त ने स्वीकार नहीं किया. इस पर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट ने नगर आयुक्त को याची के प्रत्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया. इसके बाद भी नगर आयुक्त ने 28 दिसंबर 2019 को याची का प्रत्यावेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इंक्रीमेंट सेवारत कर्मचारियों को दिया जाता है.
सेवानिवृत कर्मचारियों को इंक्रीमेंट देने का कोई नियम नहीं है, क्योंकि यांची इंक्रीमेंट देने की तिथि 1 जुलाई 2019 से ठीक 1 दिन पहले 30 जून 2019 को रिटायर हो गया, इसलिए वह इंक्रीमेंट पाने का हकदार नहीं है. नगर आयुक्त के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सहित देश की कई संवैधानिक अदालतों ने यह तय कर दिया है कि यदि कोई नियम जिसमें तकनीकी आधार पर सिर्फ एक दिन पहले सेवानिवृत होने के कारण इंक्रीमेंट से वंचित करता है, तो वह मनमाना समझा जाएगा. कोर्ट ने कहा कि नगर आयुक्त के समक्ष यह विकल्प नहीं है कि वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्णय के बावजूद किसी शासनादेश के हवाले से याची को इंक्रीमेंट देने से इनकार कर सके.
कोर्ट ने नगर आयुक्त द्वारा इस प्रकरण को निदेशक स्थानीय निकाय को संदर्भित करने और उनसे निर्देश प्राप्त करने की भी कड़ी आलोचना की. कोर्ट ने कहा कि नगर आयुक्त इस प्रकरण पर निर्णय लेने के लिए स्वयं सक्षम हैं, फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया यह समझ से परे है. कोर्ट ने नगर आयुक्त को भविष्य में ऐसी बचकानी हरकत नहीं करने के प्रति आगाह किया. साथ ही राज्य सरकार और नगर आयुक्त को आगाह किया है कि वह भविष्य में ऐसे मामलों में जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णय द्वारा तय किया गया है किसी शासनादेश के आधार पर अपनी विद्वता का प्रयोग न करें.
कोर्ट ने नगर आयुक्त के इंक्रीमेंट नहीं देने के 28 दिसंबर 2019 के आदेश को रद्द कर दिया है. याची को 1 जुलाई 2018 से 30 जून 2019 की अवधि का इंक्रीमेंट देने और उसके अनुसार उसकी पेंशन में संशोधन कर पेंशन के एरियर का भुगतान करने का निर्देश दिया.