बीकानेर : बच्चों के बेडरूम की दिशा उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए, क्योंकि बच्चे अपने बेडरूम में लगभग 8-10 घंटे और कभी-कभी उससे भी अधिक सोते हैं. साथ ही उनके सामान, किताबें, खिलौने और तस्वीरें आदि आम तौर पर उनके बेडरूम में ही रखी होती है. प्रसिद्ध वास्तुविद राजेश व्यास बताते हैं कि बच्चो के शयन कक्ष के बारे में हमें सावधानी रखने की जरूरत है. जिस दिशा में बेडरूम की योजना बनाई गई है, उसकी ऊर्जा निश्चित रूप से उन पर प्रभाव डालेगी. ऐसा इसलिए, क्योंकि वहां ज्यादा समय बिताएंगे. बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और सही विकास के लिए वास्तु के अनुसार कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
दिशा का प्रभाव : सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह सुनिश्चित करना है कि उनका बेडरूम नकारात्मक दिशा या कम ऊर्जा वाली दिशा में तो नहीं बना है. अगर दिशा बच्चों के लिए अनुकूल नहीं है तो उन्हें नियमित रूप से स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं हो सकती हैं और डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है. अगर आप अक्सर अपने बच्चों के विकास को लेकर चिंतित रहते हैं और बार-बार डॉक्टर के पास जाते हैं तो उनके बेडरूम की दिशा की जांच करने के लिए किसी पेशेवर वास्तु विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें. आदर्श रूप से बच्चों के लिए बेडरूम की योजना उनकी आयु वर्ग के अनुसार बनाई जाती है. चूंकि व्यावहारिक रूप से कोई बढ़ती उम्र के साथ बेडरूम नहीं बदल सकता है. इसलिए हमें एक ऐसी दिशा चुननी चाहिए जो कम से कम उनके समग्र विकास और प्रगति के लिए अच्छी हो.
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इस दिशा में होना चाहिए शयन कक्ष : वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण पश्चिम के पश्चिम और उत्तर पूर्व या फिर उत्तर के पूर्व दिशा में बच्चों के बेडरूम होने चाहिए. यदि ये दिशाएं उपलब्ध हैं तो हमें इनमें से किसी एक दिशा में बच्चों के बेडरूम को प्राथमिकता देनी चाहिए.
रंगों का चयन : बच्चों के बेडरूम के लिए दिशा वास्तु के अनुसार सही ढंग से चुनी गई है, लेकिन हम गलत रंग चुनते हैं तो सही दिशात्मक स्थान के सकारात्मक गुणों को भी खो सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर बच्चों का बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा के पश्चिम में बनाया गया है तो हरे या लाल रंगों का इस्तेमाल बच्चों के बेडरूम के वास्तु संतुलन को बिगाड़ देगा. गलत रंग के कारण उस दिशा की सकारात्मक विशेषताएं खो जाएंगी. इसके अतिरिक्त ये गैर वास्तु अनुरूप रंग बच्चों के लिए स्वास्थ्य चुनौतियों का कारण बनती हैं. उदाहरण के लिए दक्षिण-पश्चिम कमरे के पश्चिम में हरे और लाल रंगों का उपयोग न केवल पढ़ाई में प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, बल्कि उन्हें बार-बार खांसी और जुकाम की समस्या भी देगा.
हल्के रंगों का प्रयोग : हमेशा वास्तु दिशा-निर्देशों के अनुसार ही रंग का उपयोग करना पसंद करें. चाहे बेडरूम की कोई भी दिशा हो. क्रीम, आइवरी, बेज और ऑफ-व्हाइट तटस्थ रंग हैं, जिनका उपयोग बच्चों के कमरे के लिए किसी भी दिशा में किया जा सकता है. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वास्तु में कोई बाधा न आए. कुछ रंगों का उपयोग निश्चित रूप से वास्तु के अनुसार किया जा सकता है, जैसे पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में ग्रे या पीले रंग, उत्तर या पूर्व में हरा या नीला रंग. रंगों के गलत सेट को चुनने के बजाय हमेशा वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श करना बेहतर होता है.
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सोने की दिशा : इसके अलावा बच्चों की नींद की स्थिति या सिर की दिशा भी अच्छी नींद सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है. अगर नींद का पैटर्न अच्छा है तो बच्चे का विकास बेहतर होता है. जिन माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे को ठीक से नींद नहीं आ रही है, उन्हें अपने बच्चे की सोने की स्थिति के साथ-साथ बेडरूम की दिशा भी जांचनी चाहिए.सोते समय सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. यदि यह उपलब्ध या व्यावहारिक नहीं है, तो सिर को पूर्व या पश्चिम दिशा में भी रखा जा सकता है. सोते समय कभी भी उत्तर दिशा की ओर सिर नहीं करना चाहिए. इससे नींद की प्रक्रिया बाधित होती है और अंततः बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है.
मिलती रहे हवा और प्रकाश : अगर घर को इस तरह से बनाया जाए कि हर तरफ से अधिकतम दिन की रोशनी और हवा आती रहे, तो बीमार होने की संभावना कम हो जाती है. ये वास्तु शास्त्र के सरल लेकिन प्रभावी पहलू हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए.