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क्या एएमयू का बरकरार रहेगा अल्पसंख्यक दर्जा, जल्द आ सकता 'सुप्रीम' फैसला

अगर एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं रहेगा तो फिर एडमिशन में 50 फीसदी सीटों के आरक्षण के कोटे का क्या होगा?

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सुप्रीम कोर्ट में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कभी भी आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिनों की सुनवाई के बाद 1 फरवरी 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब फैसले की संभावना इसलिए जाहिर की जा रही है क्योंकि जिन सात जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी. उसमें शामिल मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं. दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने 2006 के फैसले के बाद एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 2019 में इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब अनुमान लगाया जा रहा है कि, दीपावली अवकाश के बाद जब कोर्ट खुलेगा तो सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है, जिसको लेकर विश्वविद्यालय में भी चर्चाएं शुरू हो गई है.

सर सैयद अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद शाहिद (Video Credit; ETV Bharat)

एएमयू और एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील डॉ. राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश की. वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद और सादान इंटरवेनर की ओर से उपस्थित हुए थे. केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरामिनी ने किया.

सर सैयद अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद शाहिद ने बातचीत में बताया कि, अगर सुप्रीम कोर्ट फैसला एएमयू के हक में आएगा तो एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा. डॉक्टर शाहिद ने भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताते हुए कहा के फैसला एएमयू के हक में होगा. डॉ. मोहम्मद शाहिद ने बताया कि, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मुसलमानो के नाम पर किसी भी तरह का कोई रिजर्वेशन नहीं है. सिर्फ 50% इंटरनल छात्रों का प्रवेश में रिजर्वेशन होता है. इन 50% छात्रों में सभी धर्मो के लोग होते हैं. एएमयू में कभी भी 50 % मुस्लिम रिजर्वेशन नहीं रहा और आज भी नहीं है.

दरअसल किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा जब खत्म हो जाता है तो विश्वविद्यालय अधिनियम में बदलाव करके विश्वविद्यालय में प्रवेश आरक्षण कोटा नीति में बदलाव कर दिया जाता है. प्रवेश आरक्षण कोटा नीति वहीं लागू की जाती है, जो दूसरे विश्वविद्यालय में होती है यानी प्रवेश में सभी जाति वर्ग के लोगों का आरक्षण कोटा कर दिया जाता है. सरकारी शिक्षा से जुड़ी पॉलिसी लागू कर दी जाती हैं अगर सरकार चाहे तो संस्थान की गवर्निंग बॉडी में भी बदलाव कर सकती है.

अगर एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म हो जाता है तो एएमयू में इंटरनल छात्रों का 50% आरक्षण कोटा खत्म कर दिया जाएगा और सभी धर्मों के छात्रों का समान प्रवेश कर दिया जाएगा जैसे दूसरे विश्वविद्यालय में है. इस तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी सभी जाति धर्म का प्रवेश आरक्षण कोटा द्वारा आसान हो जाएगा, मुस्लिम छात्रों के मुकाबले दूसरे धर्म के छात्रों की संख्या बढ़ जाएगी. विश्वविद्यालय में दूसरे धर्म के शिक्षण और गैर शिक्षण स्टॉफ की संख्या भी बढ़ सकती है.

यह भी पढ़ें : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने राष्ट्रपति को लिखे दो हजार पोस्टकार्ड, जानें वजह

अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कभी भी आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिनों की सुनवाई के बाद 1 फरवरी 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब फैसले की संभावना इसलिए जाहिर की जा रही है क्योंकि जिन सात जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी. उसमें शामिल मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं. दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने 2006 के फैसले के बाद एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 2019 में इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब अनुमान लगाया जा रहा है कि, दीपावली अवकाश के बाद जब कोर्ट खुलेगा तो सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है, जिसको लेकर विश्वविद्यालय में भी चर्चाएं शुरू हो गई है.

सर सैयद अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद शाहिद (Video Credit; ETV Bharat)

एएमयू और एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील डॉ. राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश की. वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद और सादान इंटरवेनर की ओर से उपस्थित हुए थे. केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरामिनी ने किया.

सर सैयद अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद शाहिद ने बातचीत में बताया कि, अगर सुप्रीम कोर्ट फैसला एएमयू के हक में आएगा तो एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा. डॉक्टर शाहिद ने भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताते हुए कहा के फैसला एएमयू के हक में होगा. डॉ. मोहम्मद शाहिद ने बताया कि, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मुसलमानो के नाम पर किसी भी तरह का कोई रिजर्वेशन नहीं है. सिर्फ 50% इंटरनल छात्रों का प्रवेश में रिजर्वेशन होता है. इन 50% छात्रों में सभी धर्मो के लोग होते हैं. एएमयू में कभी भी 50 % मुस्लिम रिजर्वेशन नहीं रहा और आज भी नहीं है.

दरअसल किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा जब खत्म हो जाता है तो विश्वविद्यालय अधिनियम में बदलाव करके विश्वविद्यालय में प्रवेश आरक्षण कोटा नीति में बदलाव कर दिया जाता है. प्रवेश आरक्षण कोटा नीति वहीं लागू की जाती है, जो दूसरे विश्वविद्यालय में होती है यानी प्रवेश में सभी जाति वर्ग के लोगों का आरक्षण कोटा कर दिया जाता है. सरकारी शिक्षा से जुड़ी पॉलिसी लागू कर दी जाती हैं अगर सरकार चाहे तो संस्थान की गवर्निंग बॉडी में भी बदलाव कर सकती है.

अगर एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म हो जाता है तो एएमयू में इंटरनल छात्रों का 50% आरक्षण कोटा खत्म कर दिया जाएगा और सभी धर्मों के छात्रों का समान प्रवेश कर दिया जाएगा जैसे दूसरे विश्वविद्यालय में है. इस तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी सभी जाति धर्म का प्रवेश आरक्षण कोटा द्वारा आसान हो जाएगा, मुस्लिम छात्रों के मुकाबले दूसरे धर्म के छात्रों की संख्या बढ़ जाएगी. विश्वविद्यालय में दूसरे धर्म के शिक्षण और गैर शिक्षण स्टॉफ की संख्या भी बढ़ सकती है.

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