शिमला: हिमाचल प्रदेश में प्रकृति के बीच बसने का सपना वाकई एक शांत और सुकून भरा जीवन जीने का संकेत है. यहां की हरी-भरी वादियां, बर्फ से ढकी पहाड़ियां और शांत वातावरण किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करता है. ऐसे में हिमाचल में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने और प्रकृति की गोद में बसाना हर किसी का सपना है. जो देशभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. इसका खुलासा सुक्खू सरकार के करीब दो साल के कार्यकाल के दौरान प्रदेश में धारा 118 के तहत मंजूर किए गए 736 आवेदनों में हुआ है. जिसमें 355 व्यावसायिक और 381 घरेलू श्रेणी के मामलों को अनुमति दी गई है.
युवाओं के लिए खुलेंगे रोजगार के द्वार
हिमाचल में पिछले दो सालों में निवेश के लिए धारा 118 के तहत 355 इकाइयों को मंजूरी दी गई है. इनमें सबसे अधिक 176 औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने, 126 पर्यटन के मामलों सहित रियल एस्टेट, पनबिजली परियोजनाओं, शिक्षण, धार्मिक-चैरिटेबल और अन्य वाणिज्यिक संस्थाओं को खोलने से संबंधित आवेदन प्राप्त हुए हैं. इसमें ऑनलाइन डैशबोर्ड की सुविधा शुरू किए जाने से निवेशकों को दी जाने वाली मंजूरी की संख्या बड़ी है. ऐसे में हिमाचल में उद्योग स्थापित होने और पर्यटन से जुड़ी इकाइयां खुलने से पढ़े लिखे युवाओं के लिए रोजगार के द्वार भी खुलेंगे. जिससे सरकारी क्षेत्र में नौकरियों के लिए पड़ रहे दवाब में भी कमी आ सकती है.
किन्हें मिली हिमाचल में बसने की स्वीकृति ?
हिमाचल में लोगों की बसने की चाह में कोई कमी नहीं आई है. पिछले दो सालों में धारा 118 के तहत कुल 736 आवेदन प्राप्त हुए हैं. इसमें रिहायशी मकानों के लिए 381 मामलों को धारा 118 के तहत अनुमति दी गई है. ये अनुमति ऐसे लोगों की दी गई है, जो पिछले 30 सालों से हिमाचल में रह रहे हैं. इसी तरह से 176 औद्योगिक, रियल एस्टेट 34, शिक्षण संस्थान 3, अन्य वाणिज्यिक 3, हाइड्रो प्रोजेक्ट 3, धार्मिक चैरिटेबल 10 व पर्यटन से संबंधित 126 मामलों को धारा 118 के तहत स्वीकृति दी गई है.
क्या है धारा 118 ?
हिमाचल प्रदेश किरायेदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 (Himachal Pradesh Tenancy and Land Reforms Act 1972) के तहत हिमाचल के लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक विशेष प्रावधान किया गया है. इस एक्ट में धारा 118 के तहत गैर-कृषकों को जमीन ट्रांसफर करने पर प्रतिबंध होगा, यानी हिमाचल का गैर-कृषक भी यहां पर जमीन नहीं खरीद सकता है. हिमाचल में धारा 118 की जरूरत इसलिए पड़ी कि प्रदेश को साल 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था. देश के 18वें राज्य के रूप में हिमाचल अस्तित्व में आया तो एक साल बाद ही भूमि सुधार कानून लागू हो गया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता है. फिर लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता.
भौगोलिक दृष्टि से हिमाचल के ज्यादातर क्षेत्र देश के दुर्गम इलाकों में आते हैं. हिमाचल के पास सीमित भूमि है और पहाड़ी पर्यटन राज्य होने के नाते निर्माताओं ने पहले से भविष्य को भांपते हुए हिमाचल के छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा के लिए ये कदम उठाया है. धारा 118 के तहत प्रदेश का कोई भी जमीन मालिक किसी भी गैर कृषक को किसी भी जरिए (सेल डीड, गिफ्ट, लीज, ट्रांसफर, गिरवी आदि) से जमीन नहीं दे सकता. भूमि सुधार अधिनियम 1972 की धारा 2(2) के मुताबिक जमीन का मालिकाना हक उसका होगा जो हिमाचल प्रदेश में अपनी जमीन पर खेती करता है.
अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व ओंकार शर्मा ने बताया, "दो साल में धारा 118 के तहत कुल 736 आवेदन मंजूर किए गए हैं. अब धारा 118 के तहत कोई भी आवेदन लंबित नहीं है."