अजमेर: राजस्थान में अजमेर और नागौर की सीमा पर खुंडियास में लोकदेवता बाबा रामदेव का भव्य मंदिर है. भक्तों के लिए यह स्थान प्रमुख रामदेवरा से कम नहीं है. यह मिनी रामदेवरा के नाम से भी जाना जाता है. बताया जाता है कि एक भक्त की भक्ति से यह स्थान तीर्थ बन गया. खुंडियास के बाबा रामदेव मंदिर में श्रद्धालु की गहरी आस्था है. दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी परेशानियों का हल जानने के लिए आते हैं. ऐसे भी कई श्रद्धालु हैं जो कई वर्षों से यहां मेले में दर्शनों के लिए हर वर्ष आते हैं.
वहीं, जिले और आसपास के जिलों से तो हर दूज पर लोग मंदिर में बाबा रामदेव के चरणों मे ढोक लगाने आते हैं, फिर चाहे कैसी भी परिस्थियां क्यों ना हो. इन दिनों बाबा रामदेव का मेला चल रहा है. वहीं, बारिश का भी दौर जारी है, लेकिन आस्था सब पर भारी है. एक दंपती सवाईमाधोपुर से पैदल चलकर बाबा के धाम पहुंचा है. यहां आने के बाद रास्ते की तकलीफ को वे भूल गए और उन्हें कुछ याद है तो बाबा रामदेव और उनका यह अद्भुत स्थान. इसी तरह टोंक जिले के गोपाल भी वर्षों से यहां आ रहे हैं. उनका विश्वास है कि यहां बिगड़े हुए काज संवर जाते हैं. हर रोग से मुक्ति बाबा के आशीर्वाद से मिल जाती है.
प्रसाद मानकर खाते हैं मिट्टी : श्रद्धालु दर्शन करने के बाद बाबा रामदेव की अखंड धूनी के दर्शन और परिक्रमा करते हैं, साथ ही सामने की ओर भक्त भोजराज गुर्जर की समाधि के दर्शन करना नहीं भूलते. मंदिर सेवा समिति मंदिर का ही नहीं, बल्कि हर आने वाले श्रद्धालु का भी पूरा ख्याल रखती है. समिति के सदस्य बनाराम ने बताया कि भक्त भोजराज गुर्जर की समाधि की परिक्रमा श्रद्धा से की जाती है. समाधि के चारों ओर फैली महीन मिट्टी का भी विशेष महत्व है. श्रद्धालू इस मिट्टी को प्रसाद मानकर खा लेते हैं और इसे शरीर पर मलते हैं.
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दूज और दशमी पर भरता है मेला : रक्षाबंधन पर आने वाली पूर्णिमा के दिन से अगली पूर्णिमा तक बाबा रामदेव का मेला हर्षोल्लास के साथ हर वर्ष भरता है. इसमें राजस्थान ही नहीं हरियाणा, पंजाब, गुजरात , मध्यप्रदेश, यूपी समेत कई राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोकदेवता बाबा रामदेव के दर्शन के लिए रामदेवरा आते हैं. इनमें बड़ी संख्या पैदल यात्रियों की होती है. लाखों लोगों के विश्वास और आस्था का बड़ा केंद्र रामदेवरा है. रामदेवरा अजमेर होकर जाने वाले श्रद्धालुओं में से अधिकांश श्रद्धालू खुंडियावास जरूर आते हैं.
इसका कारण एक भक्त की भक्ति है. यहां एक भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर बाबा रामदेव ने अपनी ऊर्जा से ना केवल इस स्थान को पवित्र किया, बल्कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करने के लिए बाबा रामदेव ने यहां उपस्थित रहने का वचन भी अपने भक्त को दिया था. बताया जाता है कि खुंडियास में बाबा रामदेव का मंदिर है. यहां कभी घोर जंगल हुआ करता था. रामदेवरा पैदल जाने वाले यात्री इस मार्ग से होकर ही जाया करते थे. इन जातरुओं में लोकदेवता बाबा रामदेव का एक अनन्य भक्त भोजराज गुर्जर भी थे. बूंदी जिले के लाखेरी तहसील में देवपुरा गांव के निवासी भोजराज गुर्जर थे. इनकी समाधि खुंडियास में बाबा रामदेव मंदिर के समीप ही है. खुंडियास आकर बाबा रामदेव के दर्शन करने वाले भक्त भोजराज गुर्जर की समाधि पर भी ढोक लगाना नहीं भूलते.
अमर हो गया भक्त भोजराज गुर्जर का नाम : खुंडियास मंदिर में पुजारी सत्यनारायण बताते हैं कि बूंदी के लाखेरी क्षेत्र में देवपुरा निवासी भोजराज गुर्जर लोकदेवता बाबा रामदेव के भक्त थे. भक्त भोजराज गुर्जर की बाबा रामदेव में इतनी गहरी आस्था थी कि वे सदा बाबा रामदेव का नाम जपा करते थे और हर वर्ष दंडवत करते हुए बूंदी से रामदेवरा जाया करते थे. 24 वर्षों तक उनकी यह यात्रा जारी रही. सन 1986 में भक्त भोजराज गुर्जर दंडवत करते हुए खुंडियास पहुंचे. उनकी भक्ति और गहरी आस्था से वशीभूत होकर बाबा रामदेव ने उन्हें इस स्थान पर ही दर्शन देकर कहा कि अब तुम्हें रामदेवरा आने की जरूरत नहीं है. मैं खुद यहीं पर आ गया हूं.
इसके बाद भक्त भोजराज गुर्जर ने उस स्थान पर ध्वजा लगा दी, जहां पर बाबा रामदेव ने उन्हें दर्शन दिए थे. भक्त भोजराज गुर्जर जब से रहने लग गए. उस वक्त यहां घोर जंगल होने के कारण भोजराज गुर्जर समीप ही जामुन वाले देव जी के स्थान पर रहे, फिर मंदिर के उत्तर दिशा में पहाड़ी पर धूनीवाले बाबा के मंदिर में रहे. इसके बाद में भक्त भोजराज गुर्जर ने बाबा रामदेव के भक्तों के सहयोग से यहां मंदिर का निर्माण करवाना शुरू किया, साथ ही मंदिर के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर अपना आश्रम बनाया. दर्शन के लिए दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन की व्यवस्था आज भी आश्रम में की जाती है.
शाम की आरती है दिव्य : खुंडियास आने वाले श्रद्धालुओं की कोशिश रहती है कि वह शाम की आरती में जरूर रुकें. शाम की आरती विशेष होती है. मान्यता है कि जिन लोगों के शरीर में किसी भी प्रकार की कोई व्याधि है, वह शाम को होने वाली आरती में जरूर शामिल होते हैं. इस दौरान उनका शरीर खुद ब खुद हिलने लगता है. आरती के बाद उन्हें उस ऊपरी हवा (व्याधि) से छुटकारा मिल जाता है. यहां हर श्रद्धालु का अपना अनुभव और अपनी आस्था है, जो उन्हें इस पवित्र स्थान से जोड़े हुए है.