प्रयागराज: हत्या के जुर्म में सजा काटने वाले चार अभियुक्तों को 41 साल बाद हाईकोर्ट ने गैर इरादतन हत्या का दोषी माना है. कोर्ट ने उनकी सजा घटाते हुए सिर्फ जुर्माने की सजा सुनाई है. कोर्ट ने कहा, कि दोषियों ने लगभग 41 साल तक हत्या का दोषी होने का आघात झेला है. इसलिए, पांच हजार रुपये जुर्माना लगाने की सजा पर्याप्त है. कोर्ट ने चार दोषियों को बरी कर दिया है. न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने यह आदेश राजेंद्र प्रसाद और अन्य की अपील पर दिया है.
जौनपुर में 5 जुलाई 1979 को हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई. आरोप था, कि बुधिराम के परिवार के कुछ बच्चे अपने मवेशी चराने के लिए बाहर गए थे. इसी दौरान उनके पड़ोस में रहने वाले किशुन चौहान के परिवार के बच्चों से झगड़ा हो गया. मारपीट में तीन लोग घायल हो गए. इसमें से बलराम की मृत्यु हो गई. पुलिस ने राजेंद्र उर्फ राजेंद्र प्रसाद, फौजी उर्फ फौजदार, राम चंद्र, सुरेंद्र, महेंद्र, सूबेदार, राम किशुन, बहादुर और तेरस पर हत्या सहित विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया. ट्रायल कोर्ट ने 18 फरवरी 1983 को हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए दंडित किया. इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गई. याची अधिवक्ता ने दलील दी कि यह घटना अचानक घटी है. हत्या की पहले से कोई योजना नहीं थी. ऐसे में यह मामला गैर इरादतन हत्या का बनता है.
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कोर्ट ने हत्या के मामले को गैर इरादतन हत्या में बदल दिया. कहा कि अपीलकर्ता अब हत्या के दोषी नहीं हैं. कोर्ट ने महेंद्र, फौजी उर्फ फौजदार, रामचंदर और तेरस जो जीवित हैं, को हत्या के प्रयास के लिए दोषी ठहराया. वहीं, राजेंद्र प्रसाद, सुरेंद्र, राम किशुन और सूबेदार की सजा पहले ही 27 जनवरी 2021 को समाप्त हो चुकी है. कोर्ट ने कहा, कि अपीलकर्ताओं ने बहुत पीड़ा झेली है. उन्होंने लगभग 41 वर्षों तक हत्या का दोषी होने का आघात झेला है. इसलिए प्रत्येक जीवित अपीलकर्ता पर 5000 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की सजा पर्याप्त सजा होगी.